अपनी अनूठी परंपरा के लिए देश-प्रदेश में विख्यात गिरीपार क्षेत्र में आज माघी त्यौहार मनाया जा रहा है। क्षेत्र में यह सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है जिसमें करीबन 40 हज़ार बकरे काटे जाते हैं। यह त्यौहार खासकर जिला सिरमौर में पांवटा साहिब के आंज-भोज, शिलाई, राजगढ, रेणुका तथा शिमला से लगते उत्तराखंड के जोणसार-बाबर आदि गिरीपार के इलाकों में रहने वाले हाटी समुदाय के लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। इस त्यौहार में हर परिवार में एक बकरा काटने की परम्परा है जोकि सदियों से चली आ रही है और इस त्यौहार को मनाने के लिये देश-विदेष के विभिन्न हिस्सों में नौकरी/व्यापार आदि करने गए युवक/युवतियां भी छुट्टी लेकर घर आते हैं और अपनों के साथ त्यौहार में खुशीयां मनाते हैं। इस दौरान लोग बाज़ारों से घरों को सजाने व खाद्य सामग्री की विशेष खरीददारी भी करते हैं।
गिरिपार के लोग साल भर से अपने घरों में बकरे पालते हैं तथा इस त्योहार पर उन्हें काट दिया जाता है। क्षेत्र के धनवान लोगों के बीच बडे से बडे और महंगे से महंगे बकरे काटने की स्पर्धा भी रहती है जो उनकी शान का प्रतीक होता है तो वहीं दूसरी ओर त्यौहार को मनाने के लिए बाध्य गरीब परिवार भी अपने घर में पाले हुए छोटे बकरों को ही काट कर खुशियां मना लेते हैं। हलांकि अब नई पीढी के युवा इसे इतना जरूरी नही मानते जितना 20 वर्ष पहले हुआ करता था।
पौराणिक परम्पराओं के अनुसार क्षेत्र में जब बर्फबारी होती थी तो लोग ठंड से बचने के लिए मीट का सेवन करते थे जिसे बाद में माघी त्यौहार का रूप दे दिया गया परंतु इसे निभाना गरीब के लिए अब मुसीबत बनता जा रहा है। इस परम्परा को समाप्त करने या इसकी तिथी को हेर-फेर करने के लिए कई समाजिक संगठन लम्बे समय से प्रयासरत हैं किंतु अभी तक एक राय नही बन पाई है।
मकर सक्रांति का त्यौहार जहां पूरे देश में सूर्यदेव की अराधना तथा लोहडी का पर्व अग्निदेव की तिल एवं गुड से पूजा के साथ मनाया जाता है वहीं पर सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली के उपरान्त माघी त्यौहार का पर्व बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कालान्तर से गिरि पार क्षेत्र में माघी त्यौहार पर बलि प्रथा का विधान है जोकि वर्तमान में भी कायम है परन्तु मंहगाई के इस दौर में अब काफी लोग बलि प्रथा को तिलांजलि देने लग गए है और माघी त्यौहार को लोगों ने पारंपरिक व्यंजनों के साथ मनाना आरंभ कर दिया है।
माघी पर्व लोग अपने आराध्य पीठासीन देवता की पारंपरिक ढंग से पूजा अर्चना भी करते हैं। विशेषकर जिला सिरमौर में चार बड़ी साजी अर्थात सक्रांति पर देव पूजा की परम्परा प्रचलित है। जिसमें वीशू अर्थात वैशाख सक्रांति, हरियाली, दिवाली और माघी अर्थात मकर सक्रांति शामिल है। लोगों की आस्था है कि इन चार बड़ी साजी पर पीठासीन देवता की पूजा से देवी देवता प्रसन्न होते है और क्षेत्र में समृद्धि एवं खुशहाली का सूत्रपात होता है।
माघी पर्व पर लोग अपने सगे संबंधियों खासकर बेटीयों को आमंत्रित करके कई दिन तक त्यौहार का पूर्ण आनन्द लिया जाता है। गिरिपार क्षेत्र की 125 पंचायतों में लगभग 44हजार परिवार रहते है और इस क्षेत्र के साथ लगते उत्तराखण्ड के जौनसार-बाबरक्षेत्र में भी माघी त्यौहार को पांरम्परिक तरह के साथ मनाने की प्रथा प्रचलित हेै। माघी त्यौहार का जश्न गिरिपार क्षेत्र में लगभग एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस वर्ष भी यह त्यौहार 12 जनवरी से आरंभ हो गया है जिसमें विभिन्न गांव में अलग-अलग तिथियों में यह त्यौहार मनाया जा रहा है। विशेषकर सर्दियों को मध्यनजर रखते हुए लोग पारंपरिक व्यंजन भी बनाते है