ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस कचरा प्रबंधन और स्वच्छता को प्रभावी बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने आदर्श उप-नियम-2025 जारी किए हैं। ये उप-नियम हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 188 के तहत जारी किए गए हैं। राज्य की सभी ग्राम पंचायतों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अगले छः महीनों के भीतर इन उपविधियों/बाय-लॉ को अपनाएं।

ग्रामीण विकास विभाग के एक प्रवक्ता ने जानकारी दी है कि इन उप-नियमों के तहत सभी घरों और संस्थानों पर ही पृथक करना, घर-घर कचरा संग्रहण, नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना और स्वच्छता शुल्क की वसूली अनिवार्य होगी। एकत्रित धनराशि का उपयोग स्वच्छता सुविधाओं के संचालन, रखरखाव और कचरा संग्रहण के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति पर किया जाएगा। ग्राम पंचायतें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार स्वच्छता शुल्क और जुर्मानों की दरों में संशोधन करने के लिए स्वतंत्र होंगी।
प्रवक्ता ने बताया कि ये उप-नियम राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती ठोस कचरा समस्या से निपटने के लिए तैयार किए गए हैं। इससे पंचायतों को ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस कचरा प्रबंधन सेवाएं देने के लिए प्रेरित किया जाएगा और नागरिकों को इन सेवाओं की मांग करने का अधिकार भी मिलेगा। साथ ही पंचायतों को राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदान का उचित उपयोग सुनिश्चित होगा।
हर ग्राम पंचायत को ये सेवाएं कचरा संग्रहकर्ताओं या अधिकृत एजेंसियों के माध्यम से प्रदान करनी होंगी और कचरे को पंचायत स्तर पर बनाए गए शेड तक पहुंचाना होगा। पुनः उपयोग योग्य प्लास्टिक कचरे को रीसाइक्लरों को बेचा जाएगा और जो प्लास्टिक कचरा पुनः उपयोग योग्य नहीं है, उसे खंड स्तर पर स्थापित प्लास्टिक कचरा प्रबंधन इकाइयों के माध्यम से सीमेंट कारखानों में को-प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाएगा। इस संबंध में विभाग द्वारा सीमेंट कारखानों के साथ औपचारिक समझौते किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि जिला, खंड और पंचायत स्तर के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे इन उप-नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी करें और ग्राम सभाओं में इनके अंगीकरण की सूचना भेजें। ग्राम पंचायतों के लिए उपविधियां बनाना, कचरा उत्पादकों और पंचायती राज संस्थाओं की जिम्मेदारियों को कानूनी रूप से स्पष्ट करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है।