शिव पुराण के अनुसार शिवरात्रि पर्व को भगवान शिव की उपासना के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है तथा ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि महोत्सव पर की गई तपस्या से भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। शिवरात्रि के महान पर्व पर जहां पर पूरे देश के शिवालयों में बम-बम भोले के उदघोष गुंजायमान होते हैं वहीं पर नाहन के समीप पौड़ीवाला के प्राचीन शिव मंदिर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 4 व 5 मार्च को शिवरात्रि महोत्सव बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है । लोगों की आस्था है कि पौड़ीवाला शिव मंदिर में शिवरात्रि को भगवान शिव साक्षात् रूप से विद्यमान रहते हैं और इस पावन पर्व पर शिवलिंग के दर्शन से जहां अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है वहीं पर सभी प्रकार से कष्टों से छुटकारा पाने के अतिरिक्त मनवांछित फल भी मिलता हैं ।
सिरमौर जिला के मुख्यालय नाहन से मात्र छः किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय उच्च मार्ग-7 के साथ लगते पौड़ीवाला में स्थित पौराणिक शिवालय देश के प्राचीन मुख्यालयों में से एक है। जिसका इतिहास लंकाधिपति रावण से जुड़ा है। शिवरात्रि के पावन उपलक्ष्य पर इस शिवालय में स्थित शिवलिंग के दर्शन के दर्शन मात्र से अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है, ऐसी लोगों में मान्यता है। इसके अतिरिक्त श्रावण तथा माघ मास में भी इस शिवलिंग के दर्शन और जलाभिषेक करने का विशेष महात्व होता है। हर वर्ष हजारों की तादाद में नाहन क्षेत्र के साथ, साथ लगते हरियाणा से भी श्रद्धालु यहां आकर शिवधाम में पूजा अर्चना करके पुण्य कमाते हैं।
जनश्रुति के अनुसार रावण ने अमरता प्राप्त करने के लिए शिव भोले भगवान की घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव शंकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि यदि एक दिन में वह स्वर्ग के लिए पांच पौडियॉं निर्मित कर देगें, तो उसे अमरता प्राप्त हो जाएगी। रावण ने पहली पौड़ी हरिद्वार में हर की पौडी, दूसरीं शिव मंदिर पौडी वाला, तीसरी चूडे़श्वर महादेव और चौथी पौड़ी किन्नर कैलाश पर्वत पर बना ली। इसके बाद उन्हें नींद आ गई और जब वह जागे तो अगली सुबह हो चुकी थी। मान्यता है कि पौड़ी वाला स्थित इस शिवलिंग में साक्षात शिव शंकर भगवान विद्यमान है जहां आने वाले हर श्रद्धालु की सभी मनोकामनाऐं पूर्ण होती है।
एक अन्य कथा के अनुसार मृकण्डु ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए विष्णु भगवान की तपस्या की । विष्णु भगवान की तपस्या से प्रसन्न होकर ऋषि को पुत्र का वरदान देते हुए कहा कि पुत्र की आयु केवल 12 वर्ष की होगी। अतः इस वरदान के फलस्वरूप मारकण्डेय ऋषि का जन्म हुआ, जिन्होने अमरता प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या में निरन्तर महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। 12 वर्ष की आयु होने पर जब यमराज उन्हें लेने आए तो उन्होने बोहलियों स्थित शिवलिंग को अपनी बाहों में भर लिया, जिससे शिवजी स्वयं वहां प्रकट हुए तथा शिव ने मारकण्डेय ऋषि को अमरता प्रदान की। इसी पावन स्थल से मारकण्डा नदी का उदगम हुआ। बताया जाता है कि अमरता प्रदान के उपरांत शिव शंकर पौडीवाला में स्थित शिवलिंग में समा गए।
पौड़ीवाला की प्राकृतिक सुन्दरता और प्राचीन शिव मंदिर के महत्व को देखते हुए प्रदेश सरकार द्वारा यहां पर नेचर पार्क निर्मित करने के लिए कार्य योजना तैयार की गई है जिस पर डेढ करोड़ की राशि व्यय होगी । वन विभाग द्वारा इस पार्क को 6.2 हैक्टेयर भूमि पर विकसित किया जाएगा ताकि इस पावन स्थली पर आने वाला पर्यटक एवं श्रद्धालु मंदिर में शिवलिंग के दर्शन के साथ साथ प्रकृति की अनुपम छटा का भरपूर आन्नद ले सके । सिरमौर में प्रवेश करने वाले पर्यटक त्रिलोकपुर में माता बाला सुंदरी मंदिर में दर्शन के उपरांत फौसिल पार्क सुकेती, पौड़ीवाला प्राचीन शिव मंदिर , ऐतिहासिक गुरूद्धारा पांवटा साहिब, श्री रेणुकाजी, माता भंगायणी मंदिर हरिपुरधार इत्यादि का भ्रमण करके प्रकृति की अनुपम छटा का आन्नद ले सके । धार्मिक पर्यटन के पूर्ण रूप से विकसित होने पर जिला सिरमौर में लोगों को परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप में स्वरोजगार के अवसर भी प्राप्त होगें ।