श्रीगुरू नानक देव जी के 550वें प्रकाशाेत्सव का उत्साह पूरे शहर के गुरूद्वाराें में देखने काे मिला। हर कोई इस दिन की खुशी मना रहा था। संगत का कहना था कि अाज जब हम इतने सालाें बाद गुरू जी का 550वां प्रकाशाेत्सव इतने उत्साह अाैर खुशी के साथ मना रहे हैं ताे जिन लाेगाें ने उस समय गुरू जी काे देखा हाेगा, उनमें कितना उत्साह अाैर खुशी हाेगी।
गुरुद्वारा साहिब संतोखगढ़ पुरूवाला में 550वें प्रकाशाेत्सव काे यादगार बनाने के लिए विशेष आकर्षण रहा केक। तरुणदीप सिंह तनु ने बताया कि इस खास दिवस के लिए ब्राउन वर्ल्ड बेकरी ने इस केक को तैयार किया। प्रकाश उत्सव मनाने के लिए इस दुर्लभ केक को कारीगरों ने विशेष रूप से तैयार किया।उन्होंने बताया कि इस तरह के केक की आज भारी डिमांड थी जिसके लिए विशेष तौर पर यह केक बनाए गए थे
इसके अलावा शहर के अलग-अलग गुरुद्वारा साहिबों में बड़ी तादाद में श्रद्धालु माथा टेकने पहुंचे। श्रद्वालुअों ने पूरी श्रद्धा भाव से सेवा की और लंगर बर्ताया। गुरु घर के प्रसाद को भी श्रद्धालुओं ने पूरे श्रद्धा भाव से ग्रहण किया
पंजाब में बना सबसे बड़ा केक सुल्तानपुर लोधी भिजवाया
जालंधर : श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशपर्व के मौके पर लवली बेक स्टूडियो की ओर से 550 किलो का केक बनाकर सुल्तानपुर लोधी में डेरा संत बाबा मान सिंह जी (पिहोवा वाले) भिजवाया गया है। यह पंजाब में बना अब तक का सबसे बड़ा केक है। इसे संगत के बीच बांटा जाएगा। 18 फीट लंबा, चार फीट चौड़ा और 6 इंच ऊंचे इस केक को बनाने में दस शेफ और दस हेल्परों को 36 घंटे का समय लगा है।
सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले धर्मगुरु गुरु नानक देव की 550 वीं जयंती के मौके पर देशभर में सेलेब्रेशन शुरू हो गया है। गुरुद्वारों को सजाया गया है और यहां लगातार कीर्तन चल रहे हैं। गुरु नानक देव की जी जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है जो कि इस साल 12 नवंबर को है। गुरु नानक का जन्म कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 1526 ई में हुआ था। यही कारण है हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को प्रकाश पर्ब के रूप में मनाया जाता है।
गुरु नानक देव जी सिर्फ एक संत नहीं बल्कि, दार्शनिक, समाज सुधारक, चिंतक, कवि और देश से प्यार करने वाले थे। कहा जाता है कि बचपन से ही नानक साहिब का मन संसारिक कामों में नहीं लगता था। आठ साल की आयु में ही उनका स्कूल भी छूट गया था। एक बालक के रूप में भगवान की ओर ज्यादा लगाव होने से लोग इन्हें दिव्य पुरुष के रूप में मानने लगे थे।