रोज़ी रोटी की तलाश के लिए अपना घर परिवार छोड़ कर मज़दूरी के लिए दर-बदर भटकते बालक रूप लाल को आभास भी न था कि भविष्य में वे किसी सरकारी योज़ना का लाभ पाकर न केवल अपने परिवार का बेहतर गुज़र बसर ही करेगा बल्कि क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनकर उनके लिए भी स्वरोज़गार के द्वार खोलेगा।
1 जनवरी, 1968 को बिलासपुर की सदर तहसील की पंचायत दयोली के सरड़ गांव में धनी राम के घर जन्म लेने वाले रूप लाल को शैशव काल से ही संघर्ष करना पड़ा। परिवार के पास पर्याप्त भूमि तो थी लेकिन बिखरी भूमि और सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण परिवार मुश्किल से अपना गुज़र बसर कर रहा था। गरीबी के इस दौर में परिवार के लिए कुछ कर गुज़रने की चाह में छोटी सी उम्र में ही रूप लाल को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर मज़दूरी के लिए अन्य जिलों का रुख करना पडा। जीवन के सुनहरी दिन और अपनी ऊर्जा और सामथ्र्य को महज कुछ पैसों के लिए मज़दूरी में घर परिवार से मीलों दूर बरवाद करने के बदले अपने गांव की खेती बाड़ी में परिश्रम करने की सोच लेकर रूप लाल पुनः अपने गांव सरड़ वापिस लौट आया।
गांव में अब भी समस्याएं मुहं वायें ज्यों कि त्यों खड़ी थी। अथक मेहनत से खेती बाडी आरम्भ तो की लेकिन बेसहारा पशुओं और जंगली जानवरों विशेषतया बन्दरों ने रूप लाल की सारी आशाओं पर पानी फेर दिया।
हाल बेहाल निराश रूप लाल को जीवन यापन के लिए कोई भी सरल राह दूर-2 तक नज़र नहीं आ रही थी। ऐसे में मत्स्य विभाग की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना ने रूप लाल के परिवार में खुशियों के रंग भरने में अत्यन्त कारगर भूमिका का निर्वहन किया। तब परिवार के भरण पोषण के लिए रूप लाल ने गांव से गुज़रती अलि खडड़ से मछली पकड़ कर घाघस पुल के समीप रेहडी लगाकर मछली फ्राई का व्यवसाय आरम्भ कर दिया। नियमित रुप से खडड से मछलियों को न पकड़ पाने की स्थिति में रूप लाल की आर्थिक स्थिति में कोई विशेष इज़ाफा नही हुआ। परिणाम मात्र 5, 6 हज़ार की मासिक आमदनी से घर का खर्चा तक चलाना अत्यन्त दूभर हो गया। अनियमित व्यवसाय के चलते रूप लाल को पुनः परेशानियों ने घेरना आरम्भ कर दिया।
ऐसे में मत्स्य विभाग ने वर्ष 2013-14 में रूप लाल के मत्स्य के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए न केवल प्रशिक्षण ही दिलवाया अपितु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत मछली पालन के लिए तलाब निर्माण हेतु 75 हज़ार रुपये की राशि भी अनुदान के रूप में उपलब्ध करवाई और काॅमन कार्प मछली पालन का कार्य आरम्भ करवाया। अब रूप लाल खडड से मच्छली न पकड़ पाने की स्थिति में अपने तालाब से आसानी से मछलियां निकाल कर नियमित रूप से उनकी बिक्री करने लगा।
रूप लाल ने अपने बढते व्यवसाय व मछली की मांग को देखते हुए एक अन्य तालाब के निर्माण के लिए मत्सय विभाग से 36 हज़ार रुपये अनुदान के रूप में प्राप्त किए तथा लगभग एक लाख 25 हज़ार रुपये की स्वंय की राशि खर्च करके तीसरे तालाब का निर्माण करके काॅमन कार्प, राहो व मोरी नस्ल की मछलियां पालन की प्रक्रिया को विस्तार दिया। रूप लाल के तालाबों में अब छः से दस कविंटल मछली का वार्षिक उत्पादन हो रहा है जिससे उसकी मासिक आय में अब पांच से छः गुना ज़्यादा वृद्धि हो गई है।
पैतृक कच्चा मकान छोड़कर रूप लाल ने अब अपने पक्के मकान का निर्माण कर लिया है। कभी नंगे पांव लोगों के घर द्वार पर मज़दूरी मांगने के लिए भटकता रूप लाल आज अपनी मेहनत, धैर्य व सरकार द्वारा चलाई गई योजना का लाभ प्राप्त करके अपनी चार पहिया गाड़ी से अपने व्यवसाय को विस्तार देने में जुटा है। जिसमें उनका 26 वर्षीय बेटा रमेश भी उनका बराबर में हाथ बटा है। जबकि गांव के अन्य युवकों ने रूप लाल से प्रेरणा पाकर मत्सय पालन को स्वरोज़गार के रूप में अपनाकर अपनी आजीविका का साधन बनाया है।
रूप लाल के मछली तालाबों के लिए लगभग बीस किलोमीटर दूर सोलन जिला के पिपलू घाट के चमाकड़ी से प्रवेश करनी वाली अलिखडड का जल 12 माह उपलब्ध रहता है जिसमें 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित मारकंड़ के प्राकृतिक स्त्रोत (मटियाणु जल) का शीतल जल भी शामिल है।