लेग पीस और फिश के साथ चटकारे लेते हुए सड़कों के किनारे खड़े होकर गाड़ियों में जाम से जाम टकराने का दौर आम है, मगर कानून की रखवाली पुलिस को इससे कोई नाता ही नहीं है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाली पुलिस को तनिक भी एहसास नहीं है कि सड़क किनारे गाड़ियों में शराब का दौर चलने से जहां माहौल खराब होता है, वहीं सड़क किनारे खड़े वाहन हादसे को भी न्योता देते हैं।
सरेआम उड़ रहीं कानून की धजियां : सरेआम उड़ती है कानून के नियमों की धज्जियां और पुलिसिया तंत्र तमाशा देखने में मशगूल है। पुलिस की सुस्ती का ही नतीजा है कि सड़क के किनारे सूरज ढलने के बाद छोटे-मोटे ढाबों पर शराबियों का मजमा लगता है। अवैध तौर पर शराब बेचने वालों तक कानून के लंबे हाथ पहुंच जाते हैं, मगर हैरानी है कि नियमों को तार-तार करके गटकी जाती शराब पर पुलिस की नजर नहीं पड़ती है। बावजूद इसके ऐसा क्यों हो रहा है, यह तो पुलिस ही बता सकती है। सड़कों के किनारों की शराबियों की महफिल जुटी रहती है।
शाम ढलते ही यहां से महिलाओं का निकलना दूभर हो चुका है। शराब का सेवन करने के बाद वे नशे में टूल होकर अनाप-शनाप बोलने लगते हैं। महिलाओं पर फब्तियां भी कसते हैं। इस दौरान सड़क से गुजरने वाले राहगीर, खासकर महिलाएं और विद्यार्थी शर्मिंदा हो जाते हैं। वे जरूरी काम के लिए भी बाजार जाने से परहेज करते हैं। बाई पास , भाटिया पैलस के पास बद्रीनगर , भुपुर , बाता पुल चोंक , विश्कर्मा चोंक के आस पास दर्जनों अड्डे है जहा ये कारोबार चला हुआ है | व कुछ अपराधी भी इस किसम के धंधो को चला रहे है व ठेके के पास स्थित अपने चिकन के अड्डे पर खड़े होकर लोगो को आवाजे लगाकर शराब पिने के लिय उकसाते है |
अधिकारियों के आशीर्वाद से टूटते हैं नियम : शहर की कोई सड़क बाकी होगी, जहां पर सूरज ढलने के बाद वाली छोटे-मोटे ढाबों के नाम पर गिलास से गिलास न टकराए जाते हों। ऐसा नहीं है कि पुलिस को रात के अंधेरे में होने वाली इनकी गतिविधियों के बारे में पता नहीं है, लेकिन खाकी जान बूझकर अंजान बनी हुई है। उनकी गतिविधियों को देख कर यही आभास होता है कि जैसे अवैध तौर पर शराब पिलाने वाले अड्डों के मालिकों पर विभाग के अधिकारियों का आशीर्वाद प्राप्त है। शायद इसीलिए उनकी चुप्पी नहीं टूटती।
फूड कार्नरों से ठेकेदार लेते हैं हफ्ता : तहकीकात करने पर मालूम पड़ा है कि फूड कार्नर पर शराब पिलाने की एवज में शराब ठेकेदार ही उनसे महीना लेते हैं। ऐसे अवैध शराब के अहाते काफी सरगर्म हैं। सड़क किनारे खुले ढाबों पर रात के समय में शराब पीने का ही दौर चलता है, जबकि ढाबा मालिकों के पास शराब पिलाने का कोई लाइसेंस नहीं होता है। फिर भी गिलास से गिलास टकराए जाते हैं। इससे आने-जाने वाले लोगों को असुविधा तो होती है। साथ में सरकारी राजस्व को भी चूना लग रहा है।
होटलों पर भी पड़ रही है मार : नाम न छापने की शर्त पर एक होटल मालिक ने बताया कि वह बार का लाइसेंस लेने के लिए मोटी फीस भरते हैं। उनकी एक कमी पर विभाग नुक्ताचीनी कर देता है, लेकिन जो लोग बिना लाइसेंस के खराब पिलाते हैं, उन्हें स्वार्थ के चक्कर में कुछ नहीं बोला जाता है। इस सारे खेल में होटल इंडस्ट्री पर भी इसकी मार पड़ रही है।
शराब की दुकानों के पास या सार्वजनिक स्थलों में शराब पीते पकड़े जाने पर न्यूनतम एक हजार रुपए जुर्माना वसूलने का प्रावधान है। लेकिन कार्रवाई नहीं होती है। शहर की कई ऐसी बस्तियां हैं जहां खुलेआम शराब बिकती है। तभी शराब माफिया खुलेआम अवेध धंधा करने में लगा हुआ है क्युकी सैया भये कोतवाल हमें दर कहे का |
सरकारी शराब की दुकानों में रात 11 बजे के बाद शराब बेचने की मनाही है। दुकानदार अधिक मूल्य पर निजी फायदे के लिए देर रात तक शराब बेचते हैं। कई दुकानों में रात को यह दृश्य देखा जा सकता है। वही प्रिंट रेट से ज्यादा कीमत लेकर शराब परोसते हैं, विभाग के अधिकारी कार्रवाई नहीं करते हैं।