Khabron wala
दिवाली के त्याैहार पर जहां हर कोई अपने घर सुरक्षित पहुंचने की कामना करता है, वहीं सोलन-चंबीधार रूट पर मंजर कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। यहां निजी बसों में ओवरलोडिंग की सारी हदें पार हो चुकी हैं और यात्री अपनी जान जोखिम में डालकर बसों की छतों पर सफर कर रहे हैं। यह खतरनाक नजारा देखकर ऐसा लगता है मानो इस बार यमराज भी दिवाली मनाने छुट्टी पर चले गए हैं और लोगों को मौत से आंखें मिलाने की खुली छूट मिल गई है।
सीट न सही, सीन तो शानदार है!
त्याैहारी भीड़ के कारण बसें इस कदर खचाखच भरी हैं कि अंदर पैर रखने तक की जगह नहीं है। ऐसे में घर पहुंचने की जल्दी में लोग बसों की छतों पर सवार हो गए हैं। तेज रफ्तार और घुमावदार सड़कों पर चलती बस की छत पर बैठे ये लोग मानो कह रहे हों कि ‘सीट न सही, सीन तो शानदार है!’ बसें ऐसी चल रही हैं जैसे ऊपरी मंजिल सीधे ‘स्वर्गलोक’ का टिकट हो। चिंताजनक बात यह है कि बस के चालक और कंडक्टर भी इस जानलेवा खेल में बराबर के भागीदार हैं। वे खुद को ‘यमराज का सहयोगी’ समझकर बस को इस तरह दौड़ा रहे हैं, मानो यात्रियों को ‘स्वर्ग की एक्सप्रैस सेवा’ में भेजने का ठेका उन्हीं को मिला हो।
यह स्थिति इसलिए भी गंभीर है क्याेंकि एक तरफ यातायात पुलिस सड़कों पर ‘सैल्फी विद हैल्मेट’ जैसे जागरूकता अभियान चलाकर अपनी पीठ थपथपा रही है, वहीं दूसरी ओर इन चलती-फिरती मौत की बसों पर ‘सैल्फी विद यमराज’ का खतरनाक माहौल बना हुआ है। प्रशासन की यह दोहरी नीति समझ से परे है। सवाल यह उठता है कि अगर कोई बड़ा हादसा हो गया तो क्या पुलिस केवल दीपक जलाकर मृतकों को श्रद्धांजलि देगी या फिर लापरवाह बस ऑप्रेटरों को मोक्ष पत्र देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेगी?
सख्त कार्रवाई की जरूरत
इस समय यातायात पुलिस और परिवहन विभाग काे केवल कागजी चेतावनियों की फुलझड़ियां नहीं जलानी चाहिएं, बल्कि इन रॉकेट सवारों और ऐसे बस ऑप्रेटरोंपर सख्त कार्रवाई का बम फोड़ना चाहिए। दिवाली के मौके पर मौत को मात देने का यह खेल किसी बड़े मातम का कारण बन सकता है। इससे पहले कि त्याैहार की खुशियां किसी दर्दनाक हादसे में बदल जाएं, प्रशासन को जागना होगा और इस जानलेवा सफर पर तुरंत लगाम लगानी होगी।