भोर में, सुर्य की प्रथम किरण के साथ कुछ आखें स्वावलम्बन के सपनों को साकार करने की चमक के साथ खुलती है कुछ पग अपने परिवारों की आर्थिक दशा को मजबूत करनें के लिए जंगल की ओर रुख करते हैं। कुछ हाथ आत्मनिर्भता की तस्वीर को रंग भरने के लिए घास की सूखी तीलियों और “टोर” व “त्रम्बल” के हरे पत्तों को संग्रहित करते हैं।
जब सभी प्रक्रियाएं एक साथ पूर्ण होती है तब एकाएक गरीब परिवारों के चेहरों पर मुस्कान के साथ आशा का दीप उनके जीवन में खुशियां बिखेरने को आतुर होने लगता है। परिवार के बेहतर भविष्य की परिकल्पना को मूर्तरूप देने वाली बिलासपुर जिला के घुमारवीं विकास खण्ड की पंचायत पट्टा के गांव कोटला के स्वयं सहायता समुह “मुस्कान” की ग्रामीण महिलाओं ने स्वरोजगार के क्षेत्र में जो तीन वर्ष पूर्व पहल की थी उससे न केवल आत्म निर्भरता के द्वार खोल कर वह समाज में प्रेरणा का स्त्रोत ही बनी है अपितु प्राचीन परम्पराओं के संरक्षण और मानव जीवन को कैंसर जैसी भंयकर बीमारियों से बचाने का सशक्त जरिया भी बनी है।
बरठीं गांव की कान्ता देवी जब गांव कोटला में व्याह कर आई तो परिवार की आर्थिक स्थिति सन्तोषजनक नहीं थी। कान्ता देवी को जहां भविष्य में बढ़नें वाले अपने परिवार के भरण-पोषण की चिन्ता सतानें लगी। वहीं गांव के अन्य ग्रामीण परिवारों की आर्थिक स्थिति भी उन्हें कुछ विशेष अच्छी नहीं लगी। कान्ता देवी अपने गांव की महिलाओं के उत्थान और सामुहिक रूप से आजीविका के सरल मार्ग तलाशनें को सदैव प्रयासरत रहती लेकिन कोई उचित राह उन्हें दिखाई नही पड़ रही थी। एक तो गांव की महिलाएं अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थी उस पर पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करती और उम्र दराज होने के कारण वह कोई भारी व जटिल कार्य करने में सक्षम नहीं थी।
आत्मनिर्भरता के सपने बुनती कान्ता देवी को जब खण्ड विकास अधिकारी कार्यालय घुमारवीं की एल.एस.ई.ओ निर्मला भाटिया ने स्वयं सहायता समूह बनाकर सामुहिक रूप से कार्य करने को प्रेरित किया तो कान्ता देवी को अपने प्रयास फलीभूत होते नजर आने लगे। उन्हें आशा बन्धी कि अब उनके साथ-साथ अन्य ग्रामीण परिवारों का भविष्य भी आर्थिक दृष्टि से बेहतर हो जाएगा।
तीन वर्ष पूर्व राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत दस महिलाओं का “मुस्कान” नाम से स्वयं सहायता समुह बनाया गया। परिवारों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कमजोर होने के कारण ऐसा व्यवसाय अपनाने में सहमति हुई। जिस में निवेश राशि तो कम हो ही साथ में तैयार उत्पादों की बिक्री भी सरलता से सम्भव हो सके।
जिला ग्रामीण विकास अधिकरण विभाग ने इन महिलाओं को धार्मिक अनुष्ठानों, धामों और समारोहों इत्यादि में खाने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली “टोर” व “त्रम्बल” की पतलों व डोनों को निर्मित करने का न केवल मार्ग सुझाया बल्कि पारम्परिक रूप से पतलें बनाने वाली बुजुर्ग महिलाओं से प्रशिक्षण भी दिलवाया तथा व्यवसाय को बढाने के लिए 15 हजार रूपए की परिक्रमा राशि भी उपलब्ध करवाई।
आज मुस्कान स्वयं सहायता समुह की उम्रदराज 75 वर्षीय रामेश्वरी, 63 वर्ष की कमला के इलावा 43 वर्ष की तरुणा, 49 वर्ष की निर्मला, 38 वर्ष की सुनीता, 45 वर्ष की सन्तोष कुमारी, 33 वर्षीय अनुपमा इत्यादि महिलाओं के साथ नई पीढ़ी की युवा बच्चियां भी अपनी उंगालियों के हुनर के साथ न केवल पतले-डोनें व झाडू बनाकर सन्तोषजनक कमाई ही कर रही हैं बल्कि प्लास्टिक और थर्मोकोल से होने वाली कैंसर जैसी भंयकर बीमारियों से मानव जीवन को बचाने का कल्याणकारी कर्तव्य भी निभा रही है।
यूं तो मुस्कान समूह की महिलाएं अब प्रतिदिन अपने-अपने घरों में फुर्सत के समय पतले, डोने और झाडू बनाती रहती है लेकिन हर रविवार प्रातः यह महिलाएं जंगलों से टोर और त्रम्बल के पत्ते संग्रहित करके लाती है और पूर्ण आस्था और विधि विधान से पूजा अर्चना कर के सामुहिक रूप से अपने उत्पादों को बनाती है। यह महिलाएं हर रविवार को निर्धारित अलग-अलग सदस्या के घर में जाकर न केवल अपने उत्पाद ही निर्मित करती है अपितु सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के विषय में भी चर्चा करती है और प्राप्त जानकारियों को गांव की अन्य महिलाओं के साथ सांझा भी करती है।
अब मुस्कान स्वयं सहायता समूह ग्राम संगठन आशा दीप से जुड गया है तथा जिला स्तरीय व्यासपुरा फैडरेशन के घुमारवीं ब्लाक फैडरेशन “मातृ शक्ति” में भी शामिल होने के चलते इस स्वयं सहायता समूह द्वारा निर्मित उत्पादों को जहां स्थाई रूप से “घुमारवीं ग्रामीण हाट” में बिक्री के लिए स्थान मिल गया है वहीं समुह के सदस्यों को जिला व बाहरी क्षेत्रों में उत्पादित वस्तुओं की निर्माण तकनीक को सीखनें के अवसर भी सुलभ हो रहे है।
कान्ता देवी ने हाल में जिला ऊना में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में हैदरावाद से आए प्रशिक्षकों से मशीन द्वारा पतलो और डोने बनाने की सुधरी विधि व मशीन का तकनीकी ज्ञान प्राप्त किया है। कान्ता देवी का कथन है कि “प्रदेश सरकार के थर्मोकोल से बनें कप प्लेटो के प्रयोग को पूर्णतया प्रतिबन्धित लगाने से उनके व्यवसाय को संजीवनी मिल गई है।
अब थर्मोकोल के प्रतिबन्ध का प्रतिफल यह है कि पतलों और डोनों की मांग एकाएक बढ़ गई है। प्रधानमंत्री स्वावलम्बन योजना के अंतर्गत पत्तों की पतलों और डोनों को बनाने की मशीन को गांव कोटला में स्थापित करने के लिए हैदराबाद की कम्पनी से बात चल रही है।” शीघ्र ही “मुस्कान” समुह जिला की अन्य महिलाओं के जीवन में भी मुस्कान लाने के लिए प्रयासरत है। पर्यावरण संरक्षण और स्वस्थ मानव जीवन की दिशा में निसंदेह मुस्कान स्वयं सहायता समुह के प्रयास अनुकरणीय है।