(रेणुका गोस्वामी/धनेश गौतम )राष्ट्र स्तरीय विंटर कार्निवाल के दूसरे दिन देशभर से आए पर्यटकों को कुल्लवी परिधानों का संदेश देकर पर्यटकों को मदहोश किया। प्रथम दिन की कुल्लवी नाटी में 41महिला मंडलों की 500 महिलाओं ने पारंपरिक परिरधान पट्टु व धाठु में महिला मंडलों ने कुल्लवी नाटी में हिस्सा लिया और कुल्लवी परिधानों में सजकर महिलाओं ने नृत्य किया। इस दौरान देवभूमि की परंपरा का बखूवी प्रदर्शन हुआ और हजारों लोगों ने इसका लुत्फ उठाया। मनाली पहुंचे हजारों पर्यटक हिमाचली संस्कृति के दिवाने हो गए हैं। खासकर कुल्लवी पट्टू व धाठु में सुसज्जित महिलाएं जब मालरोड़ में अपनी प्राचीनतम संस्कृति व सांस्कृतिक विरासत को लेकर आई तो यहां पहुंचे पर्यटक दंग रह गए।
मनाली माल रोड़ पर जहां महिलाओं ने अपनी वेशभूषा में आकर बेहतरीन प्रदर्शन किया वहीं मनुरंगशाला में पुरातन गीतों की झड़ी लगाकर सबका मन मोह लिया। जब पुरातन वेशभूषा में सैंकड़ों महिलाएं उतर आई तो मानो मनाली का दृश्य स्वर्ग से कम नहीं था। विंटर कार्निवल में जब महिलाएं अपने पारंपरिक परिधानों और पौराणिक आभूषणों के साथ मालरोड़ पर उतरी तो पंडाल में बैठे लोग दांतों तले ऊंगलियां दबाते रह गए वहीं पंडाल में बैठे सैंकड़ों लोगों ने महिलाओं की अदाओं पर जमकर तालियां बजाते हुए यहां की प्राचीनतम वेशभूषा को सलाम किया। वहीं महिलाओं के पौराणिक आभूषणों में चंद्र हार, बालू, बाजू बंद, पंजेब, तीन फुल वाले पट्टू, किन्नौरी पट्टू पहनकर कुल्लवी नृत्य किया। वहीं, महिलाओं की सामूहिक नाटी के अलावा मनुरंगशाला में अन्य कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया और मनाली पूरी तरह से हिमाचल संस्कृति और कुल्लवी परिधानों में सराबोर हुई।
पांच वर्ष पहले कुल्लू में उपायुक्त रहे राकेश कंवर ने कुल्वी नाटी व यहां के परिधानों को विश्वभर में पहचान दिलवाई है। मनाली के विंटर कार्निवाल के आगाज के जिस तरह डा. हरनाम सिंह को जाना जाता है ठीक उसी तरह कुल्लू की सामुहिक कुल्वी नाटी के जन्मदाता के रूप में राकेश कंवर को जाना जाएगा। ऐसा नहीं है कि कुल्वी नाटी पांच वर्ष पहले ही शुरू हुई बल्कि यह नाटी तो सदियों पुरानी है लेकिन जिस तरह से राकेश कंवर ने सामूहिक नाटी के दायरे को बढ़ाया वह कार्य सराहनीय है। पहले हर मेलों व उत्सवों में कुल्वी नाटी नाची जाती रही है इसमें इच्छा अनुसार लोग लाइनबद होकर अपनी मर्जी के नाचते रहे हैं और इसकी संख्या 100 या 200 से ऊपर नहीं जाती थी लेकिन पांच वर्ष पहले तत्कालीन डीसी राकेश कंवर ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ उद्देश्य को लेकर विशाल सामूहिक नाटी की रूपरेखा तैयार की और यह योजना कामयाव भी हुई।
अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व के दौरान 10 हजार से अधिक महिलाओं की एक साथ सामूहिक नाटी पारंपरिक वेशभूषा में करवाई गई। इस नाटी का प्रसारण भी पूरी दुनिया में हुआ और कुल्लू ने सबसे बड़ी कुल्वी नाटी का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। ढालपुर मैदान उस समय देवलोक से कम नहीं लग रहा था। एक तरफ स्वर्गलोक के सभी देवी-देवता धरती पर उतर आए थे और दूसरी तरफ मानो देव लोक की हजारों परियां पारंपरिक परिधानों में देवधुन पर थिरक रही थी। उस समय का जो नजारा था वोह सिर्फ दिल व दिमाग को सकून देने वाला ही नहीं था बल्कि दुनिया का सबसे हसीन व खूबसूरत दृश्य था।
ढोल-नगाड़ों की धुन व शहनाईयों,नरसिंगो एवं करणालियों की स्वर लहरियों की मधुर ध्वनि एक साथ धरतीलोक व स्वर्गलोक के वातावरण को शुद्ध कर रही थी ऐसा वातावरण उस समय बना था। लिहाजा यह सामूहिक नाटी दुनिया भर में पहले लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हुई। उसके बाद विश्वभर में प्रसिद्ध तो हो ही गई साथ ही गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में भी दर्ज हुई। यही नहीं इस नाटी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और दुनियां में रिकार्ड बनाकर अपना अलग ही नाम स्थापित किया। उसी समय से अब यह परंपरा शुरू हो गई है और आज पूरे कुल्लू के मेलों व त्योहारों में इसी तरफ की नाटी का आयोजन किया जा रहा है। विंटर कार्निवाल हो या फिर बंजार-आनी मेला बस इसी तरह की नाटी की परंपरा बन गई है जो राकेश कंवर ने शुरू की थी। आज भी कुल्लू के लोग उनके इस प्रयास की सराहना करते हैं और भविष्य में भी कुल्लू की सामूहिक विशाल नाटी के जन्मदाता का इतिहास भी राकेश कंवर के ही नाम रहेगा। नोट:फोटो राकेश कंवर के नाम से भेजी है।
विंटर क्वीन प्रतियोगिता ने भाग लेने आई सुंदरियां सर पर ताज सजाने के लिए बेताव हैं। विंटर क्वीन प्रतियोगिता में भाग लेेने आई कुछ सुंदरियों से आपका फैसला ने जब बात की तो पता चला कि सभी युवतियां जीत के लिए आश्वस्त है। सुंदरियों का कहना है कि वे अपने परिवार के साथ इस प्रतियोगिता में भाग लेने आई है और उसे पूरा विश्वास है कि वह इसप्रतियोगिता को जीत जाएगी। अधिकतर सुंदरियों ने बताया कि वे विंटर क्वीन बनकर बॉलीबुड की दहलीज लांघना चाहती है। वहीं, देश विभिन्न कोनों से आई कई सुंदरियों ने ..बताया कि उन्हें मॉडलिंग में काफी शौक है और वे इस प्रतियोगिता को जीतकर यह दर्शाना चाहती है कि शीत स्थलों में भी प्रकृति के साथ सुंदरता भी बसती है।
वहीं, अन्य स्थानों से आई सुंदरियों का कहना है कि आज प्रदेश की बेटियों ने दुनिया में नाम कमनाया है और अब वे सौंदर्य की दुनिया में नाम कमाना चाहती है। कुछ सुंदरियों का कहना है कि मुकाबला काफी कड़ा है लेकिन फिर भी इस प्रतियोगिता में भाग लेकर विंटर क्वीन के ताज को हासिल करना उनकी चाहत है। उनका कहना है कि यहां पर जो भी विंटर क्वीन बनी है उनका भविष्य मॉडलिंग व बॉलीबुड की दुनिया में बना है। इसलिए वह भी इस ताज को पाने के लिए बेताव है। गौर रहे कि विंटर क्वीन प्रतियोगिता विंटर कार्निवाल का मुख्य आकर्षण रहता है। इसके लिए पहले प्रदेश व प्रदेश से बाहर ऑडिशन होते हैं और ऑडिशन में चुनी सुंदरियां ही यहां आकर प्रतिस्पर्धा में भाग लेती हैं।












