( धनेश गौतम )देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अस्थि विसर्जन कार्यक्रम सराहनीय कार्य है लेकिन इस कार्य में शास्त्रों व संस्कृति का अपमान नहीं होना चाहिए। पिंड छेदन से पहले कभी भी नवग्रह शांति पूजा और पूर्णाहूति नहीं होती हैं। यह हमारे शास्त्रों व संस्कृति के खिलाफ है।
यह बात हिमाचल प्रदेश ब्राहृमण सभा कोर कमेटी के अध्यक्ष मनमोहन गौतम, महासचिव एसआर अवस्थी, कुल्लू जिला ब्राहृमण जनकल्याण सभा के अध्यक्ष पंडित खेमराज, ज्योतिष एवं कर्मकांड प्रभाग के प्रमुख व भागवत आचार्य शमशेर दत शास्त्री, महामंत्री लीला गोपाल शर्मा, मंडी ब्राहृमण सभा के उपाध्यक्ष मुंशी राम शर्मा ने कहीं। उन्होंने कहाकि मनाली में अटल जी की श्रद्धाजंलि सभा व अस्थि विसर्जन का कार्यक्रम रखा गया था। जो प्रशंसनीय तो है लेकिन इस अस्थि विसर्जन व श्रद्धाजंलि सभा में नवग्रह शांजि पूजा व पूर्णाहुति शास्त्र व संस्कृति के विरूद्ध है।
उन्होंने कहा कि शास्त्र एक पूर्ण विज्ञान है और जन्म के उपरांत मृत्यु तक जो भी शास्त्रीय प्रक्रिया की जाती है वे प्राणी के उज्जवल भविष्य व समृद्ध जीवन यापन के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है। जबकि इसी तरह मरणोपरांत जो शास्त्रीय विधियां है वे भी पूर्ण विज्ञान है। जिससे कि दिवगंत आत्मा को आगामी पुर्नजन्म तक का
रास्ता सुगम कराती है। लेकिन जब इन विधियों को नियमबद्ध ढंग से न किया जाए तो कहीं न कहीं इससे व्यावधान भी पैदा होते है। प्राणी की मृत्यु के उपरांत
शास्त्रों के अनुसार पिंड छेदन तक की प्रक्रिया में नवग्रह शांति एवं पूर्णाहुति करने का कहीं भी शास्त्रीय अनुमति नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि अस्थि विसर्जन करना भाव विज्ञान के अनुसार एक अच्छी श्रद्धा है लेकिन इस अवधि में वनग्रह शांति एवं देवपूजा व पूर्णाहुति करना भावुकता है लेकिन भाव विज्ञान नहीं है। उन्होंने कहा कि ब्राहृमण जन कल्याण सभा व हिमाचल प्रदेश ब्राहृमण
सभा इस कार्य को शास्त्र व संस्कृति के विरूद्ध मानती है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ब्राहृमण सभा यह चाहती है कि शास्त्र का समाज में पूर्ण ज्ञान हो इसके लिए ब्राहृमण समुदाय को अपने धर्म निभाने के लिए आगे आना होगा और इसके साथ ही प्रदेश सरकार ऐसे कार्य के लिए सहयोग करें।