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हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है- जो किसी एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उस सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरे सवाल छोड़ती हैं, जो जरूरतमंदों तक समय पर नहीं पहुंच पाती।
ठंड में कांपते बच्चे
भजोत्रा पंचायत के मटवाड़ गांव में झोपड़ी में ठंड से कांपते चार मासूम बच्चों की कहानी तब सामने आई, जब उनकी बेबसी का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुआ। इसके बाद ही प्रशासन और संबंधित विभागों की नींद टूटी।
इन बच्चों के लिए जिंदगी किसी संघर्ष से कम नहीं थी। फटी हुई छत, टपकता पानी, सर्द हवाओं से बचाने का कोई इंतजाम नहीं और खाने-पहनने की बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव। सर्द मौसम में यह झोपड़ी किसी घर से ज्यादा एक असुरक्षित ठिकाना थी, जहां हर रात बच्चों को ठिठुरते हुए गुजारनी पड़ती थी।
पिता की मौत और मां का साथ छूटना
मटवाड़ गांव निवासी जगीर सिंह के निधन के बाद परिवार पूरी तरह बिखर गया। जगीर सिंह के पीछे उनकी पत्नी और चार नाबालिग बच्चे रह गए थे। पिता की मृत्यु के कुछ समय बाद बच्चों की मां ने दूसरी शादी कर ली और चारों बच्चों को छोड़कर चली गई। इसके बाद ये मासूम पूरी तरह बेसहारा हो गए।
परिवार में सबसे बड़ी बेटी निशा देवी 17 वर्ष की है, जबकि संतोष कुमार 15 वर्ष, मीना देवी 11 वर्ष और सबसे छोटा अर्जुन मात्र 8 वर्ष का है। कम उम्र में ही इन बच्चों के सिर से माता-पिता का साया उठ गया और उन्हें खुद ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ी।
गांव और व्यवस्था की चुप्पी
हैरानी की बात यह रही कि इतने वर्षों तक इन बच्चों की हालत पर न गांव ने ध्यान दिया, न पंचायत ने और न ही संबंधित विभागों ने। आसपास के लोग उनकी स्थिति से परिचित थे, लेकिन मदद के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई। यह लापरवाही तब उजागर हुई, जब किसी संवेदनशील व्यक्ति ने बच्चों की स्थिति का वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर साझा कर दिया।
वीडियो सामने आने के बाद प्रशासन और बाल संरक्षण से जुड़े विभाग सक्रिय हुए। जिला बाल कल्याण समिति के सदस्य मटवाड़ गांव पहुंचे और बच्चों से मिलकर उनकी स्थिति का जायजा लिया। जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि बच्चे वास्तव में बेसहारा हैं और उन्हें तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।
सुख आश्रय योजना के तहत संरक्षण
इसके बाद जिला बाल कल्याण समिति ने बच्चों को मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना के अंतर्गत लाने का निर्णय लिया। अब इन बच्चों को सुरक्षित आवास, नियमित भोजन, शिक्षा और देखभाल की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है। प्रशासन की ओर से आश्वासन दिया गया है कि बच्चों के भविष्य से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
इस मामले में पंचायत सचिव चमन शर्मा ने बताया कि बच्चों के पिता के नाम पर पहले से आवास स्वीकृत था, लेकिन उनके निधन के समय बच्चे नाबालिग थे। नियमों के अनुसार नाबालिगों के नाम पर मकान निर्माण संभव नहीं था। इसी वजह से स्वीकृत आवास का लाभ इन्हें नहीं मिल पाया और बच्चे आज भी कच्चे मकान में रहने को मजबूर रहे।
आर्थिक सहायता भी मिलेगी
जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष वाईके मरवाह ने बताया कि बच्चों का दर्द सुनकर वे बेहद आहत हुए हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना के तहत इन बच्चों को हरसंभव सहायता दी जाएगी। योजना के अंतर्गत दो बच्चों को प्रति माह चार-चार हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी, ताकि उनकी पढ़ाई और दैनिक जरूरतों को पूरा किया जा सके।
मटवाड़ गांव के इन बच्चों की कहानी समाज और व्यवस्था- दोनों के लिए आईना है। यह सवाल खड़ा करती है कि क्या किसी की पीड़ा को देखने के लिए उसे वायरल होना जरूरी है? समय रहते अगर ध्यान दिया गया होता, तो इन मासूमों को इतने लंबे समय तक ठंड, भूख और डर के बीच जिंदगी नहीं गुजारनी पड़ती।
अब जबकि प्रशासन ने कदम उठाया है, उम्मीद की जा रही है कि इन बच्चों को न केवल सुरक्षित भविष्य मिलेगा, बल्कि ऐसे मामलों की समय रहते पहचान कर मदद की दिशा में भी ठोस प्रयास किए जाएंगे।










