रेणुका ठाकुर कल आएगी हिमाचल, पहले हाटकोटी मंदिर में टेकेगी माथा

Khabron wala 

महिला क्रिकेट विश्व कप जीतकर देश का गौरव बढ़ाने वाली हिमाचल की तेज़-तर्रार गेंदबाज़ रेणुका ठाकुर अपने गाँव लौट रही हैं, जिसके लिए पूरा क्षेत्र पलकें बिछाए इंतज़ार कर रहा है। शिमला ज़िले के रोहड़ू उपमंडल स्थित पारसा गाँव की यह नायिका गुरुवार, 9 नवंबर को अपने घर पहुँचने से पहले हाटकोटी मंदिर में माथा टेकेगी। इस दौरान परिवार और स्थानीय लोग उनकी ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए एक भव्य नागरिक अभिनंदन समारोह की तैयारी में जुटे हैं।

PM मोदी ने नवाज़ा ‘सिंगल पेरेंट’ के संघर्ष को

इस जीत से भी अधिक, रेणुका की माता, श्रीमती सुनीता ठाकुर, को उस क्षण ने भावुक कर दिया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से उनके त्याग और परिश्रम की सराहना की। रेणुका ने दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में उनसे मुलाकात की थी। इसी बातचीत के दौरान, PM मोदी ने सार्वजनिक रूप से सुनीता ठाकुर के ‘सिंगल पेरेंट’ के रूप में किए गए असाधारण संघर्ष को मान्यता दी।

गौरवान्वित सुनीता ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा उनकी मेहनत और एक माता-पिता के रूप में झेले गए दर्द को समझना, न सिर्फ हिमाचल के लिए बल्कि देश भर के हर अकेले अभिभावक के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है। उन्होंने कहा कि बेटी की उपलब्धि के बाद अब प्रधानमंत्री की प्रशंसा ने उनके संघर्ष के दिनों के सभी दर्द को समाप्त कर दिया है। PM मोदी ने यह भी याद दिलाया कि 1998 से 2003 तक हिमाचल के प्रभारी रहने के कारण वह पहाड़ के लोगों की कर्मठता और दृढ़ता से भली-भांति परिचित हैं।

रेणुका के जीवन की कहानी त्याग और दृढ़ संकल्प का एक अद्भुत उदाहरण है। उनके पिता, केहर सिंह ठाकुर के असामयिक निधन (1999) के बाद परिवार की ज़िम्मेदारी उनकी माँ सुनीता पर आ गई। जल शक्ति विभाग में दैनिक वेतनभोगी के रूप में काम करते हुए, उनकी मासिक आय मात्र ₹1500 थी। इसी छोटी सी राशि से उन्हें रेणुका और उनके भाई-बहन की परवरिश करनी थी।

सुनीता ठाकुर ने विपरीत परिस्थितियों में भी बच्चों को कभी आर्थिक तंगी महसूस नहीं होने दी। बेटी के क्रिकेट के जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने अधिकारी से पैसे उधार लिए और कई बार खुद सूखी रोटियां खाकर भी रेणुका को हिमाचल प्रदेश क्रिकेट अकादमी (HPCA) भेजा। उनका अटूट समर्पण तब से था जब रेणुका महज़ तीन-चार साल की थीं और कपड़े की गेंद तथा लकड़ी के बल्ले से खेलती थीं। आज, उनकी तपस्या का फल रेणुका के रूप में देश का नाम रौशन कर रहा है।

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