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हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के संजौली में स्थित मस्जिद को लेकर उपजे विवाद को आज पूरा एक साल हो गया है। लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी अभी तक अवैध मस्जिद को पूरी तरह स गिराया नहीं गया है। मस्जिद विवाद के एक साल पूरे होने पर आज गुरुवार को हिंदू संगठनों ने मस्जिद के पास प्रदर्शन किया और सुक्खू सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया।
सुक्खू सरकार का अर्ध पिंडदान किया
इस दौरान हिंदू संगठनों के प्रतिनिधियों ने सुक्खू सरकार के अलावा वक्फ बोर्ड और सनातन विरोधियों का अर्ध पिंडदान किया। उन्होंने आज संजौली श्मशान घाट के आधे रास्ते में सुक्खू सरकार के आधे कार्यकाल और आधी अधूरी मस्जिद तोड़ने की अधूरी प्रक्रिया को लेकर सरकार का अर्ध पिंडदान कर अपना विरोध जताया।
दरअसल एक साल पहले आज के ही दिन संजौली में बनी अवैध मस्जिद निर्माण को लेकर हिंदू संगठनों और भारी संख्या में पहुंचे लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस विरोध प्रदर्शन पर सरकार के निर्देश पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया था। आज हिंदू संगठनों ने उसी के विरोध में संजौली मस्जिद के बाहर प्रदर्शन किया और सरकार का अर्ध पिंडदान कर आज के दिन को सनातन शौर्य.स्मृति एवं प्रतिकार दिवस के रूप में याद किया।
हिमाचल प्रदेश में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के लागू होने के चलते जिला प्रशासन ने हिंदू संगठनों को केवल 11 लोगों के धरना प्रदर्शन करने की ही अनुमति दी थी। इस सीमित संख्या के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अपने संदेश को मजबूती से सामने रखा। हालांकि इस दौरान पुलिस ने मस्जिद के आसपास पुलिस बल की तैनाती की थी। संजौली थाने में भी अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए थे। हिंदू संगठनों के प्रदर्शन के बावजूद संजौली क्षेत्र में स्थिति पूरी तरह शांतिपूर्ण बनी रही और किसी प्रकार की अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली।
देव भूमि संघर्ष समिति के सह संयोजक विजय शर्मा और मदन ठाकुर ने प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले आंदोलनों के प्रभाव से भयभीत होकर प्रशासन ने इस बार संख्या सीमित रखी है। उन्होंने कहा कि संजौली श्मशान घाट के रास्ते में अर्ध पिंडदान करके हमने सरकार को यह संदेश दिया है कि अगर हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ जारी रहा, तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
मारपीट से शुरू हुआ था मामला
संजौली मस्जिद को लेकर विवाद की शुरुआत एक वर्ष पूर्व एक स्थानीय मारपीट की घटना के बाद हुई थी। इसके बाद हिंदू संगठनों ने मस्जिद को अवैध बताते हुए जोरदार प्रदर्शन किए। जिसके चलते नगर निगम ने भी मामले की कार्रवाई शुरू की। निगम की अदालत ने मस्जिद की ऊपरी मंजिलों को हटाने का आदेश दिया, जिसे बाद में विस्तारित कर संपूर्ण ढांचे को गिराने के निर्देश दिए गए।
हालांकि मस्जिद कमेटी ने स्वयं ही ऊपरी मंजिल को तोड़ने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी, लेकिन आर्थिक संसाधनों की कमी के चलते कार्य अधूरा रह गया। मस्जिद प्रबंधन ने बाद में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिससे विधिक प्रक्रिया अब भी लंबित है।
2010 से चल रहा है विवाद
उल्लेखनीय है कि मस्जिद का निर्माण विवाद वर्ष 2010 से चला आ रहा हैए लेकिन बीते एक वर्ष में यह मामला तीव्र राजनीतिक और धार्मिक रंग ले चुका है। हिंदू संगठनों का कहना है कि मस्जिद का ढांचा पूरी तरह अवैध है और इसे गिराए जाने में हो रही देरी से समुदाय की भावनाएं आहत हो रही हैं।
नेपाल से भी भयानक परिणाम
प्रदर्शनकारियों ने प्रदेश सरकार, विशेषकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर निशाना साधा। उनका कहना है कि आधा कार्यकाल बीतने के बावजूद सरकार ने मस्जिद मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। देव भूमि संघर्ष समिति के नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार समय रहते कार्रवाई नहीं करती है, तो आने वाले समय में विरोध और उग्र रूप ले सकता है। इतना ही नहीं सरकार अगर समय रहते नहीं जागी तो परिणाम नेपाल से भी भयानक हो सकते हैं।
संजौली मस्जिद विवाद न केवल धार्मिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है, बल्कि यह अब एक संवेदनशील राजनीतिक मामला भी बन गया है। एक ओर मस्जिद के प्रबंधन द्वारा विधिक प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर हिंदू संगठनों का आक्रोश सरकार की निष्क्रियता को लेकर बढ़ता जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस संतुलन को कैसे संभालती है और क्या कोर्ट का निर्णय इस विवाद का स्थायी समाधान बन पाएगा।