84 हजार में बिका ये घोड़ा, आखिर क्या है इसकी खासियत- यहां जानिए

Khabron wala 

हिमाचल प्रदेश के प्राचीन परंपराओं और लोक संस्कृति के प्रतीक अंतरराष्ट्रीय लवी मेला इस वर्ष भी रंग और रौनक से भर गया। मेले का सबसे बड़ा आकर्षण रहा स्पीति के पिन वैली क्षेत्र के चेरिंग डेंडुप का चामुर्ति नस्ल का घोड़ा, जिसे 84 हजार रुपये में खरीदा गया।

84 हजार में बिका घोड़ा

यह घोड़ा न केवल अपनी मजबूत कद-काठी और खूबसूरत बनावट के लिए प्रसिद्ध रहा, बल्कि इसकी सहनशक्ति ने भी खरीदारों को प्रभावित किया। इसे उत्तराखंड के एक पशुपालक ने खरीदा, जो अश्व प्रदर्शनी में मौजूद दर्जनों घोड़ों में सबसे ऊंची कीमत पर नीलाम हुआ।

यह चामुर्ति नस्ल का घोड़ा हिमाचल प्रदेश के स्पीति क्षेत्र की शीत मरुस्थलीय जलवायु में पाला जाता है। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में पले-बढ़े ये घोड़े अपनी अद्भुत सहनशक्ति, फुर्ती और कठोरता सहने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं।

विश्वसनीय साथी मानते हैं पहाड़ी

स्थानीय लोग इन्हें सदियों से पहाड़ी इलाकों में सामान ढोने और यात्रा के लिए सबसे विश्वसनीय साथी मानते हैं। अश्व विशेषज्ञों का कहना है कि यह नस्ल जलवायु परिवर्तन के अनुकूल और कम भोजन में भी लंबे समय तक टिकने की क्षमता रखती है।

पाटबंगला मैदान में आयोजित इस अश्व प्रदर्शनी में राज्य भर से आए घोड़ा पालकों और खरीदारों की भारी भीड़ उमड़ी। दर्जनों पारंपरिक नस्लों के घोड़े प्रदर्शित किए गए, जिनमें किन्नौरी, चामुर्ति और लद्दाखी नस्ल के घोड़े विशेष आकर्षण का केंद्र रहे।

घोड़े की सजावट, चाल…

लोगों ने इन घोड़ों की सजावट, चाल और शारीरिक बनावट को नजदीक से देखा और पारंपरिक पशुपालन की विरासत को करीब से समझा। वन एवं पशुपालन विभाग की देखरेख में हुई इस प्रदर्शनी को विशेषज्ञों ने स्थानीय नस्लों के संरक्षण की दिशा में अहम पहल बताया।

पशुपालन अधिकारी डॉ. अनिल शर्मा ने कहा कि ऐसे आयोजन न केवल स्थानीय घोड़ा पालकों को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि पारंपरिक नस्लों के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि चामुर्ति जैसे घोड़े हिमाचल की सांस्कृतिक पहचान हैं। इन्हें बढ़ावा देना हमारे जैविक और सांस्कृतिक दोनों ही धरोहरों की रक्षा करना है।

मेले में बढ़ी रौनक

मेले में शामिल स्थानीय लोगों ने कहा कि इस तरह की नीलामी पहाड़ी पशुपालकों को आर्थिक रूप से सशक्त करती है। लवी मेले में इस बार न केवल व्यापारिक सौदे हुए, बल्कि स्थानीय कला, संगीत और परंपरा की झलक ने भी पर्यटकों को खूब आकर्षित किया।

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