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हवा से बातें करती रफ्तार जब पहाड़ों से टकराती है, तो वो सिर्फ गूंज नहीं होती- वो किसी बेटी के सपनों की आवाज होती है। हिमाचल प्रदेश की शांत और सुंदर वादियों से निकली श्रेया लोहिया आज भारत की नई पहचान बन चुकी हैं।
भारत की पहली महिला F4 रेसर
सिरमौर, मंडी या शिमला की तरह ही खूबसूरत सुंदरनगर की धरती, जो ऋषि शुकदेव की तपोस्थली मानी जाती है, वहीं की यह बेटी अब भारत की पहली महिला फार्मूला-4 रेसर बन गई है। सिर्फ 17 साल की उम्र में श्रेया ने देश के मोटरस्पोर्ट्स इतिहास में स्वर्णिम अध्याय लिखा है।
जब बच्चे अपने बचपन में गुड्डे-गुड़ियों से खेल रहे थे, तब श्रेया के लिए “खेल” का मतलब था स्टीयरिंग व्हील पकड़ना। सिर्फ 9 साल की उम्र में उन्होंने कार्टिंग रेसिंग की दुनिया में कदम रखा, और तभी से रफ्तार उनकी पहचान बन गई।
पिता ने की छोटी से कोशिश
उनके पिता रितेश लोहिया, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने जब पहली बार अपनी बेटी को रेसिंग कार्ट में बैठाया, तो शायद किसी को यह अंदाजा नहीं था कि यह छोटी-सी कोशिश एक दिन भारत को अंतरराष्ट्रीय रेसिंग मानचित्र पर एक महिला नाम से रोशन करेगी।
धीरे-धीरे श्रेया ने देश-विदेश की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया और 30 से अधिक पोडियम फिनिश (टॉप थ्री जीतें) हासिल कर डालीं। वर्ष 2024 में इंडियन फार्मूला-4 चैंपियनशिप में श्रेया ने हैदराबाद ब्लैकबर्ड्स टीम के साथ डेब्यू किया और वहीं से इतिहास लिखा।
छोटी सी उम्र में रचा इतिहास
यह डेब्यू किसी सामान्य रेसर की शुरुआत नहीं थी- यह भारत की पहली महिला F4 रेसर की कहानी बन गई। इस प्रतिस्पर्धी खेल में तेज सोच, स्थिर दिमाग और तकनीकी दक्षता की जरूरत होती है, लेकिन श्रेया ने दिखाया कि न उम्र मायने रखती है, न लिंग। उनका कहना है कि अगर जुनून सच्चा हो, तो ट्रैक की हर मोड़ आपकी दिशा बन जाती है।
रेसिंग सिर्फ स्पीड नहीं, बल्कि फोकस और फिटनेस का खेल है और श्रेया इस बात को बखूबी समझती हैं। वह रोजाना साइक्लिंग, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, पिस्टल शूटिंग, बास्केटबॉल और बैडमिंटन जैसे खेलों में खुद को सक्रिय रखती हैं। उनका कहना है कि एक रेसर के लिए एक सेकंड का फर्क भी जीत और हार तय करता है। शरीर और दिमाग दोनों को मजबूत बनाना जरूरी है।
माता-पिता दोमों साफ्टवेयर इंजीनियर
श्रेया के माता-पिता दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। पिता रितेश लोहिया ने उन्हें दृढ़ निश्चय और तकनीकी सोच सिखाई, जबकि मां वंदना लोहिया ने हर असफलता में उनका मनोबल बढ़ाया। परिवार का यह सशक्त संयोजन ही श्रेया की उड़ान की असली ताकत बना।
श्रेया लोहिया सिर्फ एक रेसर नहीं, बल्कि नई पीढ़ी की प्रेरणा हैं। उन्होंने उस मानसिकता को तोड़ा है जो मोटरस्पोर्ट्स को अब तक “पुरुषों का खेल” मानती थी। अब जब वह अपने रेसिंग सूट में कार के कॉकपिट में बैठती हैं, तो सिर्फ इंजन की आवाज नहीं गूंजती बल्कि पूरे हिमाचल की उम्मीदें और गर्व भी उस ट्रैक पर दौड़ता है।
हिमाचल की शान, भारत की पहचान
सुंदरनगर की वादियों से निकली यह बेटी अब भारत की रफ्तार की रानी बन चुकी है। उसकी कहानी यह साबित करती है कि छोटे शहरों से भी बड़े सपने उड़ान भर सकते हैं। हर इंजन की गूंज में अब सिर्फ रफ्तार नहीं, बल्कि हिमाचली गर्व की धड़कन सुनाई देती है।