( जसवीर सिंह हंस ) एक दिन में दो आत्महत्या से पांवटा साहिब शहर में सनसनी फ़ैल गयी | दोपहर को एक युवक ने जहर निगल लिया जिससे युवक की दर्दनाक मौत हो गयी | मिली जानकारी के अनुसार जसविंदर सिंघ 25 निवासी देहरादुन ने एस डी एम ओफिस के नजदीक जहर निगल लिया 108 एमबुलेस के EMT व पायलट ने इसको सिविल हॉस्पिटल में भर्ती किया जहा जसविंदर सिंघ को मृत घोषित कर दिया गया |
वही देर रात गाँव कोडगा पो.ओ. सतौन निवासी एक युवती द्वारादेर रात बद्रीपुर में फंदा लगाकर अपनी ईहलीला समाप्त करने का मामला प्रकाश में आया है। मिली जानकारी अनुसार 25 वर्षीय युवती मोनिका पुत्री गीताराम जब वो घर पर वो थी तो अपने कमरे के छत के पंखे से फंदा लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
इससे एक सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्यों आत्महत्या कर रहे हैं युवा? पांवटा साहिब पिछले कुछ वर्षो में हि दर्जनों क करीब दर्जनों आत्महत्या के मामले सामने आये है | आत्महत्या व्यक्ति के जीवन में दर्द, तनाव और अवसाद के चरम पर पहुंचने का सूचक है. आत्महत्याओं के कारण और तरीके भले अलग-अलग हों, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि जब परिवार, समाज और देश की व्यवस्था से सहारे की हर उम्मीद खत्म हो जाती है, तभी कोई व्यक्ति इस आखिरी रास्ते को चुनता है.
आखिर इंसान यह कदम क्यों और कब उठाने पर मजबूर होता है। आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे घर में आर्थिक परेशानी, दोस्तो के द्वारा खराब व्यवहार, प्यार में असफल या प्यार न मिलना, माता-पिता से नाराज होकर, परीक्षा में फेल होना, बेरोजगारी, कर्ज का भार। ये सारी बातें हमारे समाज में नई तो नहीं है, ऐसी परेशानी पहले भी लोगो को देखने को मिलती थीं, लेकिन अब ऐसा क्या नया है, जो युवाओं को कमजोर बना रहा है। ऐसा क्या हो जाता है कि उनके अंदर जीने की चाहत खत्म हो जाती है।
विशेषज्ञों की मानें तो समाज की अधिकतर परेशानीयों का जन्म हमारे घरों में ही होता है। खुद को मिटा देने की घटनाओं में ज्यादातर बच्चे, युवा और नौजवान ही शामिल हैं। बचपन से युवावस्था की दहलीज पर खड़े युवा कहीं न कहीं अकेलापन का शिकार हो रहे हैं। इससे हमारे बच्चे अपने आप को अकेला समझ कर मौत का दामन थाम लेते हैं। युवा आत्महत्या के प्रयास जल्दी करते हैं, जिन्हें बचपन से अकेलापन मिला होता है। यानी एकल परिवारों के बच्चों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। इसके अलावा यदि आप बच्चों को अच्छे नंबरों, करियर, नौकरी, उनकी आदतों, आदि के लिए लगातार डांटते फटकारते रहते हैं, तो वे खुद की दुनिया को सीमित समझने लगते हैं और जब उनका मानसिक दर्द असहनीय हो जाता है तब वो यह कदम उठाते हैं। लिहाजा आज बच्चों से पहले माता-पिता की नियमित काउंसिलिंग की जरूरत है।
आम तौर पर आत्महत्या करने वाले लोग अगर किसी हिंसा का शिकार हुए होते हैं, तो हिंसा के वक्त खुद को मारने की धमकी बार-बार देते हैं, तब लोग उसकी बात को गहराई से नहीं लेते हैं। बल्कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो बार-बार ताने मिलने पर खुद को खत्म करने की योजना काफी पहले से बनाने लगते हैं। लिहाजा परिवार के सदस्यों को इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिये, यदि कुछ भी असामान्य होता देखें, तो पीडि़त से बात जरूर करें।
आधुनिकतम की दौड़ में माता-पिता के पास इतना समय नहीं है, कि अपने बच्चों के पास दो पल बैठकर उनके अकेलेपन को बांट सकें। इस अकेलेपन के साथ-साथ सफलता प्राप्त करने का मानसिक दबाव भी उनको आत्महत्या की तरफ ढ़केल रहा है। खास कर जिन परिवारों में पहले भी आत्महत्या हुई हैं, उनके बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका ज्यादा होती है। हाल ही में हुए एक रिसर्च में सामने आया कि जिनमें आत्महत्या के जीन होते हैं, उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं। इससे बच्चे या व्यक्ति का मानसिक संतुलन अव्यवस्थित हो जाता है। यह भी पता चला है कि आत्महत्या करने से पहले सोसाइडल हार्मोनस बढ़ जाते हैं।
शिक्षा में सफलता की अत्यधिक महत्वाकांक्षा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बाहर निकलने वाले कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो वह करना चाहते हैं जिसकी क्षमता या रुचि कमोवेश उनमें होती ही नही है. बढ़ती प्रतिस्पर्धा, आगे निकलने की होड़ उन्हें मानसिक रूप से बीमार बना देती है. उन्हें लगता है कि वे अधिक मेहनत के बाद भी पिछड़ते जा रहे हैं. यह एक बड़ी समस्या है कि कोचिंग और शिक्षण संस्थानों में कॉउंसलिंग की कोई उचित व्यवस्था नही होती. इस वजह से छात्र मानसिक परिस्थितियों से उबर पाने में विफल हो जाते हैं.
