क्या यही है मोदी जी के अच्छे दिन : स्वच्छ भारत अभियान में कुछ गांव अभी भी ऐसे हैं जहां पर लोग खुले में शौच करने पर है मजबूर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत वर्ष में स्वच्छ भारत की जितनी मर्जी अलाक जताले पर अभी भी सच्चाई जमीन पर देखने लायक है ऐसा ही एक मामला नाहन विधानसभा क्षेत्र के सैनवाला पंचायत के घूंधलो गांव का है जहां पर लगभग 40 परिवार ऐसे हैं जहां पर किसी भी घर में शौचालय नहीं बना हुआ है वहां की महिलाएं व बच्चे खुले में शौच करने पर मजबूर है।
इतना ही नहीं रात के समय जंगल में शोच जाते हुए उन्हें सांप व जंगली जानवरों का डर सताता रहता है इसके लिए वह सड़क किनारे ही शोच करने को मजबूर हैं वहीं बच्चों व महिलाओं ने सड़क किनारे इतनी गंदगी फैलाई हुई है कि वहां से गुजरने वाले नाक बंद किए बिना वहां से गुजर नहीं सकते इतना ही नहीं ग्रामीणों का कहना है कि वह ऐसे गांव में जी रहे हैं जहां के प्रधान उन्हें वोट लेने के बाद आज तक देखने नहीं आए पूरे गांव में किसी भी घर में पानी के लिए सिंचाई विभाग के द्वारा कोई भी व्यवस्था नहीं की गई है पूरे गांव में सिर्फ एक ही हैंडपंप लगाया गया है जिसके भरोसे 40 परिवार पानी पी रहे हैं।
यह गांव बाता नदी किनारे स्थित है तथा बरसात के मौसम में भूमि कटाव की समस्या बनी रहती है तथा लोगों को जान माल का डर हमेशा बना रहता है ग्रामीणों को कहना है कि सरकार शहरों को चकाचौंध करने में लगी है तथा हमारे गांव की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है कई बार वह प्रशासन से इस बात की गुहार लगा चुके हैं कि यहां पर डंगा लगाया जाए।
इस गांव में लगभग 40 घर हैं जो सभी के सभी गरीबी में अपना जीवन यापन कर रहे हैं महिलाएं घर पर रहती हैं तथा गांव के पुरुष मजदूरी करने पास के गांव में जाते हैं महिलाओं का कहना है कि यहां पर ना ही कोई ट्रांसपोर्ट की सुविधा है जिससे कि वह भी काम के लिए जा सके अगर वह काम के लिए जाना चाहती है तो उन्हें बाता नदी पार करनी पड़ती है जो कि कई बार उफान पर रहती है
गांव के पास में नहर बह रही है जिसमें बच्चों के डूबने की संभावना बनी रहती है इसके लिए भी ग्रामीणों ने नहर के किनारे जाल लगाने के लिए प्रशासन से कई बार गुहार लगाई है
इस गांव के लोगों का कहना यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा पूरे भारतवर्ष में गरीब परिवारों के स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान योजना चलाई जा रही है परंतु यह योजना इस गांव तक नहीं पहुंच पाई इस गांव में कई पुरुष और बच्चे ऐसे हैं जो कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं
इस गांव में बच्चों को स्कूल जाने में भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि यहां से स्कूल लगभग 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर है तथा आने जाने का कोई साधन नहीं है
भारत का इस वजह से बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का सपना भी अधूरा दिख रहा है यहां पर एक बेटी ने बताया कि वह पांचवी तक ही पढ़ पाई वह स्कूल जाना चाहती है परंतु जंगल के रास्ते स्कूल जाना पड़ता है तथा उसे अकेले जंगल के रास्ते स्कूल जाते हुए डर लगता है। उसकी माता का देहांत नहर में डूबने की वजह से हो गया था अतः वह डर के मारे स्कूल नहीं जा पाती।
इतना ही नहीं इस गांव के लोगों की जाति के साथ भी भेदभाव किया गया है यहां के लोग अपने आप को एससी जाति के बराबर मानते हैं परंतु उनकी जाति रंगास्वामी डाली गई है जो कि एक उच्च जाति के बराबर है तथा हिमाचल प्रदेश में यह जाति कहीं भी नहीं है यह जाति राजस्थान राज्य में है अतः यहां के युवाओं को भी एससी जाति का फायदा नहीं मिल पा रहा हैं उन्होंने इस बारे भी प्रशासन से कई बार गुहार लगाई परंतु नतीजा शून्य रहा
आज हमने देखा कि हिमाचल प्रदेश में ऐसा एक गांव है जहां पर हमारी टीम पहुंची और हमने यहां के ग्रामीणों से उनकी समस्याओं के बारे में पूछा परंतु सोचने का विषय यह है कि पूरे भारतवर्ष में ऐसे कितने गांव होगे। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे दिन आने की बात कर रहे है ऐसे अच्छे दिन भगवान किसी को ना दिखाए जिनको शोच के लिए भी डर कर जाना पड़ता है कि कहीं कोई सांप या जंगली जानवर न आ जाए।
यह क्षेत्र विधानसभा अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल तथा शिमला सांसदीय क्षेत्र सांसद वीरेंद्र कश्यप के निर्वाचन क्षेत्र में आता है तथा ग्रामीण इस बार लोकसभा चुनाव में नेताओं का बहिष्कार करेंगे उन्होंने कहा कि नेता सिर्फ वोट लेने के समय यहां पर आते हैं तथा उसके बाद इस गांव को भूल जाते हैं। इस बार सभी ग्रामीणों ने फैसला किया है कि वह लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे।
ग्रामीणों का कहना है कि कभी भी कोई प्रशासनिक अधिकारी व नेता उनकी स्थिति देखने आज तक नहीं आए
कई परिवार टूटी झोपड़ी में रहने को मजबूर है जिसमें बरसात के दिनों में पानी टपकता है प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत उन्हें मकान तक नहीं दिया गया है।
अब देखने की बात यह है कि इस गांव की सूध कौन लेगा सांसदों को ऐसे गांव गोद लेने की जरूरत है ना कि विधायकों के गांव जिनमें मूलभूत सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध है।