शिलाई ट्रांसगिरी क्षेत्र मे हुडक नृत्य, होल्डा नृत्य के साथ बूढ़ी दिवाली पर्व का आगाज हो गया है। बूढ़ी दिवाली क्षेत्र मे अगले पांच से सात दिनो तक चलती रहेगी।बूढ़ी दिवाली के पहले दिन मेहमानों व बाहरी राज्यों से आए लोगो के लिए एक दर्जन से अधिक प्रारंपरिक व्यंजनों से क्षेत्र लबालब रहता है शाम के समय क्षेत्र के गावों में सुबह ब्रह्म मुहर्त के साथ हाथों में मशाले लिए बुराई को जलाकर अच्छाई की विजय के साथ दिवाली का आगाज हो किया गया है, दूसरा दिन भियूरी के नाम से मनाया रहेगा, इस दिन बिना बाध्य यंत्र के गाया जाने वाला भियूरी (विरह गीत ) गीत गाया जाएगा उसके बाद गावं की महिलाएं लड़कियों, मेहमानो, बच्चों को मुड़ा, शाकुली, अखरोट, सहित ड्राई व्यंजन बांटे जाएंगे तथा क्षेत्र में अगले पांच, सात, नौ दिनों तक ढोल नगाड़ों के साथ लोक नृत्य, रासा नृत्य, हारुलों का दौर चलता रहेगा विभिन्न स्थानों पर स्टेज शो का आयोजन किया जाएगा !
किदवंतियां माने तो भियुरी क्षेत्र के गडु स्याणा की बेटी थी जो राजा जालंधर की पत्नी रही है, भियुरी ससुराल से मायके घोड़े पर सवार होकर दिवाली को पहुंच रही थी अचानक संतुलन बिगड़ने से खाई में गिर गई तथा मृत्यु हो गई, बेटी के मरने पर समूचे क्षेत्र में शौक होने से दीवाली पर्व को एक माह बाद बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा है, द्धापर युग में पत्नी हिडिम्बा से मिलने भीम पाताल लोक गए थे जब वापिस धरती पर पहुंचे तो दिवाली पर्व खत्म हो गया था भीम की जींद के लिए बूढ़ी दिवाली पर्व मनाया गया तथा भववान विष्णु के पांचवें वानन अवतार के बाद बूढ़ी दीवाली पर्व को मनाने का भी किदवंतियों में उलेख मिलता है ! बूढ़ी दिवाली पर्व क्षेत्र में दिवाली की तरह ही बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है !
क्षेत्र में लिपाई पुताई के बाद बूढ़ी दिवाली पर्व में नियमानुसार देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाएगी, एक माह पहले से पर्व की तैयारियां चल की गई है, मेहमानो की खूब आवभगत हो रही है,तेलपक्की, बेडोली, पटांडे, अस्कोली, सीडकु, ऊलउले, गुलगुले सहित एक दर्जन से अधिक लजीज व्यंजनों को बना कर परोसा जा रहा है, क्षेत्र की अनूठी परम्परा ही प्रदेश के रीती रिवाजो से ट्रांसगिरी क्षेत्र की संसकृति को अलग करती है ! सिरमौर के अतिरिक्त कुल्लू के निरमंड, उत्तराखंड प्रदेश के भावर जौनसार तथा राजस्थान के जैसलमेर में बूढ़ी दीवाली पर्व की धूम रहती है !