पांवटा साहिब : फैक्ट्री मालिक ने 118 के नियमो की उड़ाई धज्जियां, बेनामी संपत्ति खरीदने के आरोप

इस्लामिक एजुकेशन सोसाइटी की जमीन पर अवैध कब्जा, शिक्षा के लिए निर्धारित भूमि पर स्थापित की गई फैक्ट्री

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पांवटा साहिब में इस्लामिक एजुकेशन सोसाइटी द्वारा करोड़ों रुपये की जमीन बेनामी तरीके से फैक्ट्री मालिको को बेचने का मामला सामने आया है। आरोप है कि इस जमीन का इस्तेमाल एक अरबपति फैक्ट्री मालिको ने अपने काले धन को सफेद करने के लिए किया है।

बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016

यदि कोई व्यक्ति सक्षम न्यायालय द्वारा बेनामी लेन-देन के अपराध में दोषी पाया जाता है, तो उसे कम से कम एक वर्ष की अवधि के लिये कठोर कारावास की सज़ा हो सकती है, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।वह जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा जो संपत्ति के उचित बाज़ार मूल्य के 25% तक हो सकता है

सूत्रों के अनुसार, मुस्लिम समाज के बच्चों की शिक्षा के लिए निर्धारित 5.7 बीघा जमीन कथित रूप से व्यक्ति के नाम पर बेनामी संपत्ति के तौर पर खरीदी गई है। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इस जमीन पर इंडस्ट्रीज स्थापित की गई हैं, जबकि यह जमीन शिक्षा के उद्देश्य के लिए थी।

अवैध बिक्री की शिकायत दर्ज

तहसीलदार पांवटा साहिब ऋषभ शर्मा को इस मामले की शिकायत दस्तावेजों के साथ सौंपी गई है। शिकायत के अनुसार, इस्लामिक एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष सहित 16 सदस्यीय कमेटी ने न केवल जमीन को अवैध तरीके से बेचा बल्कि करोड़ों रुपये की धनराशि को अपने व्यक्तिगत खातों में मंगवाया है।

शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि इस बिक्री में भू अधिनियम के तहत धारा 118 का उल्लंघन किया गया है। कानून के अनुसार, किसी भी धार्मिक संस्था की जमीन को सीधे तौर पर बेचा नहीं जा सकता। इसके अलावा, सूरजपुर में स्थापित फार्मा कंपनी द्वारा बिना धारा 118 की अनुमति के इस जमीन का इंडस्ट्रियल उपयोग भी किया जा रहा है, जिससे सरकार को करोड़ो रूपए का राजस्व का नुकसान हो रहा है। इस सारी मिलीभगत में उद्योग विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों का भी योगदान है

अवैध कब्जे का आरोप, शिकायतकर्ताओं को मिल रही धमकियां

शिकायतकर्ताओं का दावा है कि जिस जगह जमीन पर कब्जा किया गया है, वह दस्तावेजों के अनुसार लगभग 1 किलोमीटर दूर स्थित है। इस पूरे मामले में तहसीलदार ऋषभ शर्मा ने जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि अगर आरोप सही साबित होते हैं तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

उधर, इस मामले के उजागर होने के बाद शिकायतकर्ताओं को जान से मारने और तेजाब फेंकने की धमकियां भी दी जा रही हैं। शिकायतकर्ताओं ने प्रदेश सरकार से बिना भेदभाव के कड़ी कार्रवाई की मांग की है  प्रदेश सरकार से उम्मीद है कि कानून का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी और दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाएंगे।

 

सरकार से अनुमति लेने पर मालिकाना हक मिल सकता है लेकिन ऐसे उदाहरण बहुत कम हैं. उद्योग या पर्यटन से जुड़े विकास से जुड़े मामलों में ही सरकार हर मसले और जानकारी की पूरी तरह से जांच परख के बाद ज़मीन पर फैसला लेती है. जमीन का CLU यानी चेंज लैंड यूज भी नहीं किया जा सकता. यानी जमीन अगर किसी अस्पताल के लिए ली गई तो उसपर मॉल या अन्य औद्योगिक इकाई नहीं लग सकती.

लीज को लेकर भी हिमाचल में कड़े नियम हैं. लीज या फिर पावर ऑफ अटॉर्नी की जमीन भी किसी हिमाचली के नाम पर ही होगी. मौजूदा सुखविंदर सुक्खू सरकार ने लीज के वक्त को घटाकर 99 वर्ष से 40 साल कर दिया है. हालांकि हिमाचल के भूमि सुधार अधिनियम में कई ऐसे पहलू हैं जो सरकार की मंजूरी के साथ गैर हिमाचली या गैर कृषक के ज़मीन खरीदने का प्रावधान है. लेकिन भूमि सुधार अधिनियम के तहत धारा 118 हिमाचल के लोगों की हितों की रक्षा करती है और ज़मीन का मालिकाना हक हिमाचल के किसान को ही देती है.

सुप्रीम कोर्ट ने भी किया साफ-फरवरी 2023 में एक मामले की सुनवाई के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा था कि हिमाचल प्रदेश में केवल किसान ही जमीन खरीद सकते हैं. अन्य लोगों को राज्य में जमीन खरीदने के लिए राज्य सरकार से इजाजत लेनी होगी. 1972 के भूमि सुधार अधिनियम का हवाला देते हुए जस्टिस पीएस सिम्हा और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि “इसका उद्देश्य गरीबों की छोटी जोतों (कृषि भूमि) को बचाने के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए बदलने की जांच करना भी है”

धारा 118 की जरूरत क्यों पड़ी- हिमाचल प्रदेश को साल 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था. देश के 18वें राज्य के रूप में हिमाचल अस्तित्व में आया तो एक साल बाद ही भूमि सुधार कानून लागू हो गया. कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति कृषि की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता. फिर लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता. हिमाचल में बागवानी और खेती के कारण यहां की प्रति व्यक्ति आय देश में टॉप के राज्यों पर है. ये बात अलग है कि उद्योगों के लिए सरकार जमीन देती है. भौगोलिक दृष्टि से हिमाचल के ज्यादातर इलाके देश के दुर्गम इलाकों में आते हैं. हिमाचल के पास सीमित भूमि है और पहाड़ी पर्यटन राज्य होने के नाते हिमाचल के निर्माताओं को पहले से भविष्य को भांपते हुए हिमाचल के छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा के लिए ये कदम उठाया.

 

 

वही शिकायतकर्ता अब इस मामले में सीबीआई जांच के लिए भी हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं वहीं ईडी को भी इस मामले में शिकायत करने की तैयारी कर ली गई है इसके बाद जिसके बाद फैक्ट्री मालिक और अन्य लोग कानूनी दायरे में आ सकते हैं और जेल की सलाखों के पीछे भी जा सकते हैं

गौरतलब है की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), जो घरेलू कानून प्रवर्तन एजेंसी और आर्थिक खुफिया एजेंसी दोनों के रूप में कार्य करता है, भारत में आर्थिक कानूनों को लागू करने और आर्थिक अपराधों से लड़ने के लिए जिम्मेदार है।प्रवर्तन निदेशालय आर्थिक अपराधों, मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन से जुड़े मामलों की जांच और कानूनी कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार है। इसका मुख्य लक्ष्य काले धन के सृजन और हस्तांतरण को रोकना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी मुद्रा विनियमों का पालन किया जाए और मनी लॉन्ड्रिंग से बचा जाए।

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