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जिला मुख्यालय धर्मशाला क्षेत्र में सरकारी भूमि की खरीद फरोख्त मामले में अब एक नया मोड़ आ गया है। यह जमीन पूरी तरह से सरकारी नहीं थी जबकि यह भूखंड गैर मौरूसी था और उसके काश्तकारों के नाम इसे दर्ज किया गया था। यह भूखंड जब काश्तकारों के नाम दर्ज हो गया तो उन्होंने उसी के आधार पर इसे आगे बेच दिया, लेकिन जब पांच साल बाद जमाबंदी हुई तो इसे रिव्यू किया गया। उस दौरान सामने आया कि यह आगे से आगे करीब 35 लोगों को बेची जा चुकी थी। लेकिन किसी भी इंतकाल का अमलद्रामद नहीं हो पाया था, ऐसे में वह खाते पूर्व की तरह सरकारी से गैर मैरूसी ही हैं। यह मामला साल 2019-20 का बताया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो यह भूखंड हिमाचल सरकार के नाम था और स्थानीय लोग उसके काश्तकार थे। यानी मालिक के कालम में हिमाचल सरकार और काश्तकार वाले कॉलम में स्थानीय लोग थे।
तत्कालीन तहसीलदार ने इसे टेंडेंसी एक्ट के तहत काश्तकारों के नाम दर्ज कर दिया। इस सारे मामले में असली पेंच तब फंसा जब जमाबंदी को तैयार कर तहसीलदार के पास फाइनल अप्रवूल के लिए पेश किया गया तो मौजूदा तहसीलदार को इस भूखंड काश्तकारों के नाम करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर संदेह हुआ। इसी आधार पर तहसीलदार ने इस जमाबंदी को फिर से रिव्यू करने का आग्रह किया। एसडीएम से अनुमति मिलने के बाद यह सारा मामला तहसीलदार के पास पेंडिंग है। हालांकि जमाबंदी तैयार होते होते इस भूखंड की कुल 35 रजिस्ट्रियां हो चुकी थी। क्योंकि जमाबंदी पांच साल बाद तैयार होती है। अब यह सारा मामला तहसीलदार की जांच के बाद स्पष्ट हो पाएगा कि उस दौरान अपनाई गई प्रक्रिया सही थी या गलत।
बिना कागज देखे जमीन खरीदने वाले खुद जिम्मेदार
उपायुक्त हेम राज बैरवा का कहना है कि यह मामला साल 2019 और 20 के बीच हुआ था, लेकिन सरकार की जमीन को किस कानून के तहत लोगों के नाम किया गया, यह जांच का विषय है, जिसकी जांच की जा रही है। उन्होंने एक चीज स्पष्ट कर दी है कि जिन्होंने यह जमीन खरीदी है यह उनकी जिम्मेदारी भी बनती थी कि वह खरीद फरोख्त से पहले दस्तावेजों की सही जांच कर लें। अगर जमीन की म्यूटेशन गलत तरीके से हुई होगी तो इसे रद्द कर दिया जाएगा। दस्तावेज बिना देखे जमीन खरीदने वाले इसके स्वयं जिम्मेदार होंगे।











