( नीना गौतम ) 80 वर्षीय विधवा शाऊनी देवी पिछले 50 वर्षों से व्यापार के सिलसिले में सैंज से अपने परिवार के साथ कुल्लू आ बसे और शाउनी देवी के पति सुनार के अच्छे कारीगरों में गिने जाते थे। इनकी कुल्लू दुकान में धीरे-धीरे काम समाप्त हो गया। बची हुई पूंजी परिवार के खर्चों और दुकान की देनदारी में ही समाप्त हो गई। शाऊनी देवी ने अपनी पति के साथ काम करके धीर-धीरे सुनार का काम सीख लिया था। इस परिवार कोचांदी के ऊपर सोने का पानी चढ़ाने में कुल्लू में अच्छे कारीगर के नाम सेजाने जाते थे और इन्हें इस काम में महारत हासिल थी।
पिछले 40 वर्ष पहले शाउनी देवी के पति के देहांत होने के पश्चात यह अपने दोनों बेटों को मेहनत से काम करके बड़ा किया और उनकी अब शादी हो चुकी है। शाऊनी देवी की एक बेटी भी है जो कि अपना परिवार के साथ अलग रहती है। दो-दो बेटों के बावजूद भी शाऊनी देवी अपने आप को अकेले ही महसूस करती है क्योंकि एक बेटा दूसरे शहर में काम के लिए जाता है दूसरा बेटे को पैरालाइसिस का अटैक हो गया। जिसके बाद अब वह कोई भी काम नहीं कर सकता। परिवार का पालन पोषण की सारी जिम्मेदारी शाऊनी देवी के सिर के ऊपर ही है।
पिछले कई वर्षों से शाऊनी देवी भी काफी बीमार चल रही है फिर भी वो मेहनत करने से पीछे नहीं हटी। इस परिवार पर दुखों का मानो पहाड़ ही टूट गया है । बेटे के लिए जाहू से आयुर्वेदिक दवाई का हर महीने का खर्चा,किराए के मकान में रहना और किराया जुटाना शाउनी देवी अपना परिवार का पेट पालने के लिए हर रोज ढालपुर सरवरी पुल के पास बैठकर अपनी आजीविका कमाने के लिए हाथ से बनाए हुए आभूषण को बेचती है। लेकिन आजकल फैशन के इस दौर में इन आभूषणों की डिमांड बिल्कुल खत्म हो चुकी है। लेकिन मजबूर है और कोई काम भी नहीं आता।
शाऊनी देवी अपना पुश्तैनी कारोबार करती है। पिछले कुछ महीने पहले शाऊनी देवी को भी पैरालाइसिस का अटैक पड़ गया जिस कारण अब यह आभूषण बिल्कुल ही नहीं बना सकती। ऐसे में शाऊनी देवी कार सेवादल के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंची। पिछले करीबन 8 महीने से राशन वह दवाइयां दी जाती थी लेकिन शाऊनी देवी मेहनत का काम करने की इच्छा रखती है। इसकी इच्छा को पूरा करने के लिए संस्था द्वारा इसे आर्टिफिशल ज्वेलरी का सामान डाल कर दिया गया ताकि यह वक्त के हिसाब से सामान को बेच सके और अपने परिवार का पालन पोषण कर सके।