हाईकोर्ट की अदालत की अवमानना मामले में डी सी सिरमौर तथा एस डी एम नाहन व नगर परिषद् के सदस्य जा सकते है जेल ,कानून में है प्रावधान
अदालत ने कोई आदेश पारित कर दिया है और उससे सहमति नहीं है तो ऊपरी अदालत में अपील हो सकती है। यदि आदेश के बाद अपील की तिथि निकल जाती है और तब भी आदेश पर अमल नहीं किया जाता है तो यह अदालत की अवमानना का मामला बनता है और सजा के रूप में जेल तक हो सकती है।
पिछले दिनों अदालत में अचानक न्यायाधीश ने एक प्रतिवादी को गिरफ्तार करने का हुक्म सुना दिया। सभी लोग स्तब्ध थे कि ऐसा क्या हो गया, लेकिन यह मामला अदालत की अवमानना का था। जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा था, वह अदालत के आदेश का पालन करने से चूक गया था, इसलिए इसे अदालत की अवमानना माना गया।
कानूनी रूप से देखे तो अदालत की अवमानना दो तरह की होती है-
1.दीवानी अवमानना, जो अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के सेक्शन 2(बी) में आती है। ‘इसमें वे मामले आते हैं, जिसमें यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर अदालत के किसी निर्णय को न माने। भले ही वह डिक्री हो, निर्देश हो या आदेश तो सजा दी जाती है।
- आपराधिक अवमानना सेक्शन 2 (सी) के तहत आता है, जिसमें लिखे हुए शब्दों से, मौखिक या कुछ दिखाकर किया जा सकता है, जिसमें- किसी अदालत के आदेश को नीचा दिखाने की कोशिश की गई हो या पूर्वग्रह से ग्रसित हो न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की गई हो या, न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करना या करने की मंशा से इसमें रुकावट डाले।
सरल शब्द में यह फैसले या अदालत की प्रतिष्ठा के खिलाफ जानबूझकर की गई अवज्ञा है। एक है प्रत्यक्ष अवमानना और दूसरी है अप्रत्यक्ष अवमानना। अदालत में ही खड़े होकर यदि कोई आदेशों को नहीं माने तो प्रत्यक्ष अवमानना होती है। इसी प्रकार यदि अदालत के बाहर नारेबाजी या उसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है तो उसे अप्रत्यक्ष अवमानना माना जाता है।
अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध है। किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वे अदालत का सम्मान करें। अदालतों के प्राधिकार के खिलाफ न हो न ही स्वेच्छाचार करते हुए आदेशों का पालन न करें। अदालतें कानूनी अधिकारों का स्तंभ है और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।
अदालत की अवमानना को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर और न्यायमूर्ति के एस. राधाकृष्णन की खंडपीठ ने भी सुब्रत राय सहारा के मामले में समझाया था। यदि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है तो यह न्यायिक प्रणाली की नींव हिला देता है, जो कानून के शासन को दुर्बल करता है। अदालत इसी की संरक्षा और सम्मान करती है। देश के लोगों का न्यायिक प्रणाली में आस्था और विश्वास कायम रखने के लिए यह आवश्यक है।
इसलिए अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध माना जाता है। साथ ही यह याचिकाकर्ता को भी सुनिश्चित करता है कि अदालत द्वारा पारित होने वाले आदेश का अनुपालन होगा। यह उनके द्वारा पालन किया जाएगा, जो भी इससे संबंधित होंगे।यह कानून उच्च पदस्थ लोगों के खिलाफ भी सख्ती बरतता है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कोर्ट के आदेशों के बावजूद नगर परिषद् परिधि में अवैध निर्माण व अतिक्रमण को न हटाने पर नगर परिषद् के सभी सदस्यों के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया है। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने सभी सदस्यों को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि अदालती आदेशों की अवहेलना किया जाने पर उनके खिलाफ क्यों न अवमानना की कार्यवाही की जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने नगर परिषद् के कार्यकारी अधिकारी को भी कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न इस परिषद् को अधिनियम के अनुसार भंग किया जाए।
जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने अनिल अग्रवाल द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के बाद डीसी सिरमौर और एस डी एम नाहन को भी अवमानना नोटिस जारी किया है। मामले के अनुसार नगर परिषद नाहन ने शपथपत्र के माध्यम से अदालत को बताया था कि नगर परिषद की आम सभा का आयोजन 10 जनवरी को किया गया था। इसमें अतिक्रमण व अवैध निर्माण करने वालों को 15 दिनों का कारण बताओ नोटिस का प्रस्ताव पारित किया गया।
डिमार्केशन के लिये परिषद स्टॉफ के 5 सदस्यों सहित वार्ड सदस्य की तकनीकी टीम के गठन का निर्णय भी लिया गया था। बैठक में पुराने मामलों को 6 महीने के भीतर निपटाने का प्रस्ताव भी पारित किया गया था। इसके पश्चात् 28 मार्च को नगर परिषद के सभी सदस्यों की बैठक बुलाई गई जिसमें बताया गया कि कुल 280 अवैध अथवा अतिक्रमण के मामले पाए गए हैं जिन्हें 30 दिनों में बिजली काटने के नोटिस जारी किए गए हैं। 27 लोगों की सूची एसडीएम नाहन को भेजी गई है जिन्होंने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है।
इसके अलावा 88 निर्माणों की सूची भी एसडीएम को दी गयी है जिनकी डिमार्केशन करने की बात कही गयी है। नगर परिषद नाहन ने 244 लोगों की सूची भी हाईकोर्ट के समक्ष रखी जिनकी बिजली काटने के आदेश जारी किए जा रहे हैं। पिछले आदेशों के तहत हाईकोर्ट ने पाया था कि नगर परिषद नाहन अवैध निर्माण व अतिक्रमण हटाने में कोई रुचि नहीं दिखा रही है।
कोर्ट ने प्रधान सचिव शहरी को आदेश दिए थे कि वह व्यक्तिगत रूप से नगर परिषद नाहन के कार्यो पर नज़र बनाए रखें। कोर्ट ने प्रधान सचिव शहरी को नगर परिषद की परिधि में पिछले 10 वर्षों में हुए अतिक्रमण व अवैध निर्माण को हटाने बाबत उठाए गए कदमों की सूची शपथ पत्र के माध्यम से न्यायालय के समक्ष दायर करने को कहा था। प्रधान सचिव शहरी विकास ने शपथ पत्र के माध्यम से न्यायालय को बताया कि कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद नाहन द्वारा अवैध निर्माण व अतिक्रमण से जुड़े रिकॉर्ड को पूरा व संतोषजनक नहीं पाया गया है और उन्हें अवैध निर्माण व अतिक्रमण करने वालो के बारे में विस्तृत स्टेटस एक्शन रिपोर्ट तैयार करने के आदेश जारी किए गए हैं।
सदस्य सचिव शहरी विकास ने इस मामले को अपने विचाराधीन रखा था इसलिए मामले पर सुनवाई 14 जून को निर्धारित की गई थी। न्यायालय ने यह आशा जताई थी कि अवैध निर्माण व अतिक्रमण हटाने बाबत न्यायालय के आदेशों की अनुपालना में सदस्य सचिव शहरी विकास व कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद नाहनकार्य को अंजाम दे देंगे। जिलाधीश सिरमौर को आदेश जारी किए थे कि वह उनके समक्ष नगर परिषद नाहन की ओर से दायर आवेदन का 30 अप्रैल तक निपटारा कर दें।
इसके अलावा न्यायालय ने राजस्व, पुलिस व अन्य प्रशासन को न्यायालय के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद नाहन को पूरा सहयोग प्रदान करने के आदेश जारी किए थे। लेकिन नगर परिषद्, डीसी और एसडीएम अदालत के आदेशों की अनुपालना करने में नाकाम रहे जिसके लिए हाई कोर्ट ने उन्हें अवमानना नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई आगामी 5 जुलाई को निर्धारित की गई है।