प्रसव पीड़ा में भी पालकी पर उठा कर पहुंचाया जाता है अस्पताल गांवों को सड़कें नहीं , अस्पताल में डॉक्टर नहीं

(धनेश गौतम ) जिला कुल्लू के बंजार विस् क्षेत्र की जनता नारकीय जीवन जीने को विवश है। बंजार की 80 फीसदी आवादी दुर्गम क्षेत्रों में रहती है और यहां मूलभूत सुविधा का अभाव है। बंजार की तीर्थन घाटी के कई गांवों में आज भी सड़कें नहीं पहुंची है और जहां सड़कें पहुंची है तो वहां अस्पताल तो है लेकिन उपचार के लिए डाक्टर नहीं है।

सड़क न होने के कारण लोगों को बीमारी की हालत में उपचार के बारे में 100 बार सोचना पड़ता है जिस कारण कई जिंदगियां बिना इलाज के ही दम तोड़ देती है। लेकिन कुछ लोगों को गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचाना हो तो लकड़ी की पालकी बनाकर उसमें बिठाकर मुख्य सड़क तक लाया जाता है।

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प्रसूता महिलाओं के लिए बेशक सरकार ने मुफ्त एनवुलेन्स की ब्यबस्था रखी हो लेकिन यहां तो दो कंधों के सहारे प्रसूता महिला को अस्पताल तक पहुंचाया जाता है। इतना कष्ट करने के बाद भी अस्पताल में डाक्टर न मिले तो जनता सिर पर हाथ रखकर अपने किस्मत को कोसती है। तीर्थन घाटी की नोहंडा पंचायत के भी यही हाल है। शलिंगा गांव की एक महिला को प्रसब पीड़ा के चलते लकड़ी के डंडों के सहारे सड़क की ओर को उठा कर लाया जा रहा है।

दुख तो इस बात का है तीर्थन घाटी के एक मात्र अस्पताल में डॉक्टर तक नहीं है न तो आज इस महिला को घर द्वार प्रसब प्रचार में कुछ सुविधा मिल सकती थी और वीना डॉक्टर के सहारे चलने वाले गुशेनी अस्पताल के लिए जिम्मेवार कौन है यह भी स्वाल खड़े हो रहे हैं। जनता पूछ रही है कि कौन समझेगा तीर्थन घाटी की जनता की पीड़ा को और कब मिलेंगे तीर्थन घाटी की जनता को डॉक्टर।

घाटी के कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस मामले को उठाना शुरू किया है लेकिन सत्ता पक्ष लोग समाधान के बजाय एक ही बात पर जोर दे रही है कि बदल रहा है देश, बदल रहा है बंजार। जिसका अब जनता ने उपहास उड़ाना शुरू कर दिया है कि जमीनी स्तर पर काम ठप है और सत्ता पक्ष के लोग अभी भी जनता को वेवकूफ बनाने चली है और कह रही है कि बदल रहा है बंजार। जनता बेशक सबकुछ जानती है लेकिन समस्याओं से जूझने के अलावा उनके पास कोई चारा भी नहीं है कियूंकि इस बक्त जनता की सुनने बाला कोई नहीं।

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