अंतर्राष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला के अवसर पर आज पारंपरिक बुड़ाह लोक नृत्य प्रतियोगिता के द्वारा सिरमौरी संस्कृति की शानदार झलक देखने को मिली। जिले के विभिन्न लोक कलाकारों के दलों ने बुड़ाह पारंपरिक लोक नृत्य के साथ वाद्य यंत्रों की धुन से लोगों को मंत्रमुग्ध किया और अपनी-अपनी कला का शानदार प्रदर्शन किया।
सिरमौरी सभ्यता के आरम्भिक इतिहास को लोक संगीत से ही जाना जा सकता है बुडाह नृत्य जिला सिरमौर में दीवाली के पर्व पर अमावस्या से भैया दूज तक किया जाता है। इस नृत्य के आरम्भ में इसके इतिहास को भी गाया जाता है। जिसके अनुसार बुडाह नृत्य को पाण्डवों ने श्री कृष्ण के परामर्श से समायोजित किया था।
इस नृत्य के समय ऐतिहासिक वीरगाथायें युद्ध गाथायें व हारुलों का गायन किया जाता है। इस नृत्य का मुख्य आकर्षण इसकी पोशाक है जिसमें चोलना, डांगरा,आभुषण से सुसज्जित लोक गायक बाँसुरी हुडक थाली दमामु/दमान्टु आदी वाद्यों के साथ झूम झूम कर गायन व नृत्य प्रस्तुत करते है।
भाषा एवं संस्कृति विभाग और रेणुका विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान द्वारा आयोजित पारंपरिक बुड़ाह लोक नृत्य प्रतियोगिता में कुल सात दलों ने भाग लिया। जिनमें गिरी आर हाटी कला मन्च, गुगा महाराज बुडियात संस्कृति क्लब, सांस्कृतिक कला मन्च पखवान, बुड़ाह नृत्य दल ऊँचाटीकर, शिरगुल कला मन्च घाटों, पारम्परिक बुड़ाह लोकनृत्य संस्कृति दल हनत, बुड़ाह लोकनृत्य दल सेंज ने अपनी प्रस्तुतियां दी।
जिला भाषा अधिकारी कांता नेगी ने बताया कि प्रथम स्थान पर रहे बुड़ाह लोकनृत्य दल सेंज को 21 हजार रुपये, दूसरे स्थान पर रहे बुड़ाह नृत्य दल ऊँचा टीकर को 15 हजार रुपये, तथा तीसरे स्थान पर रहे सांस्कृतिक कला मन्च पखवान को 11 हजार रुपये नगद इनाम के साथ सभी दलों के सदस्यों को एक हजार रुपये प्रति व्यक्ति यात्रा भत्ता/पारिश्रमिक दिया जाएगा।