उतरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्री रेणुकाजी में बुधवार को फाल्गुन सक्रांति के पावन अवसर पर जहां जिला के विभिन्न क्षेत्रों एवं पड़ोसी राज्य से आए असंख्य लोगों द्वारा रेणुकाजी झील के पवित्र जल में स्नान किया वहीं पर नारग क्षेत्र से आए सैंकड़ों लोगों ने अपने आराध्य देव कुंवारू नाग देवता का भी रेणुका झील में मंत्रोच्चारण के साथ स्नान करवाया गया ।
देवता के पुजारी प्रभु दत ने जानकारी दी कि कुंवारू नाग देवता नारग क्षेत्र की आठ पंचायतों में रहने वाले 16 खैल के लोगों के कुलदेवता है जिसका प्रादुर्भाव कालांतर में नारग के गांव भड़ूत में एक ब्राह्मण परिवार में नाग के रूप में हुआ था । उन्होने कहा कि नाग देवता को बचपन में उनकी माता एक मिटटी के घड़े में रखा करती थी और उनका पालन पोषण अपने बेटे की तरह किया करती थी । एक दिन नाग देवता की माता पशुओं को घास लाने जंगल में गई और उन्होने अपनी बड़ी बेटी से नाग की सुरक्षा करने तथा उन्हे समय पर दूध पिलाने बारे कहा गया था । ब्राह्मणी जंगल जाते समय घर पर चूल्हे पर दूध को उबालने रख गई थी और बड़ी बेटी को कहा कि दूध में उबाल आने के उपरांत जब दूध ठंडा हो जाए तो उसे नाग को पिला देना ।
नाग की बड़ी बहन बाहर बच्चों के साथ खेलने में इतनी मग्न हुई कि वह नाग भाई को दूध पिलाना भूल गई । बेटी ने जब अपनी माता को वापिस घास लाते देखा तो बेटी डर गई और उसने चूल्हे पर रखा गर्म दूध घड़े में रखे नाग पर डाल दिया जिससे नाग की खाल जल गई और नाग क्रोधित होकर घड़े से बाहर निकले और जाते हुए उन्हे रास्ते में माता से अक्समात भंेट हुई और माता ने अपने नाग पुत्र को पहचानने में देरी नहीं लगाई । माता ने नाग पुत्र से कहा कि बेटा कहां जा रहे हो और वापिस घर चलों । क्रोधित नाग ने कहा कि आपकी बेटी और मेरी बहन ने मेरे शरीर पर गर्म दूध डाला है जिससे मेरा सारा शरीर झुलस गया है और मैं अब आपके साथ नहीं रहूंगा तथा हमारा मां-बेटा का संबध अब खत्म हो चुका है ।
तदोपरांत मां ने नाग से आग्रह किया कि बेटा तू ही मेरा सहारा था अब मैं अब तेरे बगैर अपना जीवन यापन कैसे करूंगी । जिस पर नाग ने माता को कहा कि गांव के रास्ते में फूमरां का पौधा है जिसकी तीन टहनियां घर ले जाओं जो आपको जीवन भर सहारा देगी। माता ने फूमरा पौधें की तीन टहनियां काट कर अपने घर ले गई और दो टहनियों को पशुशाला में छोड़ दिया और एक मोटी टहनी को इस आश्य से ले गई कि वह बेटी की उस टहनी से पिटाई करेगी जिसकी वजह से उसका नाग पुत्र घर छोड़ कर चला गया ।
जैसे की नाग माता घर की डियोढी पर पहूंचती है कि उस टहनी के चमत्कार से घर में बेशकीमती धन दौलत हो गई । नाग ने जाते हुए अपनी माता को दो वचन दिए थे कि भड़ूत गांव के लोग कभी सर्पदंश का शिकार नहीं होगें और वह वर्ष में दो बार अपने जन्म स्थान भड़ूत मकर सक्रांति और हरियाली सक्रांति के अवसर पर लोगों को आर्शिवाद देने आया करेगें और वचन में बंधे नाग देवता हर वर्ष भड़ूत में पंडित सत्यानंद शर्मा के घर आते हैं जहां पर विधि विधान से कुंवारू नाग देवता की पारंपरिक पूजा अर्चना की जाती है जिसमें पूरे क्षेत्र के लोग भाग लेते है और रात्रि को कीर्तन का आयोजन किया जाता है ।
माता से वार्तालाप करने के उपरांत नाग भड़ूत गांव के सामने टिल्ला पर चले गए और टिब्बा के पजैली नामक गांव में स्थित कुवांरू देवता के गले में लिपट गए और इस क्षेत्र से लोग उन्हें कालांतर से अपना कुल देवता मानते हैं। दिवाली व प्रबोधनी एकादशी के पर्व पर इस क्षेत्र के लोग आस्था व श्रद्धा से कुवांरू नाग देवता के मंदिर में जाकर भेंट चढ़ाते हैं और नाग देवता का आशिर्वाद प्राप्त करते हैं । देवता के पुजारी प्रभु दत ने बताया कि वह रेणुका झील में कुवांरू देवता का स्नान करने के उपरांत हरिद्वार जाएगें और वहीं गंगा में भी देवता का स्नान करवाकर अपने स्थान लाया जाएगा जहां मंदिर में वेदोमंत्रोच्चारण के साथ देवता को पुनः प्रवेश करवाया जाएगा ।