(जसवीर सिंह हंस ) प्रदेश सरकार भले ही विकास व जन कल्याण की जितनी भी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो लेकिन नरकीय जीवन जी रहे हैं मानसिक पीड़ित लोगों की दयनीय हालत सरकार और प्रशासनिक अमले की इन दावों की पोल खोल रही है मानसिक पीड़ित लोगों के प्रति सरकार के इस तरह के वयवहार व मानवीय स्वाधीनता के चलते यह बदनसीब लोग जानवर से भी बदतर जीवन जी रहे हैं
खुले आसमान तले रहने को है मजबूर : हैरानी की बात यह है कि माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद जहा सरकारी अमला सड़क पर छोड़े गए मवेशियों के रहने के लिए गौशाला के निर्माण की योजना को आगे बढ़ा रहा है वही खुले आसमान तले ही जी रहे हैं इस तरह के मानसिक पीड़ित लोग के लिए कोई भी योजना नहीं बना पा रही है परिणाम स्वरुप दिमागी संतुलन खो चुके यह लोग सर्दी, गर्मी हो या बारिश खुले आसमान तले नारकीय जीवन जीने को मजबूर है
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बड़े शहरों मे चल रही संस्थाएं कई बार मानसिंक पीड़ितों के लिए स्थानीय प्रशासन जिला प्रशासन को कई बार ज्ञापन दे चुके हैं इतना ही नहीं कई बार सड़क हादसे में घायल हुए ऐसे लोगों का इलाज भी लोग करवा रहे हैं तथा इन्हें खाने को भी दे रहे हैं व इनका अंतिम संस्कार होने पर भी किया जा रहा है | लेकिन इस मानसिक पीड़ित लोगों का इलाज व रहने की व्यवस्था करने में सरकार और प्रशासन भी सक्षम है लेकिन दुर्भाग्यवश ना तो सरकार इनकी सुध ले रही है और ना ही प्रशासन कोई ठोस कदम उठा रहा है
हैरानी की बात यह भी है कि आखिर कहां से पहुंच जाते है : इस तरह के लोग जिला सिरमोर उत्तराखंड हरियाणा राज्यों से जुड़ता इलाका है तथा जहां पर इन राज्यों से मानसिक पीड़ित पहुंच जाते हैं हर साल नए नए मानसिक पीड़ित लोग यहां पर पहुंचते हैं इन अनजान लोगों को कौन या छोड़ कर चला जाता है या फिर यह लोग कैसे या पहुंच जाते हैं इसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं होती पुलिस और प्रशासन की तरफ से मानसिक रूप से अस्वस्थ इन लोगों के बारे में कोई छानबीन तक नहीं की जाती है
वहीं दूसरी ओर कई मानसिक पीड़ित कूड़ेदानों से भी खाते दिखाई देते हैं जिला सिरमौर में उपमंडल पांवटा साहिब में ही लगभग चार से पांच मानसिक पीड़ित लोग रह रहे हैं स्थानीय ढाबो व होटल के समीप से गुजरने पर कुछ दुकानदार इनको खाना दे देते हैं इसके अलावा यह मानसिक परेशान लोग कूड़ेदान से भी खाना बीनकर खाते हुए देखे जा सकते हैं इसके बावजूद ना तो किसी समाजसेवी संस्था का दिल इनकी दयनीय हालत पर पसीज रहा है और ना ही प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो रहा है
जबकि प्रदेश के गृह सचिव ने 17 फरवरी और पुलिस महानिदेशक ने 20 फरवरी को सभी पुलिस महानिरीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम तथा हाईकोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन करने के आदेश दिए। इसके बावजूद बेसहारा मनोरोगी सड़कों पर नर्क से बदतर जिंदगी जीने पर मजबूर हैं।पुलिस मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 और हाई कोर्ट की ओर से बेसहारा मनोरोगियों के बारे में 4 जून, 2015 को दिए गए स्पष्ट आदेशों का जानबूझकर उल्लंघन कर रहे हैं।
यह जिम्मेवारी पुलिस की है कि वह अपने क्षेत्र में बेसहारा घूमने वाले मनोरोगियों का संज्ञान ले। उन्हें अपने संरक्षण में लेकर नजदीकी न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास पेश करें। मजिस्ट्रेट मनोरोगियों के मानसिक स्वास्थ्य की जांच, इलाज और पुनर्वास का आदेश देते हैं। हाई कोर्ट ने प्रदेश के सभी पुलिस अधीक्षकों को आदेश दिया था कि वे बेसहारा मनोरोगियों के बारे में कानून का सख्ती से पालन करें।