आज भी सिरमौर के गिरिपार ओर उत्तराखंड के जौनसार बाबर में कबीला संस्कृति जिंदा है यहां आज भी लड़की के पक्ष वाले बारात लेकर लड़के के घर मे जाते है,इसे जाजड़ा परमपरा कहते है,सुनने में तो बड़ा अजीब लगता है लेकिन हकीकत है,
शनिवार को सम्पन्न हुई एक शादी इसका ज्वलंत उदाहरण है, जिसमे शिलाई तहसील के गांव परली की एक लड़की का विवाह उत्तराखंड की चकराता तहसील के कुवाणु गांव में सम्पन हुवा,जो कबीला संस्कृति के जाजड़ा परंपरा से सम्पन हुई,इस विवाह में वर नही बल्कि कन्या पक्ष कीओर से बारात वर के गांव गई जिसमे करीब 4 दर्जन लोग कन्या पक्ष की ओर से बराती शामिल हुए,पारम्परिक काविल अंदाज में सम्पन हुए इस विवाह समाहरोह में एक बात और देखने को मिली कि की यहां पूरे गांव की करीब 120 महिलाओं को अलग भोज दिया गया, जिसे रहिंन जिमाना कहते है,कबीला संस्कृति में नारियों का उच्च स्थान होता हैं,
गिरिपार के हाटी लदयाने ओर जौनसार बाबर के हजारों लोगों ने इस जाजड़ा परमपरा में भाग लिया,लेते भी क्यो नही को की जौनसार बाबर,गिरिपार के हाटीयों का छोटा भाई है,यह गिरिपार के लोगो के पास जनजातीय में लाने के पुख्ता सबूत है,भले ही उनको उनका हक नही मिला हो