सिरमौर जिला में महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जिला ग्रामीण विकास अभिकरण, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) के माध्यम से बेहतरीन कार्य कर रहा है। इस मिशन के तहत जिला में स्वयं सहायता समूहों का गठन कर महिलाओं को विभिन्न स्वरोजगार अपना कर उनकी आर्थिकी को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
वर्तमान में जिला में एन.आर.एल.एम. के तहत करीब 3946 स्वयं सहायता समूह कार्य कर रहे हैं। समूहों की महिलाएं विभिन्न स्वरोजगार जैसे फूड प्रोसिंग में आचार, पापड़, जूस, स्क्वेश, मुरब्बा के अलावा जूट बैग, पाईन फर्नीचर आदि पर प्रमुखता से कार्य कर रहे हैं। पिछले एक दो साल से कुछ समूहों ने होली के लिए हर्बल रंगों को बनाने को भी अपने स्वरोजगार संसाधन में शामिल कर लिया है।
वर्तमान में जिला में करीब 86 स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी.) होली के लिए प्राकृतिक अथवा हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रहे हैं। पांवटा साहिब खंड के लक्ष्य, दिशा, अनुभव, अनन्या, शिवालय, शिव शंकर और भूरेश्वर स्वयं सहायता समूह तथा नाहन का बंधन, पच्छाद का शी हाट, राजगढ़ का प्रगति, शिलाई का गुग्गा महाराज और राधा कृष्ण सहित कुल 12 विलेज आर्गेनाइजेशन, 86 स्वयं सहायता समूहों को होली का रंग तैयार कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने लिए अभिप्रेरित कर रहे हैं।
समूहों द्वारा तैयार इन रंगों को डीआरडीए के खंड स्तर पर निर्मित हिमिरा शॉप में विक्रय के लिए रखा जा रहा है। कुछ समूह अपने स्तर पर रंगों को तैयार कर बाजार में विक्रय कर रहे हैं। पिछले वर्ष करीब 30 स्वयं सहायता समूहांे ने होली के प्राकृतिक रंग बनाए थे और लोगों ने इन्हें खूब पसंद किया। इसी से प्रेरित होकर इस बार भी स्वयं सहायता समूहों ने होली के आर्गेनिक रंगों को तैयार करने का अनुकरणीय कदम उठाया है।
नाहन के समीप देवनी पंचायत का बंधन स्वयं सहायता समूह होली के आर्गेनिक रंगों को तैयार करने की दिशा में पिछले दो वर्षों से आगे बढ़ रहा हैॅ। इस समूह ने इस बार होली के लिए पांच रंगों का करीब 50 किलो हर्बल गुलाल रंग तैयार किया है। समूह ने मोगीनंद के मुख्य मार्ग पर स्टाल लगाकर इस रंग का विक्रय करने की तैयारी कर ली है।
समूह की प्रधान शिप्रा राय कहती हैं कि इस बार हमारे पास होली पर आर्गेनिक रंगों की एडवांस बुकिंग आ गई है। हमारी पंचायत और आसपास के क्षेंत्रों के लोगों की आर्गेनिक रंगों की काफी डिमांड है। किन्तु इस साल हम केवल 50 किलो रंग ही बना पा रहे हैं। पिछले साल हमने 25 किलो रंग तैयार किया था। लोगों की डिमांड और बढ़ते रूझान को देखते हुए अगले साल की होली के लिए हमारा लक्ष्य 100 किलोग्राम तक का है।
शिप्रा बताती हैं कि होली का आर्गेनिक रंग अरारोट के आटे के साथ तैयार किया जाता है। अरारोट के आटे में फूड कलर यानि होली का जो रंग आपको बनाना हो उसी रंग का फूड कलर डाल कर तैयार किया जाता है। रंग को खुश्बुदार बनाने के लिए इसमें इत्र और गुलाब जल भी डाला जाता है। इस प्रकार इन मिश्रणों से त्वचा, आंखों और स्वास्थ्य के अनुकूल आर्गेनिक रंग तैयार हो जाता है।
बंधन स्वयं सहायता समूह ने 100 ग्राम आर्गेनिक रंग का मूल्य 20 रुपये रखा है यानि 200 रुपये प्रति किलो। समूह की सदस्य कहती हैं कि अरारोट का आटा, इत्र, गुलाब जल, पैकिंग और महिलाओं के श्रम को शामिल किया जाए तो अच्छी बचत हो रही है। यदि हम 100 किलो से ऊपर रंग तैयार कर लें तो और अच्छी आय हो सकती है। समूह में शिप्रा राय, ऊषा, संगीता, कमलेश, सीमा, फरीदा, रूपा, रफिया, छीमा देवी, बलकिश और आशिया आर्थिक रूप से निर्भर होने के लिए लगातार प्रयासरत हैं और स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियों से जुड़ रही हैं। होली के रंगों के साथ आचार, पापड़ और दूसरे उत्पाद भी तैयार किये जा रहे हैं।
उपायुक्त सिरमौर आर.के. गौतम कहते हैं कि सिरमौर जिला में स्वयं सहायता समूह बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी 86 स्वयं सहायता समूह होली के आर्गेनिक रंग तैयार कर रहे है। कुछ समूह जहां अरारोट के साथ फूड कलर मिलाकर रंग बना रहे हैं तो कई समूह पालक, चुकंदर और गंेदे के फूल से हर्बल कलर बना रहे हैं। यह एक बेहतरीन और सरानीय प्रयास है। इससे जहां आम जन को होली पर आर्गेनिक रंग उपलब्ध होंगे वहीं हमारे समूहों की महिलाओं की आमदनी भी बढ़ेगी। आर्गेनिक रंग त्वचा, आंखें और स्वास्थ्य की दृष्टि से अनकूल हैं और पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हैं।
परियोजना अधिकारी जिला ग्रामीण विकास अभिकरण सिरमौर अभिषेक मित्तल कहते हैं कि सिरमौर जिला में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह अच्छा कार्य कर रहे हैं। इस बार 86 समूह होली के लिए आर्गेनिक रंग तैयार कर रहे हैं। हम ऐसे समूहों को अपनी शुभकामनाएं देते हैं और उनसे अपेक्षा करते हैं कि वह अन्य उत्पादों को भी तैयार करे। हम इन सभी समूहों को सरकार की नीति के अनुरूप यथ संभव सहयोग करेंगे और उनका मागदर्शन करेंगे।
बहरहाल, हम यह कह सकते हैं कि होली के अवसर पर अब सिंथेटिक रंगों की अपेक्षा आर्गेनिक यानि प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल का प्रचलन धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा हैं। सिरमौर जिला में पिछले कुछ सालों से प्रशासन के सहयोग और मार्गदर्शन से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं आर्गेनिक रंग तैयार कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रही हैं। यह एक नई शुरूआत है और अनुकरणीय है।