( जसवीर सिंह हंस ) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश, न्यायमूर्ति श्री संजय करोल ने आज जिला न्यायालय परिसर चक्कर, शिमला स्थित वैकल्पिक विवाद निराकरण केंद्र (अल्टरनेटिव डिसप्यूट रेसोल्यूशन सेंटर) शिमला का लोकार्पण किया। इस केंद्र का निर्माण लगभग चार करोड़ रुपये की लागत से किया गया है। इस केंद्र में लोक अदालत, मध्यस्थता व अन्य माध्यमों द्वारा विवादों का निपटारा किया जाएगा। इस केंद्र का निर्माण हिमाचल प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में किया गया है।
इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री तरलोक सिंह चैहान, न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री विवेक सिंह ठाकुर, न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री अजय मोहन गोयल, न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री संदीप शर्मा, न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री सीबी बारोवालिया, रजिस्ट्रार जनरल श्री राजीव भारद्वाज, जिला व सत्र न्यायधीश तथा अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण शिमला, न्यायधीश श्री वीरेंद्र सिंह, सदस्य सचिव हिमाचल प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण श्री प्रेम पाल रांटा, प्रशासनिक अधिकारी श्री गौरव महाजन, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव न्यायधीश श्री विवेक शर्मा, उपायुक्त शिमला श्री अमित कश्यप, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री परवीर ठाकुर, एसिस्टैंट सोलिसिटर जनरल श्री राजेश शर्मा, अध्यक्ष जिला बार ऐसोसिएशन श्री प्रेम सिंह नेगी, अधिवक्ता और गणमान्य लोग उपस्थित थे।
मध्यस्थता विवादों को निपटाने की सरल एवं निष्पक्ष आधुनिक प्रक्रिया है। इसके द्वारा मध्यस्थ अधिकारी दबाव रहित वातावरण में विभिन्न पक्षों के विवादों का निपटारा करते हैं। सभी पक्ष अपनी इच्छा से सदभावपूर्ण वातावरण में विवाद का समाधान निकालते हैं तथा उसे स्वेच्छा से अपनाते हैं। मध्यस्थता द्वारा विभिन्न पक्ष अपने विवाद को सभी दृष्टिकोण से मापते हैं और वह समझौता जो सभी पक्षों को मान्य होता है, उसे अपनाते हैं।
इस पद्धति द्वारा विवादों का जल्द से जल्द निपटारा होता है, जो कि खर्च रहित है। यह मुकद्दमों के झंझटों से मुक्त है, साथ ही इससे न्यायालयों पर बढ़ते मुकद्दमों का बोझ भी कम होता है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण शिमला के अध्यक्ष व जिला एवं सत्र न्यायधीश श्री वीरेंद्र सिंह हैं तथा इसके सचिव श्री विवेक शर्मा हैं। जिला में विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पात्र लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है। कोई भी पात्र व्यक्ति जो गरीबी, अज्ञानता और अनपढ़ता के कारण अपने अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ है, निशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है।