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हिमाचल प्रदेश के सिरमौर में हुई एक शादी पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है। वजह है कि इस शादी में दुल्हन तो एक ही थी, लेकिन दूल्हे दो थे। दोनों के साथ उस दुल्हन ने शादी की सभी रस्में पूरी कीं और दोनों को अपना पति बना लिया। हिमाचल प्रदेश के हट्टी जनजाति में इस तरह की शादी की पुरानी परंपरा है। लेकिन आम तौर पर ऐसी शादियां परंपरा के अनुसार गांव के भीतर चुपचाप हो जाती थीं। मगर इस बार तीनों ने हजारों लोगों की मौजूदगी में खुले मंच पर विवाह किया और कैमरों के सामने इसे स्वीकार भी किया। जानकारी अनुसार शादी समारोह में आसपास के गांवों समेत करीब 4 हजार रिश्तेदार व मेहमान शामिल हुए। तीन दिनों तक उत्सव जैसा माहौल रहा और सभी को पारंपरिक व्यंजन परोसे गए।
कौन हैं दुल्हन और पति बने दोनों भाई?
दुल्हन सुनीता चौहान कुंहाट गांव से हैं। बड़े भाई प्रदीप नेगी जल शक्ति विभाग में कार्यरत हैं और छोटे भाई कपिल नेगी फिलहाल विदेश में एक होटल में नौकरी करते हैं। विवाह की सभी रस्में पूरी रीति-रिवाज से निभाई गईं। 11 जुलाई को रस्में शुरू हुईं, 12 जुलाई को बारात कुंहाट गांव पहुंची और उसी दिन सुनीता की विदाई भी हुई। 13 जुलाई को लड़के वालों के घर बाकी रस्में पूरी हुईं।
भारत में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत बहुपति विवाह कानूनी रूप से मान्य नहीं है। ऐसे में जब कोई महिला दो भाइयों से विवाह करती है तो सरकारी कागजों पर उसका विवाह केवल बड़े भाई के नाम से ही दर्ज होता है। छोटा भाई कानूनी रूप से पति नहीं माना जाता।
कैसे तय होता है बच्चे के पिता का नाम
इसके अलावा शादी के बाद महिला के पहले बच्चे के जन्म पर सरकारी दस्तावेजों में पिता का नाम बड़े भाई का लिखा जाता है। अगर महिला दूसरा बच्चा जन्म देती है तो उस बच्चे के पिता के रूप में छोटे भाई का नाम दर्ज कराया जाता है। इस तरह बच्चों को भाइयों के नाम से कानूनी पहचान दी जाती है। संपत्ति के मामले में भी बड़ा भाई ही कानूनी पति माना जाता है। हालांकि पारिवारिक और परंपरागत स्तर पर दोनों भाइयों को बराबर का पति माना जाता है।
गिरिपार इलाके में यह परंपरा क्यों सामान्य है?
सिरमौर जिले का ट्रांस-गिरी क्षेत्र, जिसे गिरिपार भी कहा जाता है। यहां बहुपति विवाह यानी एक महिला का एक से अधिक भाइयों से विवाह करना पुरानी परंपरा रही है। ऐसा करने के पीछे यह माना जाता है कि इससे भाईचारा बना रहता है, संपत्ति का बंटवारा नहीं होता और परिवार की ज़मीन बंटकर छोटे-छोटे हिस्सों में तब्दील नहीं होती।
यह परंपरा सिर्फ सिरमौर के गिरिपार तक सीमित नहीं है। हिमाचल के किन्नौर जिले में भी बहुपति प्रथा आज भी किसी न किसी रूप में प्रचलित है। इसके अलावा अतीत में लाहौल-स्पीति और चंबा के कुछ हिस्सों में भी इस परंपरा के प्रमाण मिलते हैं।
महाभारत से लेकर हिमाचल तक की कड़ी
बहुपति विवाह की ऐतिहासिक जड़ें महाभारत तक जाती हैं, जब द्रौपदी ने पांच पांडवों से विवाह किया था। पौराणिक मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास के दौरान हिमाचल प्रदेश के सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र, शिमला, कुल्लू, मंडी और आसपास के इलाकों में रहे, तब वहां की संस्कृति पर भी इसका प्रभाव पड़ा। आज भी किन्नौर के कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें बहुपति परंपरा पांडवों से विरासत में मिली है।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी शादियां, मगर इतनी खुलकर नहीं
इस क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि ऐसी शादियां पहले भी होती रही हैं, मगर ये आमतौर पर गांव में सादे समारोह के रूप में होती थीं और यहां ये सामान्य बात है। लेकिन पहली बार इस परिवार ने अपनी शादी को सार्वजनिक रूप से और इतने बड़े स्तर पर आयोजित किया। इससे यह राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गई।