राज्य सरकार ने चिकित्सा विशेषज्ञों के स्टाइपंड में 170 प्रतिशत तक की वृद्धि की

राज्य सरकार ने प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और विशेषज्ञ चिकित्सकों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। स्वास्थ्य संस्थानों में आधुनिक तकनीकों के उपयोग और चिकित्सा बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के साथ-साथ, सरकार ने वरिष्ठ रेजिडेंट, विशेषज्ञ और सुपर स्पेशलिस्ट के स्टाइपंड में बढ़ोतरी की घोषणा की है।
राज्य सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए, चिकित्सा विशेषज्ञों के मासिक स्टाइपंड में 50 से 170 प्रतिशत की वृद्धि की है। वरिष्ठ रेजिडेंट और ट्यूटर स्पेशलिस्ट के लिए स्टाइपंड 60,000-65,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया गया है, जबकि सुपर स्पेशलिस्ट और वरिष्ठ रेजिडेंट (सुपर स्पेशलिस्ट) के लिए स्टाइपंड 60,000-65,000 से बढ़ाकर 1.30 लाख रुपये तक कर दिया गया है।


हिमाचल प्रदेश में छह मेडिकल कॉलेज और एक सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल हैं। आईजीएमसी शिमला और डॉ. राजेंद्र प्रसाद राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय टांडा जैसे संस्थान पोस्टग्रेजुएट सुपर स्पेशलिस्ट और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों के सहयोग से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, राज्य के मेडिकल कॉलेजों में स्वीकृत 751 पदों में से, वर्तमान में केवल 375 ही भरे हुए हैं, 376 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद रिक्त हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं। इस चुनौती की गंभीरता को समझते हुए, वर्तमान राज्य सरकार ने निर्णायक कदम उठाए हैं, जो पूर्व सरकार नहीं उठा सकी। बढ़ाए गए स्टाइपंड से कुशल चिकित्सा पेशेवरों के लिए सरकारी सेवा को और अधिक आकर्षक बनाने की उम्मीद है, जिससे इस महत्वपूर्ण अंतर को मिटाने और सभी स्तरों पर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

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राज्य में चिकित्सा विशेषज्ञों को आकर्षित करने के एक अन्य कदम में, अध्ययन अवकाश पर गए चिकित्सकों को पूरा वेतन मिलेगा, जिससे उनके पेशेवर विकास को और बढ़ावा मिलेगा। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार डॉक्टर-नर्स-रोगी अनुपात के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करने के लिए कार्य कर रही है और इन मानदंडों को पूरा करने के लिए भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है, जिससे राज्य के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकंे।

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष लगभग 9.5 लाख मरीज इलाज के लिए हिमाचल प्रदेश से बाहर जाते हैं, जिससे राज्य के सकल घरेलू उत्पाद को 1350 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है। अगर राज्य के भीतर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाई जाएं तो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का वार्षिक 550 करोड़ रुपये बचाया जा सकता है, साथ ही मरीजों का बहुमूल्य समय भी बचेगा।

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