अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्व के.के. पंत की अध्यक्षता में आज यहां प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं का पता लगाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित बहु-क्षेत्रीय केंद्रीय टीम (एमएससीटी) की बैठक आयोजित की गई। बैठक में बहु-क्षेत्रीय केंद्रीय टीम के टीम लीडर कर्नल के पी सिंह, सदस्य डॉ. एस.के. नेगी, प्रो. अरूण कुमार, डॉ. नीलिमा सत्यम तथा डॉ. सुस्मिता जोसफ मौजूद रहे।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने एमएससीटी टीम का स्वागत करते हुए कहा कि आपदा की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थितियां देश के अन्य राज्यों के तुलना में भिन्न हैं। इसके दृष्टिगत प्रदेश के लिए बहाली एवं पुनर्वास के कार्यों के लिए मानदंडों में बदलाव होना बेहद जरूरी है। उन्होंने केंद्रीय जल आयोग, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण जैसी संस्थाओं से प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं के विभिन्न कारणों का अध्ययन करने पर बल दिया।
के.के. पंत ने आपदा की दृष्टि से प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आपदा की संभावनाओं के दृष्टिगत अग्रिम भविष्यवाणी की तकनीक पर कार्य किया जाना चाहिए। उन्होंने प्रदेश में आपदा के बाद की स्थितियों के साथ-साथ आपदा पूर्व स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने का भी आह्वान किया ताकि जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके। उन्होेने प्रदेश भर में सटीक डेटा एकत्रित करने के लिए सघन सेंसर लगाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू प्रदेश में वर्ष 2023 से घट रही बादल फटने की घटनाओं का व्यापक अध्ययन करने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने केंद्रीय जल आयोग से प्रदेश में बाढ़ पुर्वानुमान इकाई स्थापित करने, हाइडोलॉजिकल निगरानी बढ़ाने तथा ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
डीजीआरई डीआरडीओ डॉ. नीरज तथा जीएसआई से अतुल वर्चुअल माध्यम से बैठक में शामिल हुए।
बहु-क्षेत्रीय केंद्रीय टीम ने डीजीआरई डीआरडीओ से उंचाई वाले क्षेत्रों से संबधित डेटा उपलब्ध करवाने तथा हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ आने तथा भू-स्खलन जैसी प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं घटित हो रही हैं, ऐसे में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) से इस दिशा में भी कार्य करने पर बल दिया।
विशेष सचिव राजस्व (आपदा प्रबंधन) डी.सी. राणा ने प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 से अब तक प्रदेश में 148 बादल फटने, 294 अचानक बाढ़ आने तथा भू-स्खलन की 5 हजार से अधिक की घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं। जिला कुल्लू, लाहौल-स्पीति, किन्नौर तथा जिला मंडी प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं।
उन्होनें एमएससीटी टीम को अवगत करवाया कि प्रदेश में वर्ष 2023 के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के कारण लगभग 10 हजार करोड़ रूपये का नुकसान आंका गया है। इसके अलावा प्रदेश को प्रति वर्ष एक से दो हजार करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रदेश में अचानक बाढ़ आना, बादल फटना तथा भू-स्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि देखने को मिल रही है।बैठक में बहु-क्षेत्रीय केंद्रीय टीम (एमएससीटी) के अलावा केंद्र व प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।