नाहन : सिरमौर की संस्कृति की पहचान लोईया और डांगरा का होगा पेटेंट

सिरमौर की समृद्ध संस्कृति एवं सभ्यता का परिचायक लोईया एवं डांगरा को पेटेंट करवाया जाएगा ताकि इसकी मौलिकता एवं पारंपरिकता को एक नई पहचान मिल सके।यह जानकारी उपायुक्त सिरमौर श्री ललित जैन ने आज यहां देते हुए कहा कि लोइए और डांगरा को पेटेंट करवाने के लिए उद्योग विभाग के माध्यम से प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है ।

उन्होने कहा कि हिमाचल पेटेंट सूचना केंद्र की स्थापना  हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद की नोडल एजेंसी हिमकोस्ट के तत्वाधान में की गई है जिनके द्वारा किसी भी वस्तु को भौगोलिक संकेत अर्थात जीआई टैग प्रदान करने के लिए मामला रजिस्ट्रार भौगोलिक संकेत चैन्नई के साथ उठाया जाता है  । उन्होने कहा कि लोईया और डांगरा को पेटेंट करवाने के लिए हिमकोस्ट के साथ पत्राचार आंरभ कर दिया गया है और हिमकोस्ट को लोईया और डांगरा के परम्परागत और मौलिकता के बारे जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही  है ।

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उपायुक्त ने कहा कि लोईया सिरमौर जिला के ट्रांसगिरि क्षेत्र की पहचान और  पारम्परिक वेशभूषा है जिसे विशेषकर सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र के लोग भी बड़े शौक के साथ पहनते हैं । उन्होने कहा कि सिरमौर जिला के लोग बदलते परिवेश के बावजूद भी भेड़-बकरियों का पालन करके उनकी ऊन को विशेषकर सर्दियों के मौसम मेें घर में चूल्हे के पास बैठकर काती जाती है और ऊन की पटटी तैयार करके लोईया को तैयार किया जाता है ।

उन्होने कहा कि सिरमौरी लोईया को सिलने वाले विशेष दर्जी भी गिरिपार क्षेत्र में उपलब्ध है । अतीत में लोईया को हाथ के साथ तैयार किया जाता था जिसमें काफी समय लग जाता था परन्तु वर्तमान में लोईया को मशीन से भी तैयार किया जाता है । उन्होने कहा कि लोईया ऐसा ऊन का उपयोगी कोट है जो कड़ाके की सर्दी में व्यक्ति के भीतर गर्मी संजोए रखता है।

उपायुक्त ने कहा कि लोईये और डांगरा एक दूसरे के पर्याय है।  डांगरा एक ऐसा अस्त्र – शस्त्र है जो आत्मरक्षा के साथ-साथ घरेलू कामों विशेषकर पशुओं के लिए चारा काटने में भी इस्तेमाल किया जाता  है। उन्होने बताया कि डांगरा को भगवान परशुराम के कुल्हाड़े का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि भगवान परशुराम भी ऐसा फरसा ही धारण करते थे।

उन्होने कहा कि डांगरा उत्तम क्वालिटी के लोहे से फरसे की आकृति में बना होता है जिसे गिरीपार क्षेत्र में लोग कालान्तर में  युद्धकाल और वर्तमान में ठोडा खेल के दौरान लोग हाथ में लेकर नृत्य भी करते हैं ।  उन्होने कहा कि सिरमौर का लोईया जहां  जिले के लोगों की सादगी का प्रतीक है वहीं डांगरा समाज में दुष्ट प्रवत्तियों के शमन के लिए अभियान का  भी प्रतीक माना जाता  है । उन्होने कहा कि सिरमौर जिला में लोइया और डांगरा अतिथि सत्कार के रूप में भी भेंट करने की भी परंपरा  है ।

उपायुक्त ने जानकारी दी कि किसी भी उत्पाद को भौगोतिक चिन्ह अर्थात जीआई टैग का दर्जा प्राप्त करने के लिए उसका संबधित क्षेत्र में उत्पादन अथवा निर्माण और प्रसंस्करण होना आवश्यक है । उन्होने कहा कि जिस प्रकार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा की पेंटिग, चम्बा का रूमाल, दार्जिलिंग चाय, तिरूपति का लडडू, कश्मीर का पशमीना इत्यादि को जीआई टैग मिला है उसी तर्ज पर सिरमौर का लोईया और डांगरा को जीआई टैग प्रदान करने के लिए प्रयास किए जा रहे ताकि सिरमौर के लोईया और डांगरा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान मिल सके ।

 

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