प्रेस की स्वतंत्रता के लिए मीडिया जगत को स्वयं होना पड़ेगा सजग

पूरे देशभर में बड़े हर्षोल्लास के साथ प्रेस दिवस मनाया गया। हिमाचल प्रदेश में प्रेस के लिए चुनौतियों के विषय पर इस दिन मीडिया के लोगों में मंथन हुआ। गोष्टियां हुई, सेमीनार हुए और इससे पहले भी प्रेस की स्वतंत्रता पर कई कार्यक्रम आयोजित होते आए हैं। मीडिया के लोग भी प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चीख-चीख कर कहते रहते हैं लेकिन फिर भी आए दिनों प्रेस का गला घोंटने के मामले सामने आते रहते हैं। यह बात नॉर्थ इंडिया पत्रकार एसोसिऐशन हिमाचल के अध्यक्ष एवं प्रेस क्लब कुल्लू के प्रधान धनेश गौतम ने कही।

उन्होंने कहा कि प्रेस दिवस के दिन ही बड़ी-बड़ी बातें होती है और उसके बाद प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर आज तक कुछ खास नहीं हुआ है। वर्तमान में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को यदि जिंदा रखना है और प्रेस की स्वतंत्रता कायम रखनी है तो मीडिया जगत को स्वयं इसमें प्रयास करने होंगे। मीडिया सेक्टर में प्रवेश हुए व्यवसाय के दानव ने प्रेस की गरिमा को भंग किया है। ऐसी स्थिति में मीडिया जगत को अपने आप को स्वच्छ, स्टीक, निर्भिक व स्वतंत्र पत्रकारिता करना बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन मीडिया जगत यदि इस चुनौती को पार कर जाती है तो प्रेस की स्वतंत्रता को कायम रखा जा सकता है।

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आज व्यवसाय के कारण पत्रकारों को कई जगह घुटने टेकने पड़ रहे हैं जिस कारण स्वच्छ पत्रकारिता नहीं हो पा रही है। मेरा मानना है कि व्यवसाय के इस दौर में भी पत्रकारिता को जिंदा रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारों को निर्भिक व स्टीक पत्रकारिता करने की आवश्यकता है और व्यवसाय के चक्र में चाटुकार पत्रकारिता से परहेज करना होगा। यदि पत्रकार निर्भिक, स्टीक व स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करता है तो पत्रकारिता की गरिमा भी जिंदा रहेगी और पत्रकारिता में आने वाला व्यवसाय खुद व खुद चलकर आएगा। उन्होंने कहा कि मीडिया को समाज का दर्पण माना जाता है। यदि दर्पण ही धुंधला हो तो समाज को भी धुंधली तस्वीर पेश होती है।

दर्पण का काम है समतल दर्पण की तरह काम करना ताकि वह समाज की हू-ब-हू तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें। परंतु कभी-कभी समतल दर्पण की जगह उत्तल या अवतल दर्पण की तरह काम करने लग जाते हैं। इससे समाज की उल्टी, अवास्तविक, काल्पनिक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती है। तात्पर्य यह है कि खोजी पत्रकारिता के नाम पर आज पीली व नीली पत्रकारिता हमारे गुलाबी जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही है। परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं है।

जब गाड़ी का एक पुर्जा टूटता है तो दूसरा पुर्जा भी टूट जाता है और धीरे-धीरे पूरी गाड़ी बेकार हो जाती है। समाज में कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही है। समाज में हमेशा बदलाव आता रहता है। विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसी अवस्था में समाज अमंजस की स्थिति में आ जाता है। इस स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता है। प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एवं पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। जिसके चलते चार जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई जिसने 16 नंवबर 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। ताकि प्रेस की स्वतंत्रता बनी रहे।

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