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पांवटा कांग्रेस के दिग्गज नेता तपेंद्र शुभखेड़िया की कुंडियों पंचायत वाली बैठक चर्चा में है। राजनैतिक गलियारों में इस बैठक के अनेक मायने निकाले जा रहे हैं। अटकलों का बाजार गर्म है,कुछ लोग कह रहे है कि तपेंद्र सिहं अगले चुनाव में पांवटा से कांग्रेस उमीदवार होगे. चौधरी किरनेश जंग के लगातार चुनाव हारने के बाद पांवटा कांग्रेस में दुसरी पंक्ति के नेता की तलाश जारी है। तपेंद्र शुभखेड़िया उनमे एक नाम है। शुभखेड़िया तपेंद्र सिहं किसी पहचान के मोहताज नही है। पांवटा साहिब में उनकी पहचान कददावर लोगो में है। अगर कांग्रेस भविष्य में पांवटा सीट जीतना चाहती है तो उसे सिख समुदाय से उमीदवार उतारना होगा.तपेंद्र सिहं की बजह से बगावत करने वाले बिना जनाधार वाले कैंडिडेट भी शांत बैठ सकते हैं। वहीं कुछ दलाल कांग्रेस सिख नेता का चोला ओढ़ कर घूम रहे हैं
चूंकि सरदार रतन सिहं की मौत के बाद पांवटा में कांग्रेस के जीत के रथ का पहिया थम गया हैं। उसके बाद पार्टी लगातार हार का सामना कर रही है। पांवटा में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां पर एक अनार सौ बिमार है। मायने यह कि पार्टी मे टिकट के तलबगारों की लंबी फेहरिस्त है। जिनकी समस्या यह है कि अगर एक को टिकट मिल जाता है तो बाकि उसके बागी हो जाते हैं। यूं माना जाए कि पांवटा के कांग्रेस नेताओं में पार्टी कैंडिडेट को जिताने से ज्यादा हराने की होड़ लगी रहती है।
यही कारण है की लंबे अरसे से यहां पर कांग्रेस अपना परचम लहराने में नाकाम रही है। भाजपा जिस समुदाय से उमीदवार उतारती है,पांवटा में उसका करीब 20 हजार वोट है,जो कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौति है। दुसरे नंबर पर यहां से सिख समुदाय का वोट है। लेकिन सिखों के पास कोई नेता नही है। रतन सिहं के बाद उनके पौते हरप्रीत सिहं से लोगो की उमीद थी लेकिन वह उनकी विरासत संभालने में नाकाम रहे। पिछले चुनाव मे तो उन्होने जबरदस्त बगावत कर दी और भाजपा के साथ चले गये ऐसे में पार्टी उन पर दांव नही लगाऐगी.
रतन सिहं के बाद कांग्रेस ने किसी सिख को टिकट नही दिया. 2012 में दिवंगत नेता सरदार औंकार सिहं को पार्टी ने उमीदवार बनाया जो अपनी जमानत तक नही बचा पाए थे.उनकी समस्या यह थी की उनको पांवटा बाजार के सिवा कोई नही जानता था. जबकि पांवटा विधानसभा हल्के का 85% वोट गांव में रहता है। उस चुनाव मे निर्दलीय किरनेश जंग चुनाव जीते थे.तब भाजपा के कददावर नेता सुखराम की करारी हार हो गयी थी. रतन सिहं के बाद सुखराम पांवटा से लगातार भाजपा विधायक है।
2017 के चुनाव मे कांग्रेस ने किरनेश जंग को मैदान मे उतारा लेकिन वह चुनाव हार गये फिर 2022 मे भी कांग्रेस ने फिर से किरनेश को टिकट दिया लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा.किरनेश जंग के साथ दिक्कत यह है कि उनके साथ पार्टी के नेता आने को तैयार नही रहते। यही कारण हे की वह कांग्रेस गढ वाली पांवटा सीट से हार जाते हैं। अब कांग्रेस के पास अगर कोई जिताऊ नेता हे तो वो तपेंद्र सिहं है जो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।
तपेंद्र सिहं जहां सिख वोट को एकजुट करने का मादा रखते है,वहीं पहाड़(आंजभोज) में भी उनका अच्छा रूतबा है। ऐसे में कांग्रेस को अगर पांवटा सीट जीतनी है तो फिर से सिख कम्युनिटी पर दांव खेलना होगा. देखना दिलचस्प होगा की पार्टी अगला उमीदवार किसे बनाती है