जिला सिरमौर के नरोत्तम सिंह ने प्राकृतिक खेती से सुधारी अपनी आर्थिकी, उगा रहे विभिन्न प्रकार की सब्जियां

जिला सिरमौर के अर्न्तगत विकास खण्ड नाहन की पंचायत मातर गांव डाकरावाला के किसान नरोत्तम सिंह ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत जीवामृत व घनजीवामृत विधि को अपनाकर कृषि की गुणवत्ता में अच्छी बढ़ोतरी के साथ-साथ मृदा की गुणवत्ता में सुधार कर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ किया है। नरोत्तम सिंह बताते है कि उन्होने प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण कृषि विभाग द्वारा कुफरी में आयोजित पांच दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में लिया था जिसमे किसानों को जीवामृत घोल, सुखा घनजीवामृत तथा बीजामृत इत्यादि बनाने की विधि तथा प्रयोग आने वाली सामग्री के बारे में जानकारी प्रदान की गई। इस प्रशिक्षण के बाद उन्होने निर्णय लिया कि वह अपने खेतो में रसायनो का प्रयोग छोड़ कर सिर्फ प्राकृतिक विधि से ही कृषि करेगें। अपने इस निर्णय को अमलीजामा पहनाते हुए उन्होने आपनी सात बीघा जमीन में से पांच बीघा पर प्राकृतिक विधि से खेती करना आरम्भ किया जिसमें मुख्यतः धान, गेंहू, लहसून, मटर, मक्का व विभिन्न प्रकार की सब्जियां जिनमें कचालू, भिण्ड़ी, घीया, कद्दू, खीरा और मिर्च इत्यादि शामिल है।

प्राकृतिक विधि से खेती करने के उपरान्त उन्होने महसूस किया कि अब मृदा की गुणवत्ता और पानी की क्षमता को बनाए रखने में जीवामृत और घनजीवामृत के प्रयोग से काफी सुधार हुआ है। उन्होने पाया कि मृदा में देसी केंचुओं की मात्रा बढ़ी है जिससे मृदा अधिक उपजाऊ होने लगी है और जीवामृत, बीजामृत तथा घनजीवामृत को बनाने से कम खर्च में कृषि करना संभव हुआ है।नरोत्तम सिंह बताते है कि प्राकृतिक खेती द्वारा प्रभावी ढ़ंग से अलग-2 फसलों की पैदावार में भी अन्तर देखने को मिला है। पहले जहां 1.5 बीघा जमीन में पांच क्विंटल तक धान की फसल प्राप्त होती थी वहीं अब इस विधि से खेती करने के उपरान्त उसी जमीन पर 5.5 क्विंटल धान की फसल प्राप्त हो रही है। वहीं 0.4 बीघा भूमि में मक्का की ऊपज एक क्विंटल से बढ़कर 1.20 क्विंटल हो गई है। एक बीघा भूमि में लहसूल की पैदावार 2.5 क्विंटल से बढ़कर 3 क्विंटल से उपर हो गई है। कचालू की ऊपज 0.3 बीघा जमीन पर 50 किलो से बढ़कर 1.5 क्विंटल हो गई है। इसी प्रकार अन्य फसलों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है जिनमें मक्का, अदरक, हल्दी, लहसून, कटहल, नींबू, उड़द, आलू तथा मिर्च इत्यादि की फसलें शामिल है।

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नरोत्तम सिंह ने बताया कि वह प्राकृतिक खेती अपनाकर पूरी तरह संतुष्ट है तथा उनका मानना है कि इस विधि से अब मिट्टी अधिक उपजाऊ तथा उसकी गुणवत्ता में और अधिक सुधार हुआ है और इस प्रयोग से कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। उनका पूरा परिवार अब इस विधि से ही कृषि कर रहा है और मौसमी फसलों की खेती से लगभग 80 से 90 हजार रूपये की आय प्राप्त हो रही है।


