Khabron wala
कुछ कहानियां सिर्फ कामयाबी की नहीं होती, बल्कि उसमें संघर्ष, अकेलापन और टूटते-बिखरते सपने भी होते हैं। जो जिंदा रहने के और कुछ कर गुजरने की जिद की गवाही देते है। कुछ ऐसी ही कहानी है हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना से एक मेहनतकश लड़की की। जिसने अपने जीवन में लाख दुख सहे, मगर हार नहीं मानी।
बचपन में सिर से मां-बाप का साया उठ गया, लेकिन हालातों के अंधेरे ने उसके सपनों की रोशनी नहीं बुझाई। आज वही सोनल डॉक्टर बनकर न सिर्फ अपने परिवार का, बल्कि पूरे इलाके का सिर गर्व से ऊंचा कर रही है।
सोनल एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता नरेश चंद एक निजी कंपनी में कार्यरत थे। करीब 11 साल पहले अचानक उनके निधन ने पूरे परिवार को तोड़ कर रख दिया। दुख यहीं खत्म नहीं हुआ। पिता के जाने के महज चार महीने बाद ही मां नीलम देवी का भी देहांत हो गया। एक पल में सोनल और उनके भाई सुखविंदर पूरी तरह अनाथ हो गए।
भाई बना सहारा, बहन का टूटा नहीं हौसला
इन कठिन परिस्थितियों में सोनल के बड़े भाई सुखविंदर उनके लिए सबसे बड़ा सहारा बने। आज सुखविंदर बेंगलुरू में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, लेकिन उस दौर में उन्होंने बहन की पढ़ाई और हौसले को टूटने नहीं दिया। आर्थिक और मानसिक चुनौतियों के बावजूद सोनल ने पढ़ाई जारी रखी और खुद पर भरोसा बनाए रखा।
लगातार मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर सोनल ने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, सेक्टर-32 चंडीगढ़ से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। यह उपलब्धि अपने आप में बड़ी थी, लेकिन सोनल यहीं नहीं रुकीं। अब उनका चयन इसी संस्थान में एमडी (बाल रोग) के लिए भी हो गया है।
गांव-इलाके में खुशी, बनी युवाओं की प्रेरणा
डॉ. सोनल की इस सफलता से गांव बीटन और पूरे हरोली विधानसभा क्षेत्र में खुशी की लहर है। लोग उनकी मेहनत, धैर्य और संघर्ष को सलाम कर रहे हैं। क्षेत्रवासियों का कहना है कि सोनल की कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किल हालातों में हार मान लेते हैं।
सोनल की कहानी बताती है कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो रास्ता जरूर निकलता है। मां-बाप को खोने का दर्द, जिम्मेदारियों का बोझ और संघर्षों का साया, इन सबके बावजूद सोनल ने साबित कर दिया कि हौसला सबसे बड़ी ताकत होता है।