माता-पिता का बच्चों से अधिक अपेक्षा और अपनी मर्जी थोपना समाज में ऐसे माता-पिता देखने को मिल ही जाते हैं जो बच्चों पर अपनी मर्जी थोप देते हैं. बच्चे को क्या पढ़ाना है कहाँ पढ़ना है, क्या बनना है आदि. ऐसा न कर पाने की स्थिति में छात्र अवसाद ग्रस्त हो जाता है. मनोवैज्ञानिक कहते हैं, “मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कम तादात और स्कूली स्तर पर काउंसलरों की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से बच्चों के पास अपनी भावनाएं व्यक्त करने के ज्यादा विकल्प नहीं होते. इसके अलावा कामकाजी अभिभावक बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते “माता-पिता के पास बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान देने के लिए समय की कमी और लगातार बेहतर प्रदर्शन का दबाव ही मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार हैं.”
आर्थिक तंगी भी आत्महत्या की वजह कुछ ऐसे मामले भी सामने आते हैं जब बच्चे आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या कर लेते हैं. समय पर स्कूल की फीस न दे पाना और बच्चों के सामने खुद को नीचा दिखाया जाना भी इसका एक अहम् कारण होता है. इसके अलावा अपनी जमीन-जायदाद बेंचकर व्यक्ति अपने बच्चे को पढ़ने के लिए बाहर भेजता है. यदि किन्ही कारणों से वह प्रतियोगिता में सफल नही हो पाया तो यह भी आत्महत्या की एक वजह बन जाती है.
परीक्षा में असफल होने पर आत्महत्या जब कोई छात्र परीक्षा में असफल हो जाता है या कम अंक मिलते हैं तब उसे परिजनों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है. उसे नीचा दिखाया जाता है. इस प्रकार से उसमे कुंठा घर कर जाती है. परिजनों को जब उस बच्चे के साथ सहानुभूति की जरूरत होती है तब वह उसे नही मिल पाती “हम अपने बच्चों को नाकामी का सामना करना नहीं सिखाते. इससे बच्चे सहज ही अपनी नाकामी नहीं पचा पाते. ”
वही यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में 14- से 18 साल के 8 किशोर औसतन रोज आत्महत्या कर लेते हैं. इसमें उनके परिवार के सदस्यों सहित उनके माँ-पित्ता की भी अहम भूमिका होती है. समाज में तेजी से हो रहे बदलाव भी युवाओं में आत्महत्या का कारण बनते जा रहे हैं. आज जिस तरह से युवा पीढ़ी असमय मौत को गले लगा रही है वह किसी एक परिवार के लिए चिंता का विषय नही वरन पूरे समाज के लिए सोचने का विषय हो गया है.
विश्व स्वास्थ संगठन के मुताबिक भारत दुनिया मे ऐसे मुल्कों की कतारों मे सबसे आगे है , जहा लोग अपनी जिंदगी की डोर खुद हि काट देतें है। भारत के इस हालात को देखते हुए अगर इसे आत्महत्या की राजधानी कहा जाए तो गलत नही होगा।औसतन हर चार मिनट में यहां एक व्यक्ति खुदकुशी करता हैं जिसमे 38 फीसदी लोग 15 – 29 आयु वर्ग के होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के मुताबिक 2009 में 127151 लोगों ने खुदकुशी की। खुदकुशी की दर मे हर साल दो फीसदी का इजाफा हो रहा हैं। जिंदगी को ठुकराने अब ये चलन भारतीय समाज के हर वर्ग और क्षेत्र मे हैं। न इससे उच्च वर्ग अछुता है और न ही निम्न वर्ग और न ही इस प्रवृत्ति का गांव और शहर से भेदभाव हैं।
आत्महत्या (लैटिन suicidium, sui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है। आत्महत्या अक्सर निराशा के चलते की जाती है, जिसके लिए अवसाद, द्विध्रुवीय विकार, मनोभाजन, शराब की लत या मादक दवाओं का सेवनजैसे मानसिक विकारों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।तनाव के कारक जैसे वित्तीय कठिनाइयां या पारस्परिक संबंधों में परेशानियों की भी अक्सर एक भूमिका होती है। आत्महत्या को रोकने के प्रयासों में आग्नेयास्त्रों तक पहुंच को सीमित करना, मानसिक बीमारी का उपचार करना तथा नशीली दवाओं के उपयोग को रोकना तथा आर्थिक विकास को बेहतर करना शामिल हैं।
आत्महत्या करने के लिए उपयोग की जाने वाली सबसे आम विधि, देशों के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है और आंशिक रूप से उपलब्धता से संबंधित है। आम विधियों में निम्नलिखित शामिल हैं: लटकना, कीटनाशक ज़हर पीना और बंदूकें। लगभग 8,00,000 से 10,00,000 लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, जिस कारण से यह दुनिया का दसवे नंबर का मानव मृत्यु का कारण है। पुरुषों से महिलाओं में इसकी दर अधिक है, पुरुषों में महिलाओं की तुलना में इसके होने का समभावना तीन से चार गुना तक अधिक है। अनुमानतः प्रत्येक वर्ष 10 से 20 मिलियन गैर-घातक आत्महत्या प्रयास होते हैं। युवाओं तथा महिलाओं में प्रयास अधिक आम हैं।