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हिमाचल प्रदेश में होनहारों की कमी नहीं है। होनहार युवा हर क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा रहे हैं। हिमाचल के कई होनहार एक साथ कई कठिन परीक्षा को उत्तीर्ण कर परिवार व प्रदेश का मान बढ़ा रहे हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हिमाचल के बिलासपुर जिले के अरुण कुमार संख्यान ने।
गांव के बेटे की बड़ी सफलता
झंडूता विधानसभा क्षेत्र की पंचायत डाहड के रहने वाले अरुण कुमार संख्यान की, जिन्होंने दूसरी बार हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर तहसीलदार बनने का गौरव हासिल किया है। इससे पहले वे वर्ष 2024 में यही परीक्षा पास कर नायब तहसीलदार के पद पर सेवाएं दे रहे थे।
अरुण कुमार संख्यान एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता ठाकुर दास शर्मा JBT क के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जबकि माता देवी गृहिणी हैं। सीमित संसाधनों और गांव के साधारण माहौल में पले-बढ़े अरुण ने कभी परिस्थितियों को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से ही पूरी की, जहां से मेहनत और अनुशासन की नींव पड़ी।
उच्च शिक्षा के लिए अरुण शिमला पहुंचे और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान (केमिस्ट्री) में पोस्ट ग्रेजुएशन की। यूनिवर्सिटी के दिनों में ही उन्होंने तय कर लिया था कि वे प्रशासनिक सेवा में जाकर समाज के लिए काम करना चाहते हैं। हालांकि, यह रास्ता आसान नहीं था। पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, आर्थिक सीमाएं और मानसिक दबाव- इन सभी चुनौतियों से उन्हें गुजरना पड़ा।
अरुण का पहला बड़ा चयन वर्ष 2021 में हुआ, जब उन्होंने हिमाचल प्रदेश अलाइड सर्विसेज परीक्षा पास कर ऑडिट इंस्पेक्टर का पद हासिल किया। सरकारी सेवा में कदम रखने के बाद भी उनका लक्ष्य और बड़ा था।
फिर बने नायब तहसीलदार
उन्होंने तैयारी जारी रखी और वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा परीक्षा दी। पहले ही प्रयास में उनका चयन नायब तहसीलदार के रूप में हो गया। इस उपलब्धि के बावजूद वे यहीं नहीं रुके। बेहतर प्रदर्शन और उच्च जिम्मेदारी की चाह में उन्होंने दोबारा प्रयास किया।
लगातार मेहनत का नतीजा वर्ष 2025 में सामने आया, जब अरुण कुमार संख्यान ने एक बार फिर हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास कर तहसीलदार पद के लिए चयन हासिल किया। यह उनकी तीसरी सरकारी नौकरी और प्रशासनिक सेवा में दूसरी बड़ी सफलता है।
अरुण ने सफलता का जिक्र
अपनी इस उपलब्धि को लेकर उन्होंने एक वीडियो संदेश भी जारी किया, जिसमें अपने संघर्ष, असफलताओं और सफलताओं का खुलकर जिक्र किया। अरुण अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, बहनों और अपनी धर्मपत्नी स्वेता शर्मा को देते हैं।
वे बताते हैं कि उनकी पत्नी ने हर मुश्किल दौर में उन्हें मानसिक संबल दिया और पढ़ाई के लिए लगातार प्रेरित किया। इसके अलावा वे अपने मित्र आदर्श शर्मा के योगदान को भी महत्वपूर्ण मानते हैं, जिन्होंने तैयारी के दौरान उन्हें मार्गदर्शन और हौसला दिया।
असफलताओं ने बनाया मजबूत
अपने अनुभव साझा करते हुए अरुण कहते हैं कि गांव की सीमित सुविधाओं के बीच ही उनके सपनों ने आकार लिया। उन्होंने माना कि इस सफर में असफलताएं भी मिलीं, लेकिन उन्हीं असफलताओं ने उन्हें और मजबूत बनाया। उनका मानना है कि यह उपलब्धि किसी एक व्यक्ति की नहीं होती, बल्कि पूरे परिवार और मित्रों के सहयोग का परिणाम होती है।
अरुण कुमार संख्यान का संदेश साफ है-सपने जरूर पूरे होते हैं, बस उनका पीछा छोड़ना नहीं चाहिए। पृष्ठभूमि या संसाधनों की कमी कभी बाधा नहीं बनती, अगर मेहनत और लगन सच्ची हो। उनकी कहानी आज उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो छोटे गांवों से बड़े सपने देखते हैं और उन्हें साकार करने का हौसला रखते हैं।











