राजगढ़ : हैदराबाद में भारतीय संस्कृति पर चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिमाचल के तीन अध्यापक कर रहे राज्य का प्रतिनिधित्व

सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी ) हैदराबाद में सेवारत अध्यापकों के लिए गत 2 दिसंबर से आगामी 24 दिसंबर तक चल रहे 456वें अनुस्थापन पाठ्यक्रम कार्यक्रम में प्रदेश के तीन अध्यापक हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । जिसमें सिरमौर जिला के वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला टिम्बी के अर्थ शास्त्र प्रवक्ता रमेश चौहान, जिला शिमला के वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला पीरन के हिंदी प्रवक्ता नरेश छाजटा और हमीरपुर जिला के वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला नाल्टी में अर्थशास्त्र विषय के प्रवक्ता राकेश चंदेल भाग ले रहे हैं ।


प्रशिक्षण पर गए नरेश छाजटा ने इस बारे जानकारी देते हुए बताया कि इस 23 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में विद्वान स्त्रोत्र व्यक्तियों द्वारा भारतीय संस्कृति के बारे जानकारी दी जा रही है ताकि प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे अध्यापकों को देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति का बोध हो सके और प्रशिक्षण के उपंरात अध्यापक अपने स्कूलों में बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे जानकारी दे सके । उन्होने बताया कि भारतीय संस्कृति को शिक्षा के साथ समावेश करने के उददेश्य से यह प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है और देश के विभिन्न राज्यों से आए अध्यापक अपने क्षेत्र व प्रदेश की संस्कृति की जानकारी सांझा कर रहे हैं ।

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उन्होने बताया कि हिमाचल प्रदेश से प्रशिक्षण गए अध्यापकों द्वारा प्रदेश की समृद्ध संस्कृति को रीति रिवाज, वेष भूषा, खान पान और लोक गीतों की झलकियों इत्यादि के माध्यम से अन्य राज्य से आए अध्यापकों को रू-ब-रू करवाया । सिरमौर व शिमला की नाटी सभी प्रतिभागियों को बहुत पसंद आई और सभी नाटी की ताल पर नृत्य करने लगे । इसके अतिरिक्त नरेश छाजटा द्वारा चंबा की प्रसिद्ध प्रेम गाथा कुंजु चंचलों सुनाकर सभी को भाव विभोर कर दिया । इसी प्रकार राकेश चंदेल द्वारा कांगड़ी गीत फौजी मुंडा आ गया छुटटी तथा बिलासपुर का प्रसिद्ध गीत खाणा पीणा नंद लेणा नी गंभरीये प्रस्तुत करके राज्य की संस्कृति से रू-ब-रू करवाया । जबकि रमेश चौहान ने प्रदेश की समृद्व संास्कृतिक विरासत बारे प्रतिभागियों को जानकारी दी और बताया कि हिमाचल प्रदेश को विश्व में देवभूमि के नाम से जाना जाता है और प्रदेश के गांव गांव में बने देवी देवताओं के प्राचीन मंदिर, वेशभूषा, पारंपरिक व्यंजन, मेले और त्यौहार राज्य की संस्कृति और सभ्यता के परिचायक हैं ।

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