लाहुल स्पीति के सिस्सू, गिपगांत ग्लेशियर में बनी झील फटने को तैयार ,झील फटी तो लाहुल स्पीति से कश्मीर तक चंद्रा नदी मचा सकती है तबाही

( धनेश गौतम ) पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों में जहां झीले बन रही है वहीं, कई झीलों को आकार बढ़ गया है। लाहुल स्पीति के सिस्सू की पहाडिय़ों पर स्थित गिपगांत ग्लेशियर में बनी झील का आकर यकायक बढ़ गया है। झील का आकार जहां पहले 0.27 हैक्टेयर किलोमीटर था वहीं यह आकार बढ़कर 115.51 स्केव्येर किलोमीटर हो गया है। झील के आकर बढऩे से लाहुल स्पीति के कई गांवों को खतरा हो गया है।

अनु आनंद मीडिया एडवोकेसी सीएमसी की पहल से यह खुलासा हुआ है। उधर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने लाहुल स्पीति प्रशासन को आगाह कर दिया है और इस खतरे से बचने के लिए उपाय का सुझाव दिया है। यह खुलासा पर्यावरण वन एवं वातावरण परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित कार्यशाला में  वैज्ञानिकों ने किया है।

You may also likePosts

प्रिंसीपल साईंटीफिक ऑफिसर स्टेट सेंटर ऑन क्लाईमैंट चेंच के डॉ. एसएस रंधावा ने बताया कि इस झील में लगातार ग्लेशियर पिघल रहा है और झील का आकार बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है और इस पर नजर बनाए हुए है। उधर, यदि झील फट गई तो यह झील चंद्रा नदी में सिस्सू से लेकर कश्मीर तक तबाही मचा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय रैंज में  बढ़ते ग्लोवल वार्मिंग के कारण ऐसी घटनाएं घट रही है।

गौर रहे कि हिमालय के कई ग्लेशियरों पर झीलों के विकसित होने से खतरा उत्पन्न हो गया है। यही नहीं भारी ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिछले वर्षों में उभरे ग्लेशियर जहां सिकुड़ गए हैं वहीं ग्लेशियरों पर झीलों के बनने से प्रकृति को खतरा हो गया है। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि हिमालय के ग्लेशियर 74 मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से पिघल रहे हैं। हिमालय की हिमजा लेक में 35 मीलियन मीटर से तीन गुना पानी इकट्ठा हो गया है। यही नहीं हिमालय की हिमजा ग्लेशियर में 42 मीटर गहरी तथा एक किलोमीटर चौड़ी झील बन गई है और अब इसी तरह अमर डोबलंब, खुंबू, तवोचे आदि ग्लेशियरों पर भी गहरी व लंबी झीलें बन गई है।  इसके अतिरिक्त बागमति नदी का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।

उधर, हिमालय में स्थित हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिला में स्थित ग्लेशियरों पर भी झीलें बनने से प्रशासन की नींद खराब हो गई है। यहां कई स्थानों पर ग्लेशियरों के बीच में झीलें पिछले कई वर्षों से बन रही हैं और इस वर्ष भी झीलों से खतरा उत्पन्न होने लगा है। इस खतरे को देखते हुए लाहुल-स्पीति प्रशासन अलर्ट हो गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष बहुत कम बर्फबारीहोने के कारण जहां ग्लेशियरों को सुरक्षा कवच नहीं मिला वहीं, ग्लोबल वार्मिंगग से अब झीलों का आकार बढ़ रहा है। जीवी पंत हिमालयन पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक भी इस पर शोध कर रहे है। उनके अनुसार भी हिमालय

क्षेत्र में ग्लेशियरों पर झीले बन रही है और ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ रही है।  जब सर्दी के मौसम के बाद गर्मियां आती हैं तो उस समय ग्लेशियरों से पानी निकलना स्वभाविक है और झीलें बनना कोई नई बात नहीं है लेकिन झीलें छोटी-छोटी हों तो उससे कोई खतरा नहीं होता। यदि झीलें बड़ी बन गई है तो उससे खतरा भी हो सकता है। उनके अनुसार जिस ग्लेशियर पर झील बन रही है वहां के हिंटरलैंड और कैचमैंट एरिया में बर्फ कितनी है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि झील से खतरा है या नहीं।

उनके अनुसार हाल ही में धूंधी व पार्वती ग्लेशियर से शोध करके वापस लौटे वैज्ञानिकों ने जिस तरह इस बार ग्लेशियरों पर बर्फ पाई है उससे स्पष्ट है कि हिमालय रेंज में कम मात्रा में बर्फबारी हुई है। इंटरनेशनल सैंटर फार इंटीग्रेटेड माउंटेन डवेल्पमेंट कांठमांडू (इसीमोड) व गोबिंद बल्लभ हिमालय पर्यावरण संस्थान अलमोड़ा (जीवी पंत) द्वारा की जा रही रिसर्च से भी झीलों के उभरने का खुलासा हो रहा है। उधर अब सिस्सू गिपगांत ग्लेशियर पर बनी बड़ी झील खतरा बन गया है।

लाहुल स्पीति के सिस्सु गिपगांत ग्लेशियर में बड़ी झील बन गई है और इसका आकार बढ़ गया है। हमने लाहुल स्पीति प्रशासन को इसकी सूचना दी है।

Related Posts

Next Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!