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राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने आज बताया कि हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम, 1954 की धारा-17 के तहत लंबित पुनरीक्षण मामलों (रेवेन्यू रिविजन केसिज) के निपटारे की प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाने के उददेश्य से राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इसके तहत अब वित्त आयुक्त (अपील) के अधिकार शिमला, कांगड़ा और मंडी मंडलों के मंडलीय आयुक्तों को सौंपे गए हैं। उन्होंने बताया कि यह प्रावधान उन मामलों पर लागू होगा जिनमें मंडलीय आयुक्तों ने पहले धारा-14 के अंतर्गत अपीलीय क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया है।
प्रवक्ता ने बताया कि वर्ष 2002 में हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व (संशोधन) अधिनियम के तहत धारा-17 के तहत पुनरीक्षण के अधिकार केवल वित्त आयुक्त (अपील) तक सीमित कर दिए गए थे। इससे पहले ये अधिकार कलेक्टर और मंडलीय आयुक्तों के पास थे, हालांकि अंतिम आदेश वित्त आयुक्त (अपील) द्वारा ही पारित किए जाते थे। यह व्यवस्था दोहराव वाली प्रक्रिया बन गई थी जिससे मामलों के निपटारे में अनावश्यक देरी हो रही थी।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 के संशोधन के बाद, वित्त आयुक्त (अपील) के समक्ष दायर होने वाले मामलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इस कारण दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों के लोगों को बार-बार शिमला आकर अपने मामलों की पैरवी करनी पड़ रही थी, जिससे उन्हें असुविधा और आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा था।
प्रवक्ता ने बताया कि इन मामलों को ध्यान में रखते हुए मंडलीय आयुक्तों को यह अधिकार देने का निर्णय लिया गया है ताकि प्रक्रिया को सरल और विकेन्द्रीकृत किया जा सके। इस निर्णय से आम जनता को उनके ही मंडल स्तर पर न्याय मिल सकेगा तथा लोगों का समय और धन की बचत होगी।
उन्होंने कहा कि इस कदम से न केवल न्याय तक पहुंच आसान होगी बल्कि वित्त आयुक्त (अपील) पर भी कार्यभार कम होगा और राज्य की राजस्व प्रणाली और अधिक प्रभावी एवं सुचारू रूप से कार्य करेगी।