दिव्यांगता की बेड़ियां नहीं जकड़ सकती सफलता के कदम , मेहनत कर अर्जुन सिंह ने पेश की मिसाल

( अनिलछांगू ) मन मे अगर सच्ची लग्न और अपना लक्ष्य हासिल करने का जुनून हो तो कठिन राह भी आसान लगती है। बड़ी से बड़ी चुनौतियाँ भी आदमी के हौंसले की उड़ान को नही रोक सकती है और न ही उसकी दिव्यांगता में बाधा बनकर उसकी सफलता को अपनी बेड़ियों में जकड़ कर रख सकती हैं । आदमी में अगर होंसला हो तो गुरबत को भी मात दी जा सकती है।

इसी हौंसले के दम पर चुनौती से पार पाकर कांगड़ा ज़िला के फतेहपुर उपमंडल की कुट पंचायत के बदवाड़ा गांव के अर्जुन सिंह ने एक नई मिसाल पेशकर समाज मे अपनी एक विशेष पहचान बना ली है।गरीब परिवार से सम्बंध रखने वाले 25 वर्षीय अर्जुन बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। बाहरवीं तक की अपनी पढ़ाई पूरी करने के उपरांत वह नौकरी की तलाश करने लगे, परंतु काफी मेहनत करने के बाद भी नौकरी न मिलने पर उन्होंने हार नही मानी। हालांकि अर्जुन प्रदेश सरकार की सामाजिक पेंशन योजना के तहत दिव्यांगता पुनर्वास भत्ता योजना के तहत मिलने वाली राशि से अपना दैनिक गुजारा कर रहे थे, परंतु उससे उनके परिवार का जीवनयापन कठिन था। तब उन्होंने नौकरी की इच्छा को छोड़कर स्वरोजगार को अपनाने का मन बनाया।

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परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने केसीसी बैंक, फतेहपुर से 2 लाख रुपये का ऋण लेकर जसूर-तलवाड़ा मुख्य मार्ग पर बदवाड़ा में गन्ने के जूस की रेहड़ी लगाकर काम शुरू किया। उनके पास इतनी ज़मीन नही थी कि वह उस पर गन्ना उगा सकें। गन्ने की खेती करने के लिए उन्होंने लोगों से जमीन किराए पर लेकर परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग से उस पर गन्ना पैदा करना शुरू किया।

अब वह किराये के इन खेतों पर अच्छा गन्ना पैदा कर जूस के लिए पूरा साल इस्तेमाल में लाते हैं। इसके अतिरिक्त वह गन्ने को अच्छी तरह से पानी से साफ करने के पश्चात ही जूस निकालने के लिए प्रयोग में लाते हैं। वह साल में लगभग 11 महीने गन्ने का जूस बेचते हैं । इसके अतिरिक्त वह अपने जूस कॉर्नर पर टिक्की, बर्गर तथा चाऊमीन भी बेचते हैं। वह अपने छोटे से कारोबार से प्रतिदिन लगभग 2 हजार रुपए की विक्री कर अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

अर्जुन अपने तीन भाई बहनों में सबसे बड़े है। परिवार का पूरा बोझ उनके पिता श्री जोगिंद्र सिंह के कंधों पर होने तथा मेहनत मजदूरी से कमाई कम होने के कारण उनका परिवार आर्थिक तंगी के हालात में ही अपना गुजारा करता था। उनका कहना है कि जबसे उन्होने बैंक से ऋण लेकर अपना कारोबार शुरू किया है उनके परिवार की माली हालत काफी सुधर गई है। उन्होंने बैंक लोन भरने के साथ-साथ अपनी छोटी बहन की गत अक्टूबर माह में शादी भी कर दी है। वह अपनी कमाई से अपने पिता जी के साथ घर के खर्चों में हाथ बंटाने लगे हैं।

अर्जुन मृदुभाषी होने के साथ-साथ दुकान पर आने वाले हर व्यक्ति के साथ हंसकर बात करते हैं उसके मधुर स्वभाव से हर कोई उसका मुरीद होकर उनके जूस कॉर्नर पर आना पसंद करता है, विशेषकर अपनी गाड़ियों में इस रोड़ पर गुजरने वाले अधिकतर लोग जूस पीने के लिए उनके पास जरूर रुकना पसंद करते हैं। उनकी मेहनत से प्रेरणा लेकर अब उस रोड़ पर उनके आसपास और भी कई जूस कॉर्नर लोगों ने खोल लिए हैं, पर आज भी वह सबसे ज्यादा गन्ने का रस बेचकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। अर्जुन का कहना है कि आदमी को कभी भी जिंदगी में हार न मान कर उसे हर चुनौती से डटकर मुकाबला करना चाहिए। मेहनत से काम करने पर हर बड़ी से बड़ी चुनौती से मुकाबला कर उसकी बाधा से पार पाया जा सकता है।

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