क्या है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती – प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौ मूत्र पर आधारित है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा बीजामृत बनाकर खेती में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। प्राकृतिक खेती के तहत किसान केवल उनके द्वारा बनाई गई खाद और अन्य चीजों का प्रयोग करते है तथा इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटानाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान 30 एकड़ जमीन पर खेती कर सकता है।जीवामृत – एक बीघा भूमि के लिए जीवामृत घोल बनाने हेतू 40 लीटर पानी, देसी गाय का 2 किलोग्राम गोबर, देसी गाय का मूत्र 1.5 से 2 लीटर, 250 से 300 ग्राम गुड़, 250 से 300 ग्राम बेसन तथा एक मुटठी खेत या मेढ़ की मिटटी को अच्छी तरह टंकी में 2 या 3 मिनट तक अच्छी तरह घोलें फिर टंकी को बारी से ढ़क कर 72 घंटे तक छाँव में रख दे व प्रतिदिन सुबह-शाम इसे 2 या 3 मिनट घोलें। जीवामृत घोल तैयार होने के बाद इसका उपयोग 7 दिन के अन्दर-अन्दर कर लेना चाहिए। घनजीवामृत – इसी प्रकार एक बीघा भूमि हेतू घनजीवामृत बनाने के लिए देसी गाय का 20 किलोग्राम गोबर, 250 ग्राम गुड़, 500 ग्राम बेसन तथा एक मुटठी खेत या मेढ़ की मिटटी, देसी गाय का मूत्र आवश्यकतानुसार लेकर गोबर, गुड़, बेसन व मिट्टी को अच्छी प्रकार से मिला ले तथा आवश्यकतानुसार इसमें थोड़ा- थोड़ा गौ-मूत्र मिलाए फिर इस मिश्रण को 2-4 दिन तक छाँव में सुखाए। मिश्रण को अच्छी प्रकार सुखाने व बारीक करने के बाद खेत में उपयोग करें। इस सूखे घनजीवामृत को बोरी में भरकर एक साल तक उपयोग कर सकते है।

बीजामृत – 20 किलोग्राम बीज के लिए बीजामृत बनाने हेतु 4 लीटर पानी, देसी गाय का एक किलोग्राम गोबर, देसी गाय का एक लीटर मूत्र, 50 ग्राम चूना तथा एक मुट्ठी खेत या मेढ़ की मिट्टी लेकर इस सामग्री को अच्छी तरह टंकी में 2-3 मिनट तक घोले फिर टंकी को बोरी से ढ़क कर छाँव में रख दें तथा सुबह-शाम इसे 2-3 मिनट घोलें। इस घोल को 24 घंटे रखने के बाद बीज उपचारित करें। उपरोक्त विधियों में केवल देसी गाय के गोबर का ही उपयोग करे। आधा गोबर बैल का भी मिला सकते है लेकिन अकेले बैल का गोबर नहीं होना चाहिए। इस विधि में भैंस, जर्सी और होल्स्टीन गाय का मूत्र नहीं मिलाना है। गाय का गोबर जितना ताजा होगा उतना ही अच्छा होगा व गौ-मूत्र जितना पूराना होगा उतना ही लाभकारी होगा। गोबर 7 दिन तक प्रभावशाली होता है। जो गाय दूध नहीं देती है उसका गोबर व मूत्र उतना ही अधिक प्रभावशाली होता है, जितना एक दूध देने वाली गाय का होता है।


परियोजना निदेशक, कृषि प्रौद्योगिकी प्रबन्धन जिला सिरमौर राजेश कौशिक ने बताया कि जिला सिरमौर में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान विभाग द्वारा तीन कृषक प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया गया जिनमे 82 पंचायतों के 316 कृषकों को प्राकृतिक खेती अपनाने हेतू प्रशिक्षित किया गया। इन 316 कृषकों में से 205 कृषकों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया जबकि शुरुआती दौर में विभाग द्वारा मात्र 20 कृषकों को इस योजना के अर्न्तगत लाने का लक्ष्य रखा गया था। उन्होने बताया कि इस योजना के तहत लगभग 52.50 हैक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती के अर्न्तगत लाया गया है। इसी प्रकार वित्त वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत 186 पंचायतों के 4325 कृषकों को 122 प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से प्राकृतिक खेती अपने हेतू प्रशिक्षित किया गया जिसमें से 2968 किसानों द्वारा प्राकृतिक खेती को अपना कर अपनी आर्थिकी सुदृढ़ की गई जबकि विभाग द्वारा 2500 किसानों को इस योजना के अर्न्तगत लाने का लक्ष्य था तथा इस वित्त वर्ष के दौरान 256.81 हैक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती हेतू तैयार किया गया है।

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