(नीना गौतम ) अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व के लिए ढालपुर मैदान में सजी दुकानों में अब ग्राहकों की भारी भीड़ उमडऩे लगी है। दीवाली तक यहां पर यह दुकानें सजी रहेंगी और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सर्दियों के लिए जहां गर्म कपड़े खरीद रहे हैं वहीं, अन्य सामान की खरीददारी भी भारी मात्रा में हो रही है। इसके अलावा कुल्लू के ढालपुर मैदान में आजकल लोकल व्यंजनों के चटकारे लेने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंच रहे हैं।
मैदान में सजे व्यापारियों के अलावा बाहर से आने वाले ग्राहक व पर्यटक यहां पर स्थानीय व्यंजनों का भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं। कुल्लू का लोकल सिड्डू व मक्की की रोटी जहां पूरी तरह से मशहूर हो गई है वहीं, अब यहां पर कोदरे की रोटी व साग के भी दीवाने लोग हो गए हैं। दशरहा मैदान में सजे सागर ढाबा में मक्की की रोटी के अलावा कोदरे की रोटी व साग के लिए भारी भीड़ लगी हुई है। सागर ढाबा में महिलाएं सुबह से लेकर रात तक कोदरे की रोटी बनाने में व्यस्त हैं।
यहां पर कई बार तो कोदरे की रोटी व साग के चटकारे लेने के लिए लाईन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। यही नहीं यहां दशहरा मैदान में लोग कोदरे की रोटी व साग को घर को भी पैक करके ले जा रहे हैं। मेले में लगे सागर ढाबा में कोदरे की रोटी के दिवानों की खूब भीड़ देखी जा सकती है। खास बात यह है कि इस तरह के व्यंजनों को महिलाओं द्वारा ही बनाया जा रहा है और ग्राहकों को भी परोसा जा रहा है। सागर ढाबा में इस वक्त करीब 4 महिलाएं कोदरे की व मक्की की रोटी बनाने में व्यस्त हैं और डिमांड इतनी है कि उनसे पूरी नहीं हो रही है जो इस तरह वे व्यंजन बनाकर स्वरोजगार अपना रही है।
सिडडू ,मोमो, चोमिन, व कचौरी के स्टाल भी यहां चल रहे हैं। गौर रहे कि सबसे पहले दशहरा पर्व में यहां की लुप्त हो रही लोकल डिश सिड्डू को रजनी ने पहली बार वर्ष 2001 में बाजार में उतारा था जो आज पूरी तरह से प्रसिद्ध हो गए हैं। अब सागर ढाबा ने कोदरे की व मक्की की रोटी व साग लाकर इस स्थानीय व्यंजन को भी मार्केट में उतारा है जिसे लोग बेहद पसंद कर रहे हैं। गौर रहे कि कोदरे की रोटी बल्कि पोष्टिकता के अलावा शुगर सहित कई बीमारियों के लिए भी रामवाण का काम करती है।