हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के चीफ इंजीनियर विमल नेगी मौत मामले की जांच में प्रदेश मुख्यालय अधिकारियों व शिमला जिला पुलिस अधिकारियों के बीच चल रही अंतर्कलह अब सबके सामने आ गई है। मामले को लेकर प्रदेश पुलिस महानिदेशक अतुल वर्मा की ओर से कोर्ट में दायर किए गए हलफनामे पर सवाल उठाने के बाद एसएसपी शिमला संजीव कुमार गांधी ने शनिवार को पत्रकार वार्ता कर कई गंभीर आरोप लगाए। संजीव गांधी ने कहा कि 25-26 वर्षों का मैंने ईमानदारी भरा अपना पुलिस कॅरियर तपस्या की तरह लगाया है। अगर कोई मेरी इस ईमानदारी व प्रोफेशनल अखंडता पर सवाल उठाता है तो मैं पुलिस का पद छोड़ना पसंद करूंगा। इसलिए हमारी एसआईटी इस मामले को दोबारा अदालत में लेकर जाएगी। जो हमने जांच की है, उसे सुरक्षित करवाना चाहते हैं ताकि विमल नेगी को न्याय मिल सके।
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कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे और सारी सच्चाई कोर्ट के समक्ष रखेंगे। विमल नेगी को न्याय दिलाकर रहेंगे। संजीव गांधी ने डीजीपी पर कई गंभीर आरोप लगाए। गांधी ने कहा कि जब मिडल बाजार में गैस ब्लास्ट हुआ, जिसमें एनएसजी को बुलाया जाता है। कुछ समय के बाद एनएसजी की रिपोर्ट आती है कि यह धमका आतंकी हमला है और इसमें आरडीएक्स मिला था। फिर डीजीपी मेरे बारे में मुख्य सचिव को पत्र लिखते हैं कि इसमें एसपी शिमला की लापरवाही है और सबूतों को नष्ट किया गया है। लेकिन आज उस जांच की रिपोर्ट सामने आ गई है, जिसमें यह पाया गया कि उसमें कोई विस्फोटक सामग्री नहीं थी, एलपीजी से विस्फोट हुआ था। इससे सवाल उठता है कैसे हमारे बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी एनएसजी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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गांधी ने आगे कहा कि शिमला पुलिस ने सीआईडी के एक मामले में जांच की थी, लेकिन इसका एक गुप्त पत्र को चुराकर पुलिस महानिदेशक के निजी स्टाफ की ओर से लीक करवाया गया था। इस संबंध में एफआईआर पंजीकृत हुई थी। इसमें पुलिस महानिदेशक का निजी स्टाफ संलिप्त है। इसकी जांच चल रही थी, लेकिन इसे बाधित करने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। यही नहीं जिला शिमला पुलिस को कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिसमें पुलिस महानिदेशक के आचरण को लेकर गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं। कुछ दिन पहले शिकायत प्राप्त हुई कि पुलिस महानिदेशक ने सीआईडी में रहते हुए एक जूनियर अधिकारी पर दबाव बनाकर एक रिपोर्ट तैयार करवाई और कोर्ट को गुमराह किया।
गांधी ने कहा कि उनके कार्यकाल में पिछले ढाई साल से चिट्टा तस्करी के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया गया है। इसमें ये सामने आया है कि एक संजय भूरिया नामक गैंग में डीजीपी के निजी स्टाफ का कर्मचारी संलिप्त पाया गया है। इसे लेकर सेशन कोर्ट में आगामी जांच के लिए अनुमति मांगी है। जब पुलिस महानिदेशक का कार्यालय का इस प्रकार के व्यक्तियों के साथ संचालित हो रहा तो पुलिस अधीक्षक का धर्म व कर्म बनता है कि न्याय व प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए ऐसे कार्यालय की विश्वसनीयता के बारे में जनता को भी सचेत करें और इस तरह की महत्वपूर्ण जांच को भी इस तरह के व्यक्ति से बचाए। डीजीपी के इस संबंध में समय-समय पर चिट्ठियां सरकार को लिखी गई हैं। वीनय अग्रवाल मामले पर डीजीपी पर सवाल उठाए हैं।