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हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है। देवताओं की इस भूमि में देव रथों का विशेष महत्व होता है। इन रथों की कारीगिरी बहुत सुंदर होती है। इन्हीं में से एक है कुल्लू में भगवान रघुनाथ का रथ। गौरतलब है कि अंतरर्राष्ट्रीय दशहरा उतस्व के मौके पर भगवान रघुनाथ अपने लकड़ी के रथ पर सवार होकर ढालपुर में अपने अस्थाई शिविर में पहुंचते हैं। इस बार की खास बात ये है कि 16 सालों बाद भगवान रघुनाथ के रथ के कपड़े को बदला जा रहा है।
16 सालों बाद बदलेगा कपड़ा
कुल्लू के दशहरे में भगवान रघुनाथ जी का रथ आकर्ष का सबसे बड़ा केंद्र होता है। इस बार ये और भी खास हो जाएगा क्योंकि रथ के कपड़े को पूरे 16 सालों बाद बदला जाएगा। बता दें कि 300 मीटर के कपड़े से रथ के बाहरी आवरण को बदला जाएगा।
कपड़े को बदलने के लिए आवश्यक काम हो गए हैं। पुरानी परंपर के अनुसार ही सरवरी में दर्जी सूबे राम ने कपड़े की सिलाई की है। वहीं कपड़े की बात करें को ये भुंतर से खरीदा गया। इस बार इसी नए कपड़े को लगाकर रथ सजाया जाएगा।
रथ पर चढ़ाएंगे नया कपड़ा
बता दें कि इस बार रथ की सीढ़ियों में भी बदलाव किया गया है। साथ ही रथ को ठीक करने का काम भी चला हुआ है। 1 अक्टूबर तक रथ तैयार हो जाएगा। फिर 2 अक्टूबर को रथ ढालपुर मैदान में लाया जाएगा, इसके बाद कपड़ों की जांच होगी और नया कपड़ा रथ पर सजाया जाएगा।
देवभूमि कुल्लू में मौजूद भगवान रघुनाथ का रथ देवराज इंद्र के रूप में पूजे जाने वाले महाराजा कोठी पीज के आराध्य देवता जमदग्रि ऋषि की भेंट की गई लकड़ी से तैयार होता है।
कुछ लोगों को ही है अधिकार
जब रथ का निर्माण करना हो तो जिला कुल्लू की महाराजा कोठी से जमदग्रि ऋषि के जंगलों से लकड़ी देवता के कारकून यहां लाकर देते हैं। गौरतलब है कि भगवान रघुनाथ के रथ के निर्माण का अधिकार भी कुछेक लोगों को ही है।
विशेष लोग बनाते हैं रस्सा
रथ को खींचने के लिए प्राचीन समय से रस्सा तैयार किया जा रहा है। कुल्लू जिले की खराहल घाटी के देहणीधार, हलैणी, बंदल तथा सेऊगी गांव के लोग इस कार्य को करते हैं। इसके अलावा ये लोग रथ की मरम्मत व रघुनाख शिविर में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रस्से की लंबाई भी प्राचीन समय से एक जैसी रखी जाती है। हालांकि पुराने समय में रस्सा बगड़ घास का बनता था लेकिन आज के दौर में साधारण रस्से का ही प्रयोग किया जाता है।
सबसे पहले होगी रथ की पूजा
2 अक्टूबर को रथ यात्रा दोपहर में ढालपुर के लिए निकलेगी। वहां पहुंचने पर पुजारी रथ की पूजा करेंगे। इसके बाद भगवान रघुनाथ, माता सीता व हनुमान जी की मूर्तियां रथ पर विराजमान हो जाएंगी।
रथ पर सिर्फ पुजारी विराजमान
इसके बाद अब रथ यात्रा शुरू की जाएगी। हजारों लोग रथ को रस्सी से खींचते हुए अस्थाई शिविर तक पहुंचाएंगे। इस दौरान रथ पर केवल भगवान के पुजारी ही विराजमान होते हैं।