सिरमौर/नाहन: मामूली से बुखार का भी अस्पताल में नहीं मिला इलाज, नवजात ने तोड़ा दम

Khabron wala 

हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र को झकझोर देने वाला एक और दर्दनाक मामला सामने आया है। सिरमौर जिला का डॉ. वाई.एस. परमार मेडिकल कॉलेज, नाहन, एक बार फिर गंभीर सवालों के घेरे में है। आरोप है कि डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की घोर लापरवाही ने एक मासूम नवजात शिशु की जिंदगी छीन ली।

महिला ने दिया था स्वस्थ बेटे को जन्म

पूरा मामला 25 अक्तूबर 2025 का है। नाहन विकास खंड के चाकली गांव की जागृति ने डॉ. वाई.एस. परमार मेडिकल कॉलेज में एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। परिजनों के अनुसार, नवजात का वजन लगभग 2.8 किलोग्राम था और जन्म के बाद वह पूरी तरह स्वस्थ था।

पूरी रात वह सामान्य रूप से दूध पीता रहा, मां की गोद में मुस्कुराता रहा, लेकिन सुबह अचानक कहानी बदल गई। परिजनों के अनुसार, अगले दिन सुबह डॉक्टरों ने बच्चे को “हल्के बुखार” का हवाला देते हुए ICU में भर्ती कर लिया। परिवार का कहना है कि उस वक्त बच्चे की हालत बिल्कुल सामान्य थी, परंतु डॉक्टरों ने बिना पर्याप्त जांच के उसे गंभीर बता दिया। तभी से बच्चे की तबीयत बिगड़ती चली गई।

पहली और आखिरी तस्वीर

पीड़ित परिवार ने बताया कि उन्होंने बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ली गई तस्वीरें सुरक्षित रखी हैं- जिनमें बच्चा बिल्कुल स्वस्थ और सामान्य दिखाई देता है। वे सवाल कर रहे हैं कि आखिर कुछ घंटों में ऐसा क्या हुआ कि एक तंदुरुस्त नवजात आईसीयू में मौत से जूझने लगा?

मृतक बच्चे के पिता हरीश शर्मा ने अस्पताल प्रशासन को दिए शिकायत पत्र में कई तीखे सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि ICU में बच्चे को या तो फूड पाइप गलत तरीके से डाली गई या ऑक्सीजन सप्लाई में गंभीर चूक हुई।

इसकी जरूरत नहीं है..

हरीश ने बताया कि हमने बार-बार नर्स से कहा कि मशीन की तारें लगाकर ऑक्सीजन और पल्स रेट चेक करें, लेकिन उसने यह कहकर मना कर दिया कि ‘इसकी जरूरत नहीं है।’ क्या एक मासूम की जान इतनी सस्ती थी?

परिवार का आरोप है कि जब बच्चे की हालत बिगड़ी, तो मेडिकल कॉलेज ने उसे PGI चंडीगढ़ जैसे बेहतर संस्थान में भेजने के बजाय, 27 अक्तूबर को पंचकूला के जिला अस्पताल में रेफर कर दिया। “क्या किसी मेडिकल कॉलेज को मरीज को जिला अस्पताल भेजना चाहिए? यह कैसे संभव है कि एक कॉलेज में वेंटिलेटर ही न मिले?”

वेंटिलेटर नहीं होने का तर्क

डॉक्टरों का तर्क था कि उस समय कॉलेज में वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं था, लेकिन परिवार का मानना है कि यह लीपापोती का बहाना है। उन्होंने कहा कि बच्चे को जिस हालत में पंचकूला भेजा गया, वह पहले ही नाजुक था और साधारण ऑक्सीजन पंप के सहारे यात्रा करवाई गई। दुर्भाग्यवश, 28 अक्तूबर की दोपहर, पंचकूला अस्पताल में बच्चे ने दम तोड़ दिया। अगले दिन परिवार ने गमगीन माहौल में मासूम के पार्थिव शरीर को गांव में ही दफनाया।

यह पहली बार नहीं है जब नाहन मेडिकल कॉलेज में नवजात की मौत को लेकर विवाद उठा हो। इससे पहले भी कई परिवार लापरवाही की शिकायतें कर चुके हैं। सवाल यह उठ रहा है कि जब बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, तो ICU जैसे संवेदनशील वार्डों में CCTV क्यों नहीं लगाए गए?

अस्पताल ने साधी चुप्पी

परिजनों ने कहा कि अगर ICU में कैमरे होते, तो सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाती। पर अस्पताल प्रशासन हर बार की तरह “कोई टिप्पणी नहीं” कहकर चुप्पी साधे बैठा है। पीड़ित परिवार का आरोप है कि प्रशासन जिम्मेदारी तय करने से बचने की कोशिश कर रहा है।

परिवार ने बताया कि उन्होंने कई बार मेडिकल अधीक्षक को फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। परिजनों का कहना है कि अगर अस्पताल प्रशासन निष्पक्ष है, तो उसे खुलकर जांच की मांग करनी चाहिए- न कि चुप रहकर मामले को ठंडे बस्ते में डालना।

जांच की मांग और जनता की नाराजगी

गांव और आसपास के लोगों में इस घटना को लेकर गहरा रोष है। ग्रामीणों ने सरकार से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।

स्थानीय सामाजिक संगठनों ने भी इसे “चिकित्सीय संवेदनहीनता” करार देते हुए कहा है कि यह मामला किसी एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की मानवीय जिम्मेदारी पर प्रश्नचिन्ह है।

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