( धनेश गौतम ) जायका प्रोजैक्ट ने निचले हिमाचल के किसानों की तकदीर बदल दी हैं। बदलते मौसम के आधार पर किस तरह से खेती की जानी चाहिए इसमें अब निचले हिमाचल के किसान माहिर हो गए हैं। गेती व पछेती खेती से किसान करोड़ों रूपए की आमदानी कर रहे हैं। सेंटर फॉर मीडिया स्टडी के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के वरिष्ट पत्रकारों की मुलाकात निचले क्षेत्र के ऐसे किसानों से हुई जो आज कम जगह में ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं।
ढडू गांव के कपूर चंद की तो जायका परियोजनों ने किस्मत ही बदल दी। कपूर चंद आज एक कुशल किसान बन गए है और टमाटर की आर्गेनिक खेती से करोड़ों की आमदानी कर रहे हैं। लाल सोने की खेती करने से कपूर चंद का जीवन सफल किसान के रूप में आकर उभरा है। मीडिया की टीम को बताया गया कि कपूर चंद ने जो आलिशान बंगला बनाया है उस पर करीब एक करोड़ दस लाख रूपए खर्च हुए हैं और यह धन लाल सोना टमाटर की खेती से ही कमाई हुए हैं। कपूर चंद के बेटे चंदन ने जेबीटी कर रखी है लेकिन उसे वर्तमान में सरकारी नौकरी की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि नौकरी से ज्यादा वह अपने खेतों में कमाई कर लेता है। इसी तरह इसी गांव के ओंकार चंद भी सफल किसान बन गए हैं।
ओंकार चंद ने जायका परियोजना आने के बाद नगदी फसलों का काम शुरू किया और आज वह आर्गेनिक खेती के मास्टर बन गए है। ओंकार ने अपने खेतों में तरह-तरह की सब्जियां उगाई है और पहले से अच्छी कमाई कर रहे हैं। ओंकार ने बताया कि ढडू गांव का अर्थ ढांढस बांधना। यह पूरा क्षेत्र सुखा क्षेत्र था और यहां किसी भी तरह की फसल नहीं होती थी। लेकिन जब जायका परियोजना ने इस क्षेत्र को सिंचाई योजना से जोड़ा और यहां के किसानों को नगदी फसलों की आर्गेनिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया तो उसके बाद यहां पर भारी बदलाव आया है और किसान आर्थिक तौर पर मजबूत हुए हैं।
उन्होंने बताया कि पहले किसान एक ही फसल निकाल पाते थे लेकिन जायका ने उन्हें इंटर क्रॉपिंग खेती बताई और अब उनकी फसल खेतों में कभी भी नहीं टूटती है। जब तक एक फसल निकल जाती है तब तक उसी स्थान पर दूसरी फसल तैयार हो चुकी होती है। इस खेती को वे गेती व पछेती खेती कहते हैं। वहीं, समीरपुर देहरियां केटल के राम सिंह का तो जीवन ही जायका परियोजना आने के बाद स्वर्ग बन गया है।
जायका ने उन्हें बहाव सिंचाई योजना की सुविधा क्या दी उन्होंने जंगल के बीच नाले में ही खेतों का निर्माण कर आज कई प्रकार की फसलों का उत्पादन शुरू किया है। राम सिंह ने जहां चारों तरफ चिनार के पेड़ पौधे लगाए है वहीं अपने खेतों के एक तरफ पॉलीहाऊस में हल्दी की खेती शुरू की है और दूसरी तरफ आर्गेनिक नगदी फसलें तैयार की जा रही हैं। यही नहीं राम सिंह मशरूम भी पैदा कर रहे हैं। गौर रहे कि निचले हिमाचल हमीरपुर, ऊना, मंडी, बिलासपुर व कांगड़ा में जायका परियोजना किसानों के लिए लाई गई हैं।
कृषि विशेषज्ञ श्वेता व कृषि अधिकारी पारिका इन किसानों की लगातार मदद कर रही हैं। रविकांत चौहान ब्लॉक प्रोजैक्ट मनेजर ने बताया कि जायका परियोजना के तहत किसानों को कई सुविधाएं दी जा रही हैं। सबसे पहले सिंचाई योजना का प्रावधान करवाया जा रहा है। कम जगह से ज्यादा उत्पादन लेने की क्षमता बढ़ाई जा रही हैं। किसानों को क्रैश क्रॉप के प्रति उत्साहित किया जा रहा है। आर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
थोड़े से पानी से ज्यादा कृषि करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए स्पिंकलर व ड्रिप सिंचाई योजना जायका द्वारा किसानों को दी जा रही है। वहीं समय-समय पर लेटेस्ट बीज भी किसानों को उपलब्ध करवाया जाता है। केंचुआ खाद के लिए परियोजना द्वारा किसानों को उपदान दिया जा रहा है। भ्रमण व किसान मेला के माध्यम से किसानों को सिखाया जा रहा है। इसके अलावा कई अन्य सुविधाएं किसानों को दी जा रही है ताकि वह नगदी फसलों का उत्पादन करके आर्गेनिक खेती कर सके और अपनी आर्थिकी बढ़ा सके। विकांत चौहान ब्लॉक प्रोजैक्ट मनेजर कांगड़ा का कहना है कि जायका परियोजना ने किसानों की तकदीर बदल दी है। सूखे क्षेत्र में भी आज किसान इंटर क्रॉपिंग खेती करके अपनी आर्थिकी को बढ़ा रहे हैं। निचले हिमाचल में आज किसानों की आर्थिकी बढ़ी हैं।