महज दो सौ रूपये की पगार पाने वाले निजी स्कुल के अध्यापक को जब अपने बढ़ते हुए परिवार के भरण पोषण को और उनके भविष्य की चिन्ता सताने लगी तो उन्होनें अपनी आर्थिकी बढानें के लिए विकल्प तलाशने आरम्भ किए।
जिला बिलासपुर की घुमारवीं तहसील के गांव भटेड़ निवासी हंसराज को पुश्तैनी बारह बीघा, बजंर भूमि में खेती करने की कल्पना करना भी एक सपना सा प्रतीत हो रहा था जहां न कोई सिंचाई की सुविधा थी न कुछ उगा पानें की सम्भावना । लेकिन अपने मजबूत इरादों और बुलन्द हौंसलों के बल पर अपनी दस वर्ष की नौकरी को छोड़कर वर्ष 1996 में जो ‘‘युवा हंस राज खेती बाड़ी में जुटा वह उम्र के 54 वें वर्ष में उसी बंजर भूमि से अब छः लाख से भी अधिक की वार्षिक आय अर्जित करके न केवल किसानों अपितु उन बेरोजगार युवाओं के लिए भी प्रेरणा का स़्त्रोत बनें है जो जीवन के स्वर्णिम साल मात्र नौकरी पाने की तलाश में गवां देते हैं।
अध्यापन का कार्य छोड़कर हंसराज ने पहले अपनी बंजर भूमि से मात्र एक बीघा जमींन को हाड़-तोड़ मेहनत करके खेती के योग्य बनाया। सिंचाई के लिए अपनी जमा पूंजी से बोर वैल लगवाया और जीवन के नये अध्याय की शुरूआत की। शिक्षित युवा किसान हंसराज मात्र एक बीघा पर ही खेती करके कहाॅ सन्तुष्ट हाने वाले थे। वह कृषि की नवीनतम आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके न केवल अपने कृषि व्यवसाय को गति देकर बढाना ही चाहते थे अपितु अपनी पीली बंजर भूमि का सदुपयोग करके हरियाली की मखमली चादर से ढांकना भी चाहते थे।
तब कृषि विभाग ने हंसराज को एक नई राह दिखाई। उन्हें कृषि विभाग द्वारा पाॅली हाऊस प्रशिक्षण के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर भेजा गया।
वर्ष 2009 में पंडित दीनदयाल किसान बागवान समृद्वि योजना के अन्र्तगत 250 वर्ग मीटर भूमि पर कृषि विभाग द्वारा 80 प्रतिशत अनुदान देकर पाॅली हाऊस स्थापित किया गया। हंस राज ने पाॅली हाऊस में खीरे की खेती आरम्भ की । मात्र तीन माह में 35 कविंटल खीरे की बम्पर फसल से इन्होने 50 हजार रू0 का शुद्व लाभ कमाकर अपने त्याग, सम्र्पण और मेहनत का फल प्राप्त किया।
उन्नत किसान का पुरस्कार पाने वाले हंस राज वर्तमान में अपनी 12 बीघा भूमि से वर्ष भर बन्दगोभी, गाजर, शलगम, चुकन्दर, मटर, लहुसन, प्याज, अनार, नाशपात्ती, शिमला मिर्च, टमाटर ,बैंगन, घिया, करेले आदि की श्रृखंलाबद्व बुआई करके तीन-2 फसलें प्राप्त करके छः लाख रू0 से भी अधिक वार्षिक आय अर्जित कर रहें हैं।
हंस राज अपनी समस्त भूमि पर जैविक खाद का प्रयोग करतें हैं। पौंधों पर गुड, घी, बेसन व गोबर से निर्मित मटका खाद का स्प्रे किया जाता है । समय समय पर कृषि विभाग के अधिकारी इनके खेतों में जाकर इनकी फसलों की जाॅच करतें है और खेती की उन्नत विधियों से अवगत करवाकर निरन्तर प्रोत्साहित करते आ रहे हैं।
हंसराज सब्जियों की खेती के अतिरिक्त इनकी पनीरियों को भी तैयार करके 27 से 40 हजार रू0 तक की वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं। इन्हें अपने उत्पाद बेचने के लिए किसी बाजार या मण्डी के चक्कर नहीं काटने पड़तें। अपितू सब्जी विक्रेता इनके खेतों से अपनी आवश्यकतानुसार उत्पादों को ले जाते है।
हंसराज ने अपनी बंजर भूमि से आय अर्जित करके अपनी तीन बेटियों को राजनीतिक शास्त्र और दो बेटियों को अग्रेजी के विषय में स्नातकोत्तर(एमए) तक की शिक्षा दिलाई है। जबकि 26 वर्षिय बेटा औंकार शर्मा टैक्नोलाजी इन्फार्मेशन का डिपलोमा प्राप्त कर चुका है । हंसराज का कथन है कि नौकरी की अपेक्षा खेतीबाडी और स्वरोजगार में आय अर्जित करने की आपार संम्भावनायें है। अगर युवा वर्ग अपना ध्यान नौकरियों के बदले इस ओर लागये तो वे दिन दूर नहीं जब देश तीव्र गति से ऊचाॅईयों के नये आयाम स्थापित करेगा।