हस्तशिल्प के संरक्षण के लिए नाकाफी है सरकारी प्रयास ,मैटल क्राफ्ट,बुड क्राफ्ट, स्टोन क्राफ्ट को कारगर नीति बनाने की जरूरत , दशहरा पर्व में आए हस्तशिल्पियों का कारोबार मंदा

( नीना गौतम ) हस्तशिल्प के संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास नाकाफी नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि आज हस्तशिपियों का कारोबार मंदा है और धीरे-धीरे यह कला समाप्त होती जा रही है और कारीगरों ने भी अपना पुश्तेनी धंधा छोड़कर अन्य कारोबार पकड़ने शुरू कर दिए हैं। मैटल क्राफ्ट,बुड क्राफ्ट व स्टोन क्राफ्ट के कारोबार को बढ़ावा दिया जा सकता है यदि सरकार की नजर ए इनायत इन पर हो। स्टोन क्राफ्ट तो लगभग विलुप्त हो चुका है।

दशहरा पर्व में इस समय हस्तशिपियों की लगभग 20 दुकानें लगी हुई है उनमें जहां सेल विल्कुल कम है वहीं स्टोन क्राफ्ट तो नजर ही नहीं आ रहा है। हालांकि मैटल क्राफ्ट व बुड क्राफ्ट में काफी सारा सामान व डिजाइन है। समृद्धि विकास समिति के अध्यक्ष वेद राम जो एक बेहतरीन हस्तशिल्पी है ने सरकार को कुछ सुझाब दिए हैं ताकि हस्तशिल्प का संरक्षण हो सके। उन्होंने कहा है कि पुरातन सांस्कृतिक धरोहर जैसे पत्थर, मिट्टी,धातु,लकड़ी,बांस,चर्म शिल्प आदि शिल्पों से बनाए जाने बाले उत्पाद विलुप्ति के कगार पर है। इन उत्पादों की मार्केटिंग नहीं हो पा रही है। इसलिए इन उत्पादों को लोगों की जरूरत के हिसाब से सस्ता और उपयोगी बनाकर भविष्य में सरकारी अर्ध सरकारी कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए और निफ्ड से शिल्पकारों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी व पर्यटकों को आकर्षित करने बाले उत्पाद तैयार किए जा सके।

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इसके अलावा ऐसे शिल्पकारों के प्रति विशेष योजना बनाने की आवश्यकता है। जिससे अच्छे कार्य करने बाले कारीगरों को समाज में सम्मान मिले। उनके अनुसार ऐसे शिल्पकारों को प्रदर्शनी कि प्रशिक्षण के दौरान प्रमाण पत्र जारी करने की भी आवश्यकता है और भाषा विभाग शिल्पकारों के लिए स्वीकृत करके कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। वेद राम ने कहा कि जब तक उपरोक्त उत्पाद राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बिकने लायक नहीं होते तब तक प्रदेश के ही अंतरराष्ट्रीय मेलों में शिल्प बाजार लगने चाहिए और वाटर प्रूफ,स्टाल,यात्रा भत्ता,रहने, खाने आनेरियम के लिए नगद राशि बैंक खाते द्वारा देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

गेयटी में कला अकादमी को दिए भाग में स्थायी बिक्री केंद्र व मार्केटिंग सेंटर खोला जाना चाहिए। प्लास्टिक उद्योगों ने हस्त शिल्प व एग्रीकल्चर टूल्स की नकल मारकर सेम उत्पाद तैयार कर रहे हैं जिससे इस कारोबार को नुकसान हुआ है अतः इसका समाधान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा विभाग हैंडलूम के कारीगरों को शिल्प मेले के दौरान आमंत्रित करता है इसमें अंकुश लगना चाहिए। कियूंकि हैंडलूम पर अन्य विभागों ने वर्षों से कार्य शुरू कर बुनकरों को विश्व स्तर बाजार तक पहुंचाया है जबकि हैंडीक्राफ्ट को शून्य के बराबर इसलिए हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट के लिए अलग-अलग योजनाएं बनाई जानी चाहिए। बहरहाल वेद राम के सुझावों पर सरकार व विभाग गौर फरमाते हैं तो हस्तशिपियों के कारोबार को संरक्षित किया जा सकता है।

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