( धनेश गौतम ) हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य की बड़ी बड़ी बातें की जा रही है और बड़ी बड़ी योजनाएं प्रदेश के भविष्य के पोषण को लेकर चल रही है। लेकिन धरातल की सच्चाई कुछ अलग ही है। गर्भवती महिलाओं गर्भ में पल रहे बच्चे से लेकर जच्चा बच्चा को मिलने बाले आहार में जहां गड़बड़झाला चल रहा है वहीं पोषण व सवास्थ्य की देख रेख करने वाली स्वास्थ्य कार्यकर्ता खुद कुपोषित है।
यह एक तलख सचाई है कि अर्बन हैल्थ कार्यक्रम के तहत तैनात प्रदेश की सवास्थ्य कार्यकर्ताओं एएनएम को छह माह से वेतन ही नहीं मिला है। छह माह से इन कार्यकर्ताओं को भूखो मरने की नोवत आ रही है। अब स्वाल यह है कि प्रदेश के भविष्य के सवास्थ्य का ख्याल रखने बाली स्वास्थ्य कार्यकर्ता ही भूखे पेट हो तो वोह यहां के हजारों बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल कैसे रख पाएगी। यह कार्यकर्ता प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से भी मिल चुकी है और अभी तक इनको आश्वशनों के सिवाए कुछ भी नहीं मिला है।
इन कार्यकर्ताओं को पक्का करने या वेतन बृद्धि की भी कोई योजना नहीं है। मई 2011 से प्रदेश के 10 जिलों में कार्यरत इन एएनएम का न तो वेतन में बृद्धि हुई न ही किसी स्थाई योजना में लाया गया जिसके तहत इनका भविष्य सुरक्षित हो और न ही वेतन बढ़ाया गया। यही नहीं सुबह 9 से चार बजे तक काम लेने के बावजूद छह छह माह तक वेतन भी नहीं दिया है रहा है। कभी इन्हें कहा जाता है कि यह अनुबंध के आधार पर है और कभी कहा जाता है कि अनुबंध पर भी नहीं है।
हैरानी इस बात की है कि कभी इनको यह आश्वाशन दिया जाता है कि उन्हें आरकेएस में लिया जा रहा है तो कभी कुछ और। एनएचएम योजना के तहत अर्बन क्षेत्र में कार्यरत इन कर्मचारियों को बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन फिलहाल अभी तक इन कार्यकर्ताओं का बेलिवारिस कोई भी नहीं है और सिर्फ काम ही लिया जा रहा है। इनको रंज इस बात का है कि इनके बाद स्थापित आशा वर्कर को तो सरकार ने कई योजनाएं लाई लेकिन इनके प्रति कोई गंभीरता नहीं है जबकि यह कार्यकर्ता 2011 से कार्य कर रही हैं।
हैरानी तो इस बात की है कि इन कार्यक्रताओं को मेटरनिटी लीव तक नहीं मिल रही है जिस कारण इस योजना के तहत कार्यरत अधिकतर कार्यकर्ताओं को नोकरी छोड़नी पड़ रही है। इन कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि उनके प्रति सहानुभूति पूर्वक कोई ठोस नीति बनाकर उनके भविष्य को सुरक्षित करें